वाराणसी शहर उत्तरी विधानसभा सीट : बुनकरों और व्यापारियों की ताकत ने कभी भाजपा, कभी सपा तो कभी कांग्रेस को पहनाया ताज
वाराणसी। भगवान् बुद्ध की उपदेशस्थली सारनाथ, महादेव के प्रिय सारंगनाथ का प्राचीन मंदिर और बुनकारी और बनारसी साड़ी की चमक को चार चांद लगाने का कार्य वाराणसी की 388 - शहर उत्तरी विधानसभा सीट में ही होता है। बुनकर और व्यापारी बहुल सीट पर आज़ादी के बाद कांग्रेस, जनसंघ, भाजपा और सपा ने अपना सपना पूरा किया और कई बार यहाँ परचम लहराया, लेकिन बसपा को अभी भी इस विधानसभा पर जीत की आस है। लगातार दो बार से इस सीट पर भाजपा का कब्ज़ा है।
वाराणसी की शहर उत्तरी विधानसभा सीट पर आज़ादी के बाद वोटरों ने किसे अपने सिर-आंखों पर बैठाया और किसे किया नापसंद। इस बार क्या कहतें हैं चुनावी समीकरण, जानिए Live VNS की इस ख़ास रिपोर्ट में।
बौद्ध अनुयायियों की पवित्र स्थली
भगवान् बुद्ध ने इसी विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले सारनाथ में अपने 5 शिष्यों को पहली बार उपदेश दिया था और उस उपदेश के बाद उन शिष्यों ने पूरे विश्व में बौद्ध धर्म का प्रचार किया। श्रीलंका, जापान, कोरिया, कम्बोडिया सहित कई देशों के लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष यहाँ दर्शन को आते हैं। यह बौद्ध धर्मावलम्बियों के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। इसके अलावा यहां के पुरातात्विक खंडहर से मिली अशोक की लॉट भारत का गौरव है।
सारंगनाथ मंदिर
सारनाथ में ही ऋषि सारंगनाथ का मंदिर है, जिसे जीजा साले का मंदिर कहा जाता है। यहाँ ऋषि सारंगनाथ के साथ ही साथ महादेव भी विराजमान हैं और कहा जाता है कि सावन में यदि कोई व्यक्ति सोमवार के दिन सारंगनाथ मंदिर में महादेव और उनके साले सारंगनाथ का दर्शन कर लेता है उसे बाबा विश्वनाथ के मंदिर के दर्शन के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।
बुनकारी का केंद्र
शहर के ज़्यादातर बुनकर बाहुल्य क्षेत्र इसी विधानसभा में आते हैं। इन इलाकों में ही बनारस की विश्वविख्यात साड़ियों का ताना-बाना बुना जाता हैं। ऐसे में बुनकर इस सीट के लिए ख़ास माहौल तय करते हैं। बुनकर बहुल दोषीपुरा, कोयला बाज़ार, छवि महल का इलाका, बुनकर कालोनी आदि क्षेत्र इसी विधानसभा में हैं।
राजनीतिक उद्भव
शहर उत्तरी विधानसभा क्षेत्र में आजादी के शुरूआती चुनावों को छोड़ दें तो बाद के चुनावों में भगवा ब्रिगेड का ही कब्जा रहा है। 1951 से लगातार तीन बार कांग्रेस ने यहां पर जीत हासिल की, फिर भारतीय जनसंघ ने भी जीत की हैट्रिक लगाई, लेकिन 1980 और 1986 में पहले कांग्रेस (आई) और फिर कांग्रेस के टिकट पर शफी उर रहमान अंसारी को जीत मिली।
1989 से भाजपा और सपा में हो रही लड़ाई
साल 1989 में इस सीट पर भाजपा के अमरनाथ यादव ने विजय पताका फहराई जो लगातार 1991 और 1993 में जारी रही। उसके बाद समाजवादी पार्टी के लोकप्रिय विधायक और पूर्व पार्षद रहे अब्दुल कलाम ने 1996 और 2002 में फतह हासिल की। उनकी ह्त्या के बाद उनकी पत्नी राबिया कलाम ने 2005 उपचुनाव में सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और अपना परचम लहराया। इसके बाद साल 2007 में सपा ने उनका टिकट काट दिया और समद अंसारी को टिकट दिया और समद अंसारी विधानसभा पहुंचे।
मौजूदा परिदृश्य
साल 2012 और साल 2017 के चुनाव में भाजपा ने बसपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन को पटखनी दी और इस समय योगी शासन में राज्यमंत्री रविंद्र जायसवाल ने यहां से यूपी विधानसभा का रास्ता तय किया। साल 2017 के चुनाव में रविंद्र जायसवाल को 1 लाख 16 हज़ार 17 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस- सपा गठबंधन के प्रत्याशी समद अंसारी को 70 हज़ार 515 मत हासिल हुए थे।
इन पार्टियों ने घोषित किया प्रत्याशी
इस विधानसभा सीट पर अभी तक सिर्फ आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित किया है। आम आदमी पार्टी ने डॉ आशीष जायसवाल पर अपना भरोसा जताया है तो भाजपा ने एक बार फिर सिटिंग एमएलए रविंद्र जायसवाल को टिकट दिया है।
कुल मतदाता
वाराणसी शहर उत्तरी विधानसभा क्षेत्र में कुल 4,18,649 मतदाता हैं। इसमें 2,292,91 पुरुष और 1,893,16 महिला मतदाता हैं। वाराणसी की इस विधानसभा में सबसे अधिक 42 थर्ड जेंडर मतदाता भी शामिल हैं। इसके अलावा 4234 युवा मतदाता भी हैं जो पहली बार अपने मतों का प्रयोग करेंगे।
जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की बात करें तो शहर उत्तरी में हिंदू मतदाताओं की संख्या लगभर 2,55,000 और मुस्लिम वोटर की संख्या लगभग 1,45,000 हैं। जातिवार देखें तो इस विधानसभा क्षेत्र में वैश्य बिरादरी की बहुलता है।