राजनारायण ने स्वतंत्र भारत में समानता, बंधुत्व व सद्भाव के लिए किया संघर्ष किया, सबके लिए रहे मददगार- महाबल मिश्रा

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वाराणसी। समाजवाद के समर्थक लोकबंधु राजनारायण की मातृभूमि गंगापुर भैरोतालाब राजातालाब स्थित डॉ राम मनोहर लोहिया महाविद्यालय में राजनारायण के समाजवादी विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए चिन्तन शिविर का आयोजन किया। साथ ही तीन दिवसीय राजनयण जयंती समारोह का समापन इस संकल्प के साथ हुआ कि राजनरायण के समाजवादी विचार को जन-जन तक पहुंचाने के लिये ब्रह्मर्षि समाज पूरे देश मे सृजनात्मक अभियान चलायेगा। 

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जिसमें संगोष्ठी के साथ पुस्तक वितरण, राजनारायण जी की देश के हर जिले मे मूर्तियो, स्मारकों की स्थापना सहित अनेक रचनात्मक कार्य समाज करेगा। बता दें कि राष्ट्रीय ब्रह्मर्षि महासंघ ने राजनारायण की जयंती पर तीन दिवसीय विविध कार्यक्रम आयोजित हुआ। 

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चिन्तन शिविर की अध्यक्षता करते हुये दिल्ली के पूर्व सांसद महाबल मिश्र ने कहा कि राजनरायण जी 69 साल की उम्र में 80 बार जेल गए। उन्होंने जेल में अपनी उम्र के कुल 17 साल बिताया, जिसमें तीन साल आजादी से पहले और 14 साल आजादी के बाद। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय राजनीति मे राजनारायण ही ऐसी शख्सियत हैं, जिसके कारण केंद्र में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी और आज देश में कांग्रेस विहीन सरकार बनाने की संकल्पना साकार हो रही है। उन्होंने कहा कि आजाद भारत में समता, बन्धुत्व और सद्भाव की खातिर कम महापुरूषो ने जीवन में इतना संघर्ष किया होगा। लोकबंधु हर किसी के लिए उपलब्ध और हर किसी के लिए मददगार थे।
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महाबल मिश्रा ने कहा कि राजनारायण जी का नारा "गरीब को मिले रोटी तो, मेरी जान भी सस्ती है" ने मेरे जीवन को समाज के अंतिम पायदान पर खड़े गरीबों की सेवा के लिये अभिप्रेरित कर पूरा जीवन सेवा में लगा दिया।

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मुख्य अतिथि ब्रह्मर्षि महासंघ के मुख्य संरक्षक नरेन्द्र त्यागी ने कहा कि 60 के दशक के अन्त में आते-आते इंदिरा जी एक मजबूत प्रधानमंत्री बन चुकी थीं। कांग्रेस के ताकतवर नेता भी उनके सामने पानी मांग रहे थे। विपक्ष बहुत ही कमजोर स्थिति में था, ऐसे में जब इंदिरा गांधी ने वर्ष 1971 में दोबारा चुनाव जीतकर आईं तो किसी बड़े नेता में उनसे टकराने की हिम्मत नहीं थी। उस दौर में राजनारायण जी ना केवल उनसे भिड़े, बल्कि विपक्ष को एक करने की जमीन भी बनाई। अगर वह इंदिरा को मुकदमे में टक्कर नहीं देते तो जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति नही हो पाती, ना ही आपातकाल लगता और ना ही 1977 के चुनावों में इंदिरा गांधी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ता।

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राजनारायण का जन्म जमींदार परिवार में हुआ था, बहुतायत में जमीनें थीं लंबी चौड़ी खेती, रसूख और रूतबा था लेकिन वह अलग मिट्टी के बने थे उन्होंने अपने हिस्से की सारी जमीन गरीबों को दे दी उनके खुद के परिवार में बहुत विरोध हुआ। भाइयों ने बुरा माना लेकिन वह टस से मस नहीं हुए, यहां तक कि अपने बेटों के लिए कोई संपत्ति नहीं बनाई उनका जीवन हमेशा सादगी से भरा रहा। साधारण कपड़ा पहनते थे जीवन में कोई लग्जरी नहीं थी। उनके पास जो भी पैसा आता था, वो जरूरतमंदों में बंट जाता था। कभी अपने लिए एक पैसा नहीं जुटाया। 

31 दिसंबर 1986 को राजनारायण जी का निधन हो गया। लोकबन्धु राजनारायण के लिए डॉ. लोहिया अक्सर कहा करते थे कि जब तक राजनारायण जिंदा हैं तब तक देश में लोकतन्त्र मर नहीं सकता।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रबोधिनी फाउंडेशन के महासचिव विनय शंकर राय "मुन्ना" ने कहा कि लोकतन्त्र के सजग प्रहरी, समाजवादी मूल्यों के रक्षक, काशी का नंगा फकीर, लोकबन्धु राजनरायण के विचारों को आत्मसात कर उसका अनुसरण करना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। धन्यवाद ज्ञापन अधिवक्ता आलोक सिंह ने किया।
 
इस अवसर पर प्रमुख रूप से सुनील सिंह पूर्व अध्यक्ष तहसील बार संघ, सुशील सिंह "तोयज, डा. आशुतोष कुमार,अजीत त्यागी, महेश त्यागी, राकेश त्यागी, विरेंद्र त्यागी, राजीव सिंह, रजनीश त्यागी, धीरज मिश्रा, राहुल सिंह, पंकज प्रधान, रवि राय उर्फ हिलमिल, नवीन सिंह सहित अन्य कई लोगो ने विचार व्यक्त किया।

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