निष्काम भाव से किया गया सुमिरन ही आनन्द देता है: श्रीजी

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निष्काम भाव से किया गया सुमिरन ही आनन्द देता है: श्रीजी


लखनऊ,3 अप्रैल (हि.स.)। आपदा प्रबंध संस्थान में विश्व मंगल परिवार सेवा संस्थान की ओर से आयाेजित श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव के तृतीय दिवस श्री धाम वृंदावन से पधारी देवी महेश्वरी श्रीजी नाम महिमा का बखान किया। उन्होंने कहा कि इस कलिकाल में प्रभु का नाम ही भव पार करने का आधार है।

श्रीजी ने कहा कि अनवरत नाम जप चलता रहे। मन में कोई भी छल कपट द्वेष न रहे। निष्काम भाव से किया गया सुमिरन हमें आनन्द प्रदान करता है और प्रभु की प्राप्ति होती है। श्रीजी ने आगे बताया कि गुरु के बिना न ही जीवन की कोई संकल्पना है न ही मृत्यु के बाद जीवन मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है। इसीलिए अपने जीवन में गुरु अवश्य बनाए और उनके प्रति सच्ची श्रद्धा भक्ति होनी चाहिए।

महेश्वरी श्रीजी ने शुकदेव जी की कथा सुनाई और बताया कि महाभारत युद्ध के पश्चात सभी पांडव स्वर्गारोही हो जाते हैं और उनके पौत्र परीक्षित को इंद्रप्रस्थ का राज्य सौंपा जाता है। एक दिन परीक्षित जी शिकार पर निकले हुए थे, वहीं एक काले से व्यक्ति को देखा तो उसने अपना परिचय कलयुग के रूप में दिया और अपने रहने का स्थान मांगा तब परीक्षित ने कलयुग को मदिरालय, वेश्यालय, कुसंग और गलत तरीके से कमाए स्वर्ण में वास करने को कहा। कथा के मुख्य यजमान डॉ. मीता सिंह, शेषाद्रि उपाध्याय, सत्येंद्र सिंह यादव, योगेन्द्र आर्य एवं नीलम आर्य व संजय चतुर्वेदी उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / बृजनंदन

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