वाराणसी शहर दक्षिणी सीट : काशी की हृदयस्थली में क्या है चुनावी समीकरण, जानिए आज़ादी के बाद जनता ने किसको नवाज़ा और किसे किया दरकिनार

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वाराणसी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का बिगुल 8 जनवरी को मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने चुनाव तारीखों का एलान कर फूंका था। इसके बाद से ही सभी पार्टियां अपने दल को मज़बूत और सत्ता का असली हकदार बताने और अपने चुनाव प्रचार में आयोग की गाइडलाइन के तहत लग गयी हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपना महत्वपूर्ण मुकाम रखने वाला पूर्वांचल और उसमे भी सबसे हॉट प्रधानमंत्री की संसदीय सीट वाराणसी में 8 विधानसभा सीट हैं जो इस वर्ष शायद प्रदेश की राजनीति का तानाबाना बुने। 

ऐसे में Live VNS अगले 8 दिनों तक आप को इन आठों विधानसभाओं के गठन, विधायक, पार्टियों के दबदबे के अलावा सामजिक तानाबाना और वोटर के रुख को पेश करेगा। सबसे पहले शहर की सबसे महत्वपूर्ण शहर दक्षिणी विधानसभा सीट का परिचय और यहां के मतदाताओं का मूड भी बताएँगे। 

काशी की है हृदयस्थली 
धर्म और आस्था की नगरी काशी में आयने वाला हर व्यक्ति काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव, देवाधिदेव बाबा विश्वनाथ, माता अन्नपूर्णा और काशी के प्रसिद्द गंगा तट पर अवश्य पहुंचता है और अपनी आस्था इनके प्रति दर्शाता है।  काशी के ये सभी प्रमुख स्थल यहां सबसे ख़ास शहर दक्षिणी विधानसभा में पड़ता है और इसी सीट से कभी प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ सम्पूर्णानन्द ने भी अपनी किस्मत आज़माई थी और विधानसभा पहुंचे थे दोबारा 1957 में विधायक बनने के बाद उन्होंने प्रदेश की बागडोर भी संभाली थी।  

राजनीतिक उद्भव 
वाराणसी की शहर दक्षिणी सीट का उद्भव आज़ादी के फ़ौरन बाद ही हो गया और पहले विधानसभा चुनाव में इस सीट से दो विधायक चुने गए। पहले चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के राजनारायण और कांग्रेस से सम्पूर्णानन्द विधानसभा पहुंचे थे। इसके बाद साल 1957 में हुआ आम चुनाव में एक बारे फिर सम्पूर्णानन्द ने इस  सीट से ताल ठोकी और जीतकर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने। 

कब किसने जीती बाज़ी 
1962 में कांग्रेस के गिरधारी लाल, 1967 में कम्युनिस्ट पार्टी के रुस्तम सैटिन, 1969 में जनसंघ के सचींद्र नाथ बख्शी और 1974 में जनसंघ के ही चरणदास सेठ विधायक निर्वाचित हुए। 1977 में जनता पार्टी के रामबली तिवारी, 1980 में कैलाश टंडन, 1985 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के टिकट पर पहली बार श्यामदेव राय चौधरी दादा चुनाव मैदान में उतरे और उन्हें कांग्रेस के रजनी कांत से मात खानी पड़ी। 

दादा का रहा वर्चस्व 
साल 1985 में चुनाव हारने के बाद दादा पर एक बार फिर साल 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने भरोसा जताया और उन्हें टिकट दे दिया। इस मौके को ज़मीनी कार्यकर्ता दादा ने हाथों-हाथ लिया और जीतोड़ मेहनती के साथ कांग्रेस के कद्दावर नेता रजनीकांत को हरा दिया। इसके बाद जैसे दादा ने शहर दक्षिणी विधानसभा सीट पर अपनी सत्ता जमा ली हो और लगातार साल 2012 के चुनाव तक दादा इस विधानसभा से विधायक रहे और सरकारों को अपने धरने, अनशन से हिलाने वाले नेताओं में उनका नाम शुमार रहा। श्यामदेव राय चौधरी इस सीट पर जीत की गारंटी बन गए। श्यामदेव राय चौधरी इस सीट से लगातार सात बार विधायक रहे, वे 1989, 1991, 1993, 1996, 2002, 2007 और 2012  में विधायक निर्वाचित हुए। 

मौजूदा परिदृश्य 
साल 2017 में भाजपा ने डॉ नीलकंठ तिवारी पर अपना दांव लगाया और उन्होंने सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी डॉ राजेश मिश्रा को 17 हज़ार से अधिक मतों से हराकर सदन का रास्ता तय किया, जो कि इस समय धर्मार्थ कार्य राज्य मंत्री के पद पर हैं और भाजपा ने एक बार फिर उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया है वहीँ समाजवादी पार्टी ने युवा नेता किशन दीक्षित पर अपना दांव लगाया है। वहीं कांग्रेस और बसपा ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। 

सामजिक समीकरण 
शहर दक्षिणी विधानसभा सीट पर कुल 3 लाख 16 हज़ार 328 मतदाता हैं। इनमे ब्रह्मण, वैश्य, मुस्लिम मतदाता इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं तो यादव समाज भी इस विधानसभा सीट पर अपनी धमक रखता है लेकिन साल 1989 से अभी तक यहाँ भाजपा के किले को भेदा नहीं जा सका है।

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