लोकतांत्रिक मूल्यों के विकास के लिए सहमति वाला दृष्टिकोण मौलिक है : धनखड़

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लोकतांत्रिक मूल्यों के विकास के लिए सहमति वाला दृष्टिकोण मौलिक है : धनखड़


नई दिल्ली, 24 मार्च (हि.स.)। उपराष्ट्रपति एवं राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को संसद भवन में राज्य सभा इंटर्नशिप कार्यक्रम के प्रतिभागियों के छठे बैच को संबोधित करते हुए कहा कि लोकतांत्रिक मूल्यों के विकास के लिए सहमति वाला दृष्टिकोण मौलिक है।

सभापति ने कहा कि दुनिया की कोई भी सभ्यता भारत जितनी समावेशी नहीं है। हमने कभी टकराव में विश्वास नहीं किया, कभी भी प्रतिकूल रुख में नहीं, लेकिन हम पाते हैं कि देश में राजनीतिक तापमान भी बहुत अधिक है। हम मुद्दों पर तुरंत अपूरणीय, टकरावपूर्ण स्थिति ले लेते हैं। हम संवाद के माध्यम से ही एकमात्र रास्ता निकालते हैं।

कर्नाटक में सरकारी ठेकों में मुस्लिमों को 4 प्रतिशत आरक्षण की ओर संकेत करते हुए सभापति ने कहा कि हाल ही में एक राज्य में एक खास समुदाय, एक धार्मिक संप्रदाय को अनुबंधों में आरक्षण दिए जाने का संकेत मिला है। संवैधानिक प्रावधानों पर गौर करें। क्या हमारा संविधान धार्मिक विचारों पर किसी आरक्षण की अनुमति देता है? जानिए डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने क्या कहा था, और आपको पता चल जाएगा कि धार्मिक विचारों पर कोई आरक्षण नहीं हो सकता।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश की युवा आबादी की बदौलत भारत को दुनिया में एक महान राष्ट्र के रूप में पहचाना जाता है। उन्होंने युवाओं से नस्लवाद और नकारात्मकता को बेअसर करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि देश के अंदर और बाहर हमें नीचा दिखाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन आपको हमेशा यह एहसास होना चाहिए कि भारत का उदय वैश्विक स्थिरता के लिए है। भारत का उदय वैश्विक शांति के लिए है और अकेले युवा ही बड़ा बदलाव ला सकते हैं।

उन्होंने कहा कि हमारा देश सबसे पहले संवैधानिक प्रावधानों द्वारा शासित होता है। संविधान में बदलाव करना संसद का एकमात्र विशेषाधिकार है। उन्होंने कहा कि संविधान में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए सहायता और सकारात्मक तंत्र का प्रावधान है।

धनखड़ ने कहा कि आज हमारे पास आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण है क्योंकि इस बार सरकार ने संविधान के माध्यम से रास्ता अपनाया था। सबसे पहले, संविधान में प्रावधान में संशोधन किया गया और आर्थिक मानदंडों को आधार बनाया गया। इसीलिए अदालतों ने इसे बरकरार रखा।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार

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