संस्कृत सनातनी भाषा है, प्रत्येक भारतीय को इसका अध्ययन करना चाहिए : स्वामी परिपूर्णानंद

रांची, 30 मार्च (हि.स.)। संस्कृत भारती झारखंड प्रांत का प्रदेशस्तरीय दो दिवसीय प्रांत सम्मेलन का शुभारंभ रविवार को नामकुम स्थित आचार्यकुलम विद्यालय के सभागार में हुआ।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि स्वामी परिपूर्णानंद ने कहा कि किसी भी भाष्य या टीका का अध्ययन भाषा ज्ञान के बिना असंभव है। संस्कृत भाषा सनातनी और प्राचीन भाषा है, इसका अध्ययन प्रत्येक भारतीय को करना चाहिए। किसी भी व्यक्ति के अभ्युदय का स्रोत स्वधर्म है और यह गीता के अनुसार योग बुद्धि से ही संभव है। योग बुद्धि से चित्त अर्थात् अंतःकरण निर्मल हो जाता है, जिससे सत् ज्ञान को धारण करने में सहायता मिलती है।
अध्यक्षीय भाषण में चंद्रकांत शुक्ल ने कहा कि पृथ्वी की सृष्टि एक अरब, 95 करोड़, 58 लाख, 126 वर्ष पूर्व आज ही के दिन हुई थी। इस हिंदू नववर्ष संवत्सर का नाम सिद्धार्थ है। उन्होंने प्रतिनिधियों को संस्कृत भाषा की उपयोगिता और कार्य क्षेत्र के विषय में विस्तृत जानकारी देते हुए प्रोत्साहित किया।
इस सम्मेलन के मुख्य वक्ता हुलास चंद्र ने कहा कि सतयुग में ज्ञान शक्ति, त्रेता में मंत्र शक्ति, द्वापर में युद्ध शक्ति और कलयुग में संघ शक्ति से समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है। कोई भी कार्य समाज को सही दिशा प्रदर्शित करने के लिए करना चाहिए। उपदेशों को जानने से अधिक उसे व्यवहार में लाने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर सारस्वत अतिथि दिव्य स्वामी ने कहा कि जिस भाषा का अभ्यास मुख से होता है, उसी से संबंधित विचार मस्तिष्क में आते हैं। जो संस्कृत की पढ़ाई करते हैं, उनकी आत्मशक्ति का संवर्धन होता है। संस्कृत भारती का ऐसा आयोजन संस्कृत भाषा के रक्षार्थ है। मानव जीवन की सार्थकता ऐसे कार्य से हैं, जो समाज और राष्ट्र को समर्पित हो। तामसिक विचारों से अधिक सात्विक विचार वाले लोगों की मानसिक स्थिति सुदृढ़ होती है, जिसके लिए संस्कृत भाषा सहयोगी होती है।---------------
हिन्दुस्थान समाचार / विकाश कुमार पांडे