रोहनिया विधानसभा सीट : शूलटंकेश्वर और सीर लेकर BLW तक की जनता चुनती है प्रतिनिधि, सपा, भाजपा और अपना दल ने चखा है यहां से जीत का स्वाद
वाराणसी। साल 2012 में विधानसभाओं का परिसीमन किया गया। इस परिसीमन में वाराणसी में रोहनिया सीट (387) भी सामने आयी जो वाराणसी की कैंट विधानसभा के क्षेत्रों को काट कर बनाई गयी। इस विधानसभा में ही काशी का दक्षिणी द्वार कहा जाने वाला शूलटंकेश्वर मंदिर के साथ ही साथ काशी में होने वाली प्रसिद्द पंचकोश यात्रा का प्रथम पड़ाव कर्मदेश्वर महादेव मंदिर भी स्थापित है। इसके अलावा बनारस रेल इंजन कारखाना इस विधानसभा को ख़ास बनाता है। इस इलाके के लोग भी शिक्षित वर्ग के हैं। ज़्यादातर इलाका खेती-किसानी पर निर्भर है तो लोग वाराणसी और आस-पास के ज़िलों के अलावा गैर प्रदेशों और विदेशों में भी काम के सिलसिले में रह रहे हैं।
वाराणसी की इस विधानसभा सीट पर अभी सिर्फ दो बार ही विधानसभा के चुनाव हुए हैं। ऐसे में सभी प्रत्याशियों के लिए यहाँ के मतदाताओं के मूड को समझना मुश्किल है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के मिक्स होने से सभी मुद्दों पर यहां राजनीति की बयार बहती है पर ज़्यदातर जातिगत राजनीति को तवज्जो दी जाती है । आइये जानते हैं रोहनिया विधानसभा सीट से जुड़ी कुछ विशेष जानकारियां, Live VNS की इस ख़ास रिपोर्ट में।
शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर
शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर दक्षिण में जिस स्थान से गंगा उत्तर वाहिनी होकर काशी में प्रवेश करती हैं वहां शूलटंकेश्वर महादेव का मंदिर है। इस मंदिर को काशी का दक्षिण द्वार भी कहा जाता है। मंदिर के आस-पास का इलाका ग्रामीण क्षेत्र है। ये कहना गलत नहीं होगा कि मौजूदा बीजेपी सरकार के दौरान शूलटंकेश्वर मंदिर के सुंदरीकरण और इसके पास गंगा नदी पर पक्के घाट का भी निर्माण कराया गया है। यहां वीकेंड और शिवरात्रि तथा सावन में काशी सहित आस-पास के इलाकों से लोग आते हैं। धीरे धीरे नयी काशी का विस्तार भी इस तरफ हो रहा है। ज्यादातर इलाका ग्रामीण होने के कारण जातिगत राजनीति यहां पहले से ही हावी है।
कर्मदेश्वर महादेव मंदिर
काशी के दक्षिणी छोर पर स्थित कन्दवा पोखरे के किनारे बसा कर्दमेश्वर महादेव मंदिर काशी के प्राचीन शिव मंदिरों में बहुत ही महत्वपूर्ण है। 12वीं सदी में इस मंदिर को गहड़वाल वंशी राजाओं ने निर्मित कराया था। कहा जाता है कि औरंगजेब के हमले में भी इस मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था। इसके अलावा पंचकोशी यात्रा का यह प्रथम विश्रामस्थल भी है, जहाँ श्रद्धालु अपनी पंचकोशी यात्रा के दौरान एक दिन विश्राम करते हैं। योगी सरकार के दौरान इस मंदिर के साथ ही पंचकोशी मार्ग और धर्मशाला का भी जीर्णोद्धार हुआ है। कभी ये इलाका पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र था, मगर समीप में ही बीएलडब्ल्यू कॉलोनी होने के कारण बड़ी संख्या में रेलकर्मियों ने इस क्षेत्र में अपने मकान बनवाए हैं। इसलिये इस पूरे इलाके की आबादी मिश्रित है, जिसमें बिहार और पूर्वांचल के विभिन्न जिलों के लोगों का निवास है। यहां कई दर्जन नई कॉलोनियां बस चुकी हैं। ज्यादातर लोग शिक्षित हैं और इनकी राजनीतिक समझबूझ अच्छी है। इलाके में सड़क बिजली पानी की सुविधाएं भी पहले की अपेक्षा सुधरी हैं। कर्दमेश्वर मंदिर से ठीक पहले स्थित एक तालाब से ही काशी की पहचान असि नदी का उद्गम भी है। इन दिनों यहां साफ सफाई का कार्य चल रहा है।
बनारस रेल इंजन कारखाना (BLW)
अगस्त 1961 में वाराणसी में डीजल से चलने वाले रेल इंजनों के निर्माण के लिये डीजल रेल इंजन कारखाना अस्तित्व में आया। वर्तमान में ये बनारस रेल इंजन कारखाना (बीएलडब्ल्यू) के नाम से जाना जाता है। ये भारत में रेल इंजन निर्माण की सबसे बड़ी प्रोडक्शन यूनिट है। बीएलडब्ल्यू में ही रेलकर्मियों के लिये बड़ी कॉलोनी भी है, जहां 7 से 8 हजार कर्मचारियों के लिये क्वार्टर बने हुए हैं। इस प्रकार अकेले बीएलडब्ल्यू कॉलोनी में ही 10 हजार से ज्यादा वोटर है। सेंट्रल गवर्नमेंट की नौकरी होने के कारण देश के विभिन्न कोनों से आकर रेलकर्मी यहां अपनी सेवाएं दे रहे हैं। बीएलडब्ल्यू की आबादी मिश्रित है, जहां आपको केरल से लेकर कश्मीर तक के लोग मिल जाएंगे। इसके अलावा बीएलडब्ल्यू के आस-पास के इलाके जो कभी ग्रामीण क्षेत्र हुआ करते थे आज बेतरतीब कॉलोनियों के रूप में तब्दील हो चुकी हैं। स्थानीय ग्रामीणों के अलावा रेलकर्मियों ने भी यहां अपने मकान बनवा रखे हैं। बीएलडब्ल्यू के आस पास के ग्रमीण इलाके अब नगर निगम की सीमा में शामिल किये जा चुके हैं, मगर सुविधाओं की बात करें तो ये इलाका अभी काफी पीछे हैं। सड़क और सीवर यहां की सबसे बड़ी समस्या है। बिजली की हालत पहले से काफी सुधरी है।
राजनीतिक उद्भव
साल 2012 के राजनीतिक परिसीमन के बाद कैंट विधानसभा के कई क्षेत्रों को काटकर यह विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। यह वाराणसी लोकसभा क्षेत्र की सीट है। इस विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 2012 में हुआ, जिसमें अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने परचम लहराया था। साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा-अपना दल का गठबंधन हुआ और अनुप्रिया पटेल मिर्ज़ापुर से सांसद चुनी गयीं, जिसके बाद 2014 में उपचुनाव हुए। इस उपचुनाव में सपा के महेंद्र पटेल ने जीत हासिल की और विधानसभा का रास्ता तय किया। उसके बाद साल 2017 के चुनाव में यह सीट भाजपा की झोली में आयी तो भाजपा उम्मीदवार सुरेंद्र नारायण सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सपा के महेंद्र पटेल को 57,553 मतों से हरा दिया। सुरेंद्र नारायण सिंह को 1,198,85 मत और महेन्द्र पटेल को 62,332 मत मिले थे।
मौजूदा परिदृश्य
इस विधानसभा सीट पर इस समय बहुत बड़ा उलटफेर करते हुए भाजपा ने अपने सीटिंग विधायक सुरेंद्र नारायण सिंह का टिकट काटते हुए, यह सीट अपना दल (एस) को दे दी है। गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर रोहनियां विधानसभा सीट से सुनील पटेल को टिकट दिया गया है। सुनील पटेल वर्तमान में अपना दल एस के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। वहीं सपा और कमेरावादी गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर अपना दल के प्रत्याशी अभय पटेल ने नामांकन किया है वहीं धर्मेंद्र सिंह दीनू ने सपा प्रत्याशी के तौर पर रोहनिया से नामांकन किया है। कांग्रेस ने यहां अपने जिलाध्यक्ष राजेश्वर पटेल को टिकट दिया है तो बसपा ने डॉ अरुण सिंह पटेल और आम आदमी पार्टी ने पल्लवी पटेल को टिकट दिया है।
मतदाता
साल 2012 में अस्तित्व में आयी इस सीट पर 4,00,053 मतदाता हैं, जिसमें 2,22,011 पुरुष और 1,78,017 महिला मतदाता हैं। इसके अलावा इस विधानसभा में 25 थर्ड जेंडर मतदाता भी हैं। इस वर्ष इस विधानसभा में 3,787 युवा मतदाता हैं को इस चुनाव में अपने राष्ट्रीय हक़ का इस्तेमाल करते हुए मतदान करेंगे।