भोपालः राजभवन में शैक्षणिक चुनौतियों और समाधान पर शिक्षाविदों ने किया चिंतन

- राजभवन में हुई एक दिवसीय “कर्मयोगी बनें” कार्यशाला
भोपाल, 28 मार्च (हि.स.)। राज्यपाल मंगुभाई पटेल के निर्देश पर शुक्रवार को राजभवन में आयोजित “कर्मयोगी बनें” कार्यशाला का चिंतन सांसारिक जगत के आध्यात्मिक कल्याण के समागम के महाकुम्भ के समान शैक्षणिक व्यवस्था की चुनौतियों और समाधान के कुम्भ के रूप में उभरा। कार्यशाला में कर्मयोगी शिक्षा व्यवस्था के लिए प्रदेश के 78 सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों के कुलगुरु, कुलपति, कुल सचिव, प्राचार्य पी.एम एक्सीलेंस और स्वशासी महाविद्यालय के शिक्षाविदों के मध्य संवाद की अभूतपूर्व पहल हुई। समापन कार्यक्रम में राज्यपाल के अपर मुख्य सचिव केसी गुप्ता ने शिक्षाविदों को स्मृति प्रतीक प्रदान किए।
रिपीटेटिव की जगह रिफ्लेक्टिव एजुकेशन पर ज़ोरः प्रो. बालासुब्रह्मण्यम
कार्यशाला के तकनीकी सत्र के प्रथम वक्ता के रूप में मानव संसाधन क्षमता निर्माण आयोग और मिशन कर्मयोगी भारत सरकार के सदस्य प्रो. आर. बालासुब्रह्मण्यम ने चुनौतियों को अवसर में बदलना: प्रेरक शैक्षणिक नेतृत्व के लिए एक कर्मयोगी का दृष्टिकोण विषय पर विचार रखे। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय और शैक्षणिक संस्थाओं को विद्यार्थी कल्याण और हितों पर केंद्रित होना चाहिए। संस्थान बच्चों के हित में रूल्स बनाए। इन नियमों का क्रियान्वयन भी विद्यार्थियों के हितों को ध्यान में रखकर ही किया जाए।
प्रो. बालासुब्रह्मण्यम विद्यार्थियों की क्षमताओं का निर्माण भविष्य की आवश्यकता के लक्ष्य अनुसार किया जाए। रिपीटेटिव की जगह रिफ्लेक्टिव एजुकेशन पर ज़ोर देते हुए कॉम्पिटिटिव और कोलेबोरेटिव तकनीक का इस्तेमाल कर विद्यार्थियों के व्यक्तित्व को निखारें। उन्होंने कहा कि अध्यापन के दौरान शिक्षक, विद्यार्थी अपेक्षाओं के अनुरूप ख़ुद की तैयारी करें। प्रभावी अध्यापन के लिए तकनीक का प्रभावी इस्तेमाल करें, समय के साथ होने वाले तकनीकी अपडेशन से परिचित रहें। प्रो. बालासुब्रह्मण्यम ने कहा कि विश्वविद्यालयों को विकसित भारत बनाने के लिए लीडर्स प्रोवाइडर बनना होगा। बिज़नेस एटिट्यूड के बजाए एकेडमिक एटीट्यूड पर काम करना होगा। विषय की शाखाओं के अनुसार ही अध्यापकों का चयन किया जाए। शिक्षकों को संस्थान के नॉलेज पार्टनर के रूप में शामिल करें।
विश्वविद्यालय को रिसर्च इको सिस्टम को विकसित करना होगा- प्रो. राधाकृष्णन
आई.आई.टी. कानपुर के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष प्रो. के. राधाकृष्णन ने भारतीय शिक्षा नीति: कार्य को पूजा में बदलने के चरण विषय पर उद्बोधन दिया। उन्होंने बताया कि शिक्षा व्यक्ति और समाज को बदलने का सबसे सशक्त माध्यम है। विश्वविद्यालय को रिसर्च इको सिस्टम को विकसित करना होगा। शोध से ही ज्ञान का परिवर्धन और परिष्करण होता है। सत्र में नई भारतीय शिक्षा नीति के माध्यम से महान भारतीय ऐतिहासिक ज्ञान और परंपराओं की प्रासंगिकता पर भी विस्तार से चर्चा की गई। अपने लंबे अंतरिक्ष वैज्ञानिक जीवन में कर्मयोग सिद्धांत के महत्व की उपयोगिता और प्रेरणा पर आधारित प्रसंगों को प्रतिभागियों के साथ साझा किया।
मशीनी ज्ञान भी मानव ज्ञान को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता- प्रो. पंडित
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली की कुलपति प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने परिवर्तनकारी शैक्षणिक नेतृत्व में कर्मयोग के सिद्धान्त विषय पर संबोधित किया। उन्होंने कहा कि बदलते परिदृश्य और विद्यार्थियों की माँग के अनुरूप शिक्षकों को अपना आचरण, व्यक्तित्व और ज्ञान अपडेट करते रहना चाहिए। विद्यार्थियों को विनम्रता, सत्य, अनुशासन और परिश्रम जैसे गुणों का व्यवहारिक ज्ञान कराया जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि सूचना प्रौद्योगिकी और मशीनी युग में भी मशीनी ज्ञान भी मानव ज्ञान को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है। इसलिए, शिक्षक निरंतर अध्ययनशील रहें। विद्यार्थियों को अपने आचरण से भी यह संदेश दें। उन्हें हमेशा पढ़ने, लिखने और चिंतन के लिए प्रेरित करें। प्रो. धुलीपुड़ी अपने लंबे शैक्षणिक और प्रशासनिक जीवन से प्राप्त ज्ञान से कर्मयोग की सार्थकता के सफल अनुभव साझा किए।
गीता व्यक्तिगत और अध्यात्मिक उत्थान का महान ग्रंथ - डॉ. तोमर
यूनाइटेड कॉन्शियसनेस के ग्लोबल संयोजक डॉ. विक्रांत सिंह तोमर ने 'भारतीय शिक्षा: कर्मचारी से कर्मयोगी' विषय पर विचार रखे। उन्होंने भगवद्गीता में निहित कर्मयोग के संदेशों पर विस्तार से चर्चा की। डॉ. तोमर ने कहा कि गीता व्यक्तिगत और आध्यात्मिक उत्थान का महान ग्रंथ है। उन्होंने गीता के संदर्भ में व्यक्तिगत और आध्यात्मिक उत्थान के तरीके बताए। डॉ. तोमर ने गीता की शिक्षा के आधार पर प्रशासनिक जीवन में आगे बढ़ने और कर्मचारी से कर्मयोगी बनने की शिक्षा और रोचक जानकारी दी।
कार्यशाला में समर्पित अकादमिक संस्कृति के लिए प्रमुख चुनौतियों और समाधान पर 11 हजार 7 सौ से अधिक शिक्षकों और विद्यार्थियों के चिंतन से प्राप्त 450 चुनौतियों और समाधानों को मतांकन के द्वारा प्रमुख 11 चुनौतियों और समाधानों में से विद्यार्थियों में उपस्थिति और संलग्नता के प्रति उत्साह की कमी होना, शोध में संख्या की तुलना में गुणवत्ता पर बल और गैर अकादमिक दायित्वों और अत्यधिक अध्यापन के दबावों पर सत्र के विशेषज्ञ विद्वानों और ऑनलाइन शामिल प्रो. अनिल सहस्त्रबुद्धे ने कार्यशाला के प्रतिभागियों के साथ संवाद किया। चुनौतियों के समाधान के संबंध में मार्गदर्शन दिया।
विश्वविद्यालय सशक्त राष्ट्र के लिए नेतृत्व तैयार करें: वरवड़े
उच्च शिक्षा आयुक्त निशांत वरवड़े ने कहा कि सशक्त राष्ट्र निर्माण की दिशा में कार्यशाला की पहल सराहनीय है। उन्होंने बताया कि कार्यशाला के चिंतन को लिपिबद्ध किया गया है। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से आवश्यक सहयोग विभाग द्वारा किया जाएगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय सशक्त राष्ट्र के लिए जीवन के सभी क्षेत्रों में नेतृत्व तैयार करने के केन्द्र है। शिक्षा केन्द्र के प्रमुखों को कर्मयोग को आत्मसात कर कर्मयोगी बनना होगा। विद्यार्थियों की संभावनाओं को निखारने का प्रभावी तरीका कर्मयोग ही है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि कार्यशाला का चिंतन सारे देश की शिक्षा व्यवस्था के लिए चिंतन का पथ प्रदर्शित करेगा। आभार प्रदर्शन अवर सचिव राजभवन आभा शुक्ला ने किया।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर