पिंडरा विधानसभा सीट : दो बार बदला नाम, कामरेड ऊदल जैसा करि‍श्‍मा नहीं दोहरा सका कोई, जनता करती है दल से ज़्यादा प्रत्याशी को प्यार 

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वाराणसी। बनारस शहर की तीन महत्वपूर्ण विधानसभा सीट के बाद जनपद की पिंडरा विधानसभा सीट (384) सबसे ख़ास मानी जाती हैं। वाराणसी जि‍ले में होने के बावजूद मछलीशहर संसदीय क्षेत्र में आने वाली इस विधानसभा सीट का नाम आज़ादी से अब तक दो बार बदल चुका है। वाराणसी पश्चिमी विधानसभा सीट से शुरू हुआ इसका सफर बाद में कोलअसला और अब पिंडरा पर जाकर रुका है। साल 2012 के चुनाव परि‍सि‍मन में इस सीट का नाम पिंडरा कर दिया गया। 

वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री अन्तरराष्ट्रीय एयरपोर्ट और करखियांव इंडस्ट्रियल स्टेट वाली इस विधानसभा में हाल ही में प्रधानमंत्री ने बनास डेयरी के प्लांट की आधारशिला रखी है। वही इस विधानसभा की सबसे ख़ास बात यह कि यहां के मतदाता दल से ज़्यादा प्रत्याशियों को तवज्जों देते हैं। कुर्मी और भूमि‍हार बाहुल्‍य इस वि‍धानसभा क्षेत्र में आज़ादी के बाद से किसने हासिल की फतह और कौन थे कामरेड ऊदल सहित क्या है यहां का सामाजिक ताना-बाना, जानिए Live VNS की इस ख़ास रिपोर्ट में। 

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राजनीतिक उद्भव 
वाराणसी ज़िले की सबसे लोकप्रिय सीटों में से एक वाराणसी पश्चिमी (अब पिंडरा) में पहले आम चुनाव (1952) में कामरेड ऊदल और कांग्रेस के देवमूर्ति शर्मा के बीच चुनावी जंग हुई, पर भारतीय कम्‍युनि‍स्‍ट पार्टी के ऊदल को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद साल 1957 के आम चुनाव में इस विधानसभा सीट का नाम कोलअसला कर दिया गया। कोलअसला से एक बार फिर कामरेड ऊदल ने चुनाव लड़ा और इसबार कांग्रेस के लाल बहादुर सिंह को हराकर विधानसभा पहुँच गए। 

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हर तीन बार के बाद हारे ऊदल 
कोलअसला विधानसभा (अब पिंडरा) से ऊदल ने साल 1957, 1962 और 1967 के चुनाव में विजयी पताका फहराई, लेकिन साल 1969 में हुए चुनाव में मामूली अंतर से कांग्रेस के अमरनाथ दुबे से हार का सामना करना पड़ा। साल 1974 के चुनाव में एक बार फिर कामरेड ऊदल ने चुनावी ताल ठोंकी और राष्ट्रीय क्रान्ति दल के विरेंद्र प्रताप सिंह को हराया और विधानसभा पहुँच गए। उसके बाद ऊदल लगातार 1977 और 1980 के चुनाव में भी जीते लेकिन साल 1985 के चुनाव में उन्हें एक बार फिर कांग्रेस के उम्मीदवार रामकरण पटेल से चुनाव हारना पड़ा। उसके बाद साल 1989, 1991 और 1993 में भी ऊदल ने अपना झंडा बुलन्द किया। 

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भाजपा के अजय राय ने भेदा ऊदल का किला
दल से ज़्यादा प्रत्याशियों को तवज्जो देने वाली इस विधानसभा पर साल 1996 में हुए चुनावों में ऊदल के कामरेड किले को उस समय भाजपा के टिकट से लड़े अजय राय ने ध्वस्त कर दिया। ऊदल ने इस चुनाव में जनता से आखरी बार चुनाव जिताने की बात भी कही थी पर मात्र 400 वोटों से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा, जिसके बाद ऊदल ने फिर कभी राजनीतिक रण में कदम नहीं रखा। इसके बाद लगातार 2002, 2007, 2009 उपचुनाव और 2012 के चुनाव में पिंडरा विधानसभा से अजय राय ने विजय हासिल की पर भाजपा के प्रत्याशी ने साल 2017 में अजय राय के गढ़ में सेंधमारी कर दी और उन्हें हार का मुंह देखना पड़ गया। 

मौजूदा परिदृश्य 
साल 2017 का चुनाव पिंडरा वि‍धानसभा सीट के लि‍ये काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। लोगों ने पांच बार से जीतते आ रहे कांग्रेस के अजय राय को तीसरे नंबर पर भेज दिया और भाजपा ने यहाँ विजय पताका लहराई। भाजपा के डॉ अवधेश राय ने 90,614 मत पाकर अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा के बाबूलाल को 36,849 मतों से हराया। बसपा के बाबूलाल को 53,765 और कांग्रेस के अजय राय को 48,189 मत प्राप्त हुए।

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सामाजिक तानाबाना 
वाराणसी की यह विधानसभा सीट कामगारों और किसानों की बहुलता वाली सीट है। यहां खेती-किसानी पर आज भी ज़्यादा ध्यान दिया जाता है और उन्नत कृषि की तरफ मौजूदा सरकार के प्रयासों से इस क्षेत्र में खेती-किसानी को नयी ऊर्जा मिली है। इसके अलावा कामगार तबका भी यहां ज़्यादा है जो भारत के साथ ही साथ विदेशों भी कार्यरत है। 

कुल मतदाता
वाराणसी की पिंडरा विधानसभा में कुल मतदाता 3,69,265 हैं, जिसमें पुरुष मतदाता 1,99,173 और महिला मतदाता 1,70,078 हैं। इस बार अपने मताधिकार का पहली बार प्रयोग करने वाले युवा मतदाताओं की संख्या 4,897 है।

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