भारतीय नदियां हमारी सभ्यता, संस्कृति व अर्थव्यवस्था की आधारशिला : प्रो. हर्ष

दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 27 मार्च से
प्रयागराज, 24 मार्च (हि.स.)। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग “भारत की नदियां : इतिहास, संस्कृति, संरक्षण की चुनौतियां और समाधान“ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 27 मार्च को किया जा रहा है। संगोष्ठी के संयोजक एवं प्राचीन इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. हर्ष कुमार ने कहा कि भारतीय नदियां केवल जलस्रोत नहीं हैं बल्कि वे हमारी सभ्यता, संस्कृति और अर्थव्यवस्था की आधारशिला हैं।
प्रो. हर्ष ने सोमवार को पत्रकारों को बताया कि संगाेष्ठी का उद्घाटन प्रो. ईश्वर टोपा ऑडिटोरियम में होगा। उन्होंने कहा कि आज नदियां बढ़ते प्रदूषण, अतिक्रमण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रही हैं। इन समस्याओं का समाधान खोजने और नदियों के संरक्षण के लिए समाज को जागरूक करने के उद्देश्य से इस संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। यह मंच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, वैज्ञानिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से नदियों की भूमिका पर गहन विचार-विमर्श करेगा तथा इनके संरक्षण के लिए ठोस समाधान प्रस्तुत करेगा।
आयोजन सचिव डॉ. अतुल नारायण सिंह ने बताया कि यह संगोष्ठी स्टेट मिशन फॉर क्लीन गंगा-उत्तर प्रदेश और शंख के सहयोग से आयोजित की जा रही है। जो जल संरक्षण और नदियों के पुनर्जीवन के लिए सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। संगोष्ठी में देश भर के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ, पर्यावरणविद, प्रशासक और शिक्षाविद भाग लेंगे, जो गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी जैसी नदियों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व पर अपने विचार साझा करेंगे।
संगोष्ठी के बीज वक्ता पद्मभूषण एवं पद्मश्री से सम्मानित पर्यावरणविद् डॉ. अनिल प्रकाश जोशी होंगे, जो जल एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। विशेष अतिथि के रूप में कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्व संगोष्ठी को सम्बोधित करेंगे। संगोष्ठी में पांच प्रमुख सत्र होंगे, जिनमें नदियों की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक भूमिका, उनके आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व, सामुदायिक सहभागिता एवं जमीनी आंदोलन, पर्यावरणीय चुनौतियां एवं तकनीकी नवाचार और नीतिगत ढांचा एवं प्रशासनिक उपायों पर विस्तृत चर्चा की जाएगी। इसके अलावा शोधार्थियों के लिए विशेष तकनीकी सत्र भी होंगे, जिनमें वे अपने शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे।
संगोष्ठी का समापन 28 मार्च को होगा। जिसमें प्रमुख वक्ता नदी संरक्षण एवं पुनर्जीवन पर विचार साझा करेंगे। आयोजकों ने आशा व्यक्त की कि संगोष्ठी के माध्यम से नदी संरक्षण से जुड़े ठोस नीतिगत सुझाव सामने आएंगे और इस दिशा में प्रभावी कदम उठाए जा सकेंगे। आयोजन सचिव डॉ. अतुल नारायण सिंह (सहायक आचार्य, प्राचीन इतिहास विभाग) और सह-संयोजक इंजी. आलोक परमार (शंख सोसाइटी) सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र