सोनीपत: मशरूम की खेती से डा. सोनिया दहिया बनी प्रेरणा का प्रतीक

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सोनीपत: मशरूम की खेती से डा. सोनिया दहिया बनी प्रेरणा का प्रतीक


सोनीपत: मशरूम की खेती से डा. सोनिया दहिया बनी प्रेरणा का प्रतीक


-20 महिलाओं को रोजगार दिया, यूपी व हरियाणा के 10 किसानों के मशरूम फॉर्म तैयार करवाए

सोनीपत, 24 मार्च (हि.स.)। जिले के गांव बड़वासनी की एक बेटी ने मशरूम की खेती को न केवल आजीविका का साधन बनाया,

बल्कि इसे एक प्रेरणादायक मिसाल में बदल दिया। इस बेटी का नाम है डॉ. सोनिया दहिया,

जिन्हें हाल ही में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने करनाल में आयोजित 11वीं

मेगा सब्जी एक्सपो 2025 में द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित किया। यह सम्मान उन्हें मशरूम

की खेती में उत्कृष्ट कार्य के लिए दिया गया। उनकी मेहनत का परिणाम है कि आज उनकी सालाना

आय लगभग एक करोड़ बीस लाख रुपये तक पहुंचती है, जिसमें से खर्चे निकालने के बाद वह

हर साल पच्चीस से तीस लाख रुपये बचा लेती हैं।

डॉ.

सोनिया दहिया एक शिक्षाविद् भी हैं। वह सोनीपत के दीनबंधु छोटूराम विज्ञान एवं तकनीकी

विश्वविद्यालय, मुरथल में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं और जैव प्रौद्योगिकी

में पीएचडी धारक हैं। उनके पति डॉ. विजय दहिया दिल्ली के महाराजा सूरजमल संस्थान में

गणित के प्रोफेसर हैं। दोनों ने मिलकर न सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दिया,

बल्कि कृषि के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाई। साल 2020 में उन्होंने गांव में एक

एकड़ जमीन खरीदी थी, जिस पर पहले स्कूल खोलने का सपना था। लेकिन कोरोना महामारी के

कारण यह योजना अधूरी रह गई। फिर भी, हिम्मत न हारते हुए उन्होंने मशरूम की खेती की

राह चुनी।

कृषि

का कोई अनुभव न होने के बावजूद, सोनिया ने जुनून और लगन से यह सफर शुरू किया। उन्होंने

चालीस लाख रुपये का निवेश कर दो मशरूम चैंबर बनवाए और पांच हजार छह सौ मशरूम बैग तैयार

किए। शुरुआत में खाद की कमी ने परेशानी बढ़ाई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और खुद

की कंपोस्ट खाद तैयार करने का फैसला किया। आज वह हर महीने आठ से दस टन मशरूम पैदा करती

हैं, जो साल में एक सौ बीस टन तक पहुंच जाता है। इसके साथ ही वह सौ टन खाद भी बनाती

हैं, जो सात से आठ रुपये प्रति किलो के भाव से बिकती है। उनकी मशरूम की औसत कीमत एक

सौ बीस रुपये प्रति किलो है, जिससे उनकी मेहनत का फल साफ दिखता है।

सोनिया

की खासियत यह है कि वह सुबह विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं और दोपहर में अपनी खेती संभालती

हैं। उनकी सफलता का राज उनकी तकनीकी समझ और जैव प्रौद्योगिकी में रुचि है। साल

2021 में शुरू हुए इस सफर में आज चार चैंबर काम कर रहे हैं। उनकी प्रेरणा से बीस ग्रामीण

महिलाओं को रोजगार भी मिला है, जो मशरूम उत्पादन से लेकर पैकिंग तक का काम करती हैं।

ये महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं और अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दे पा रही हैं। सोनिया

का मानना है कि मेहनत और हौसला हो तो कोई भी क्षेत्र मुश्किल नहीं।

इससे

पहले भी सोनिया को जम्मू-कश्मीर में सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार, हरियाणा के राज्यपाल

द्वारा सम्मान और किसान दिवस पर हिसार में सम्मान जैसे कई पुरस्कार मिल चुके हैं। उनकी

कहानी यह सिखाती है कि शिक्षा और मेहनत से हर सपना सच हो सकता है। वह न सिर्फ खुद कामयाब

हुईं, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनीं।

उनके

फॉर्म में करीब 20 महिलाएं 3 साल से परमानेंट रोजगार प्राप्त कर रही हैं। मशरूम फॉर्म

में काम करने वाली महिलाओं का कहना है कि पहले घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था,

लेकिन डॉ. सोनिया ने हमें अपने पैरों पर खड़ा किया। आज हम आत्मनिर्भर हैं और अपने परिवार

की आर्थिक स्थिति सुधारने में सक्षम हैं। वही उनके बच्चों की शिक्षा भी अच्छे स्कूल

में शुरू हो गई है। यूपी, हरियाणा समेत कई राज्यों में 10 से ज्यादा किसानों के मशरूम

फॉर्म तैयार करवा चुकी हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / नरेंद्र शर्मा परवाना

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