सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में स्थापित हुई मां दुर्गा की प्रतिमा, कुलपति ने किया हवन-पूजन

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वाराणसी। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी ने मंगलवार को विश्वविद्यालय के नाट्यशाला में माँ दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना कारकर पूजन किया गया। उस दौरान गणेश देव,गौरी देवी आदि देवों के भी भव्य पंडाल में प्रतिमा स्थापित कर पूजन व हवन किया गया।

कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि विश्वकल्याण,संस्कृत उत्थान,विश्वविद्यालय परिवार के कुशल मनोरथ के लिए नवरात्रि का यह महापर्व मनाया जाता है। नवरात्रि हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है। नवरात्रि शब्द एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। 

नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र, आषाढ,अश्विन मास में प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और महाकाली के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिनके नाम और स्थान क्रमशः इस प्रकार है नंदा देवी योगमाया (विंध्यवासिनी शक्तिपीठ), रक्तदंतिका (सथूर), शाकम्भरी  (सहारनपुर शक्तिपीठ), दुर्गा (काशी), भीमा (पिंजौर) और भ्रामरी (भ्रमराम्बा शक्तिपीठ) नवदुर्गा कहते हैं। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।


शैलपुत्री - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।
ब्रह्मचारिणी - इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।
चंद्रघंटा - इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।
कूष्माण्डा - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
स्कंदमाता - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।
कात्यायनी - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
कालरात्रि - इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।
महागौरी - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।
सिद्धिदात्री - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।


कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि इसके अतिरिक्त नौ देवियों की भी यात्रा की जाती है जोकि दुर्गा देवी के विभिन्न स्वरूपों व अवतारों का प्रतिनिधित्व करती है नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है।

यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से चला आ रहा है। यह पर्व भारतीय संस्कृति,संस्कार से युक्त है।भारतीय संस्कृति में मातृ शक्ति  को पूज्य स्वरुप में माना जाता है,यहां नारी के विभिन्न रूप हैं जहां पैदा होने पर कन्या रूप,माँ,बहन,बेटी और अर्धांगनी के रूप लक्ष्मी स्वरुप मानते हैं यही हमारी संस्कृति है।

उक्त पूजन को विश्वविद्यालय के पुजारी ने कराया। उस दौरान विजय कुमार मणि त्रिपाठी,सुनिल कुमार यादव,सुशील तिवारी,गोविंद त्रिपाठी एवं अन्य लोग उपस्थित रहे।

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