मुरैना: शनि अमावस्या 29 को, शनि धाम में जुटेंगे लाखों भक्त

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मुरैना: शनि अमावस्या 29 को, शनि धाम में जुटेंगे लाखों भक्त


मुरैना, 27 मार्च (हि.स.)। शनिवार, 29 मार्च को शनिश्चरी अमावस्या है। इस अवसर पर मुरैना जिले में स्थित शनि मंदिर पर लाखों श्रृद्धालु जुटेंगे। यह श्रृद्धालु देशभर से आऐंगे और शनि देव की आराधना करेंगे। भक्तों की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने भी व्यापक प्रबंध किए हैं। शुक्रवार से ही प्रशासन एवं पुलिस के अधिकारी व कर्मचारी तैनात किए गए हैं। श्रृद्धालुओं का शुक्रवार से ही शनि धाम पहुंचना प्रारंभ हो गया है तथा रात बारह बजे के बाद से ही भगवान शनि देव के दर्शन होना प्रारंभ हो जाऐंगे।

उल्लेखनीय है कि शनि मंदिर देश का सबसे प्राचीन त्रेतायुगीन मंदिर है। साथ ही यहां स्थापित श्रीशनिदेव की प्रतिमा भी विशेष एवं अद्भुत है। ज्योतिषियों के मतानुसार यह मूर्ति आसमान से टूटकर गिरे उल्कापिण्ड से निर्मित हुई है। एक अन्य कथा के अनुसार हनुमान जी ने अपनी बुद्धि चातुर्य से काम लेते हुये शनिदेव को लंकापति रावण के पैरों के नीचे से मुक्त कराया था एवं कई वर्षो तक दबे होने के कारण शनिदेव दुर्बल हो चुके थे। लंका दहन हेतु शनिदेव ने बताया था कि जब तक वे लंका में रहेंगे तब तक दहन नहीं हो सकता है एवं वे इतने दुर्बल हैं कि उनका चलना मुश्किल है। अत: हनुमान जी ने शनिदेव को पूरी ताकत से भारत भूमि पर फैंका एवं शनिदेव मुरैना जिले के ऐंती ग्राम के पास स्थित एक पर्वत पर जा गिरे, जिसे शनि पर्वत (ऐंती पर्वत) कहा जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि शनि पर्वत पर ही शनिदेव ने घोर तपस्या कर शक्ति एवं बल प्राप्त किया।

शनि मंदिर पर शनिदेव की मूर्ति स्थापना चक्रवर्ती महाराज विक्रमादित्य ने की थी एवं विक्रमादित्य ने ही शनिदेव की प्रतिमा के सामने हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना करवाई थी। सन् 1808 ई. में तत्कालीन शासक दौलतराव सिंधिया द्वारा यहां जागीर लगाई थी। इस प्रकार का शिलालेख मंदिर में लगा हुआ है। शनि पर्वत (शनिश्चरा पहाड़ी) निर्जन वन में स्थापित होने से विशेष प्रभावशाली है। यह भी कहा जाता है कि शनि सिंगनापुर (महाराष्ट्र) में स्थापित शिला को शनिश्चरा पहाड़ी से ही ले जाकर स्थापित किया गया था।

शनि मंदिर के समीप ही पौड़ी वाले हनुमान जी की जमीन में लेटी हुई व उभरी हुई प्रतिमा है। सम्पूर्ण शनिश्चरा पहाड़ी एवं इसके आसपास का क्षेत्र सिद्ध क्षेत्र है, जिसका अनुभव भक्तों व श्रद्धालुओं को होता है। शनिमंदिर में पहाड़ी से अनवरत गुप्त गंगा की धारा निकल रही है एवं उक्त स्थान पर निर्मित गुफाओं में संत लोग तपस्या करते थे। इस बात के प्रमाण भी वर्तमान में दिखाई देते है। शनि मंदिर के अंदर स्थापित श्री राधाकृष्ण मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है एवं 6 जून 2011 को श्री राधाकृष्ण की नई प्रतिमायें स्थापित की गई है। म्ंदिर के आसपास ही नवीं, ग्यारहवीं शताब्दी के मुरली मनोहर मंदिर, बटेश्वरा, पढ़ावली, मितावली, ककनमठ और कुन्तलपुर पुरातात्विक व धार्मिक महत्व के मंदिर और स्थान है। जिन्हें भी दर्शनीय व पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। गौरतलब है कि श्री शनिदेव, सुख-शांति, यश, वैभव, धन-सम्पत्ति, पद-प्रतिष्ठा के प्रदाता है।

हिन्दुस्थान समाचार / शरद शर्मा

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