जूना अखाड़े के संतों का काशी से प्रस्थान, भव्य भंडारे के बाद दी गई विदाई

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वाराणसी। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के संतों ने 40 दिनों के काशीवास के बाद अपने-अपने स्थानों के लिए प्रस्थान शुरू कर दिया है। रविवार को हनुमान घाट स्थित मठ में विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें अखाड़े के मुख्य संरक्षक स्वामी हरि गिरि महाराज और वरिष्ठ अध्यक्ष स्वामी प्रेम गिरि महाराज ने सभी संतों को प्रस्थान की अनुमति दी।

भंडारे का आयोजन ब्रह्मलीन सभापति श्रीमहंत सोहन गिरी महाराज एवं ब्रह्मलीन श्रीमहंत नागा बाबा हीरामान हरिशंकर गिरि महाराज की स्मृति में किया गया। इसमें सैकड़ों संतों और भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया। अखाड़ा परिषद के महामंत्री स्वामी हरि गिरि महाराज ने भंडारे में आए साधु-संतों को दक्षिणा भी प्रदान की।

नागा साधुओं की दीक्षा प्रक्रिया
अखाड़े के मीडिया प्रभारी आशुतोष कुमार के अनुसार, नागा दीक्षा के दौरान दो प्रकार के साधु तैयार किए जाते हैं
1.    दिगंबर नागा साधु – जो केवल लंगोट धारण करते हैं।
2.    श्री दिगंबर नागा साधु – जो पूरी तरह निर्वस्त्र रहते हैं।

थानापति डॉ. शिवानंद पुरी ने बताया कि जूना अखाड़े के नए पदाधिकारियों के हस्ताक्षर के साथ प्रमाणपत्र तैयार किए जा रहे हैं। इन प्रमाणपत्रों का वितरण 19 मार्च तक पूरा कर लिया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि श्री दिगंबर नागा साधु बनना सबसे कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें संयम और ब्रह्मचर्य का कठोर पालन करना पड़ता है।

राख का महत्व और नागा साधुओं की विशेषता
निर्वस्त्र रहने वाले नागा साधु पूरे शरीर पर राख मलकर रखते हैं। इसका द्विगुण महत्व होता है—
1.    राख नश्वरता की प्रतीक होती है, जो सांसारिक मोह से मुक्ति का संदेश देती है।
2.    यह एक तरह के आवरण का काम करती है, जिससे भक्तों को साधुओं के पास जाने में संकोच न हो।

आयोजन में अखाड़े के महामंडलेश्वर थानापति स्वामी नरेंद्रनंद सरस्वती, महामंडलेश्वर स्वामी रवि गिरि महाराज, हरियाणा के स्वामी कपिल पुरी महाराज, स्वामी दीपेश्वरी गिरि महाराज, स्वामी नारायण गिरि महाराज, स्वामी आदित्य गिरि महाराज, स्वामी दीपक गिरि महाराज, नागा बाबा उमाकांत गिरि महाराज समेत अन्य संतों ने भाग लिया।

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