पूर्वांचल में जातिगत मजबूती के बावजूद कमजोर पड़े राजभर,विपक्षी सियासी समीकरण साधने में रहे सफल

पूर्वांचल में जातिगत मजबूती के बावजूद कमजोर पड़े राजभर,विपक्षी सियासी समीकरण साधने में रहे सफल
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पूर्वांचल में जातिगत मजबूती के बावजूद कमजोर पड़े राजभर,विपक्षी सियासी समीकरण साधने में रहे सफल


मऊ, 06 जून (हि.स.)। लोकसभा चुनाव में उप्र के पूर्वांचल में राजभर मतों पर ओमप्रकाश राजभर पकड़ बरकरार नहीं रख सके, जिसका सीधा उदाहरण घोसी लोकसभा क्षेत्र में देखने को मिला है। छड़ी निशान से मिलता जुलता हाॅकी चुनाव चिन्ह पर निर्दल लीलावती राजभर को भी 47527 के आसपास मत मिले। नये सियासी समीकरणों से पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी ने 13 सीटों को साधा और 10 संसदीय क्षेत्रों पर जीत हासिल की है, वहीं तीन पर साइकिल ने मजबूती से चुनाव लड़ीं।

पूर्वांचल में राजभर के प्रभाव वाली सीटों पर वोटों में बिखराव हुआ, जिसका फायदा चुनाव में समाजवादी पार्टी को मिला। इस चुनाव में विपक्षी रणनीतिकारों के नए प्रयोग में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की भूमिका को अहम माना जा रहा है। पार्टी और उसके नेता इस फार्मूले पर काम करते रहें। प्रचार के दौरान इनसे जुड़े मुद्दे को प्रमुखता से उठाया और बाज़ी अपने नाम कर ली।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभाषपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर को लोकसभा चुनाव में बड़ा झटका लगा है। घोसी निर्वाचन क्षेत्र से उनके बेटे डॉक्टर अरविंद राजभर डेढ़ लाख से अधिक वोटों से चुनाव हार गए। सलेमपुर और बलिया के राजभर मतों पर भी ओमप्रकाश की पकड़ ढीली नजर आ रही है। यह दोनों सीटें भाजपा के हाथ से निकल गईं। पूर्वांचल की कई सीटों पर राजभर वोट निर्णायक की भूमिका में रहते हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा-सुभासपा के मिलन से भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा था। यही वजह रही कि भाजपा ने फिर सुभासपा को अपने खेमे में कर लिया। हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले घोसी के उपचुनाव में ओमप्रकाश राजभर को एक परीक्षा से गुजरना पड़ा था। भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान को जितने तथा राजभर वोटों को उनके पक्ष में करने के लिए ओमप्रकाश ने एड़ी चोटी का जोर लगाया, लेकिन नतीजा भाजपा के पक्ष में नहीं आया।

लोकसभा चुनाव में ओमप्रकाश ने अपने हिस्से में आई घोषित सीट पर बेटे अरविंद राजभर को लड़ाया। भाजपा को उम्मीद थी कि ओमप्रकाश राजभर का लाभ सलेमपुर और बलिया, गाजीपुर की सीटों पर मिलेगी, लेकिन नतीजा चौंकाने वाला आया। सलेमपुर में भाजपा उम्मीदवार रविंद्र कुशवाहा सुभासपा का साथ होने के बावजूद करीब 3000 वोटों से चुनाव हार गए। उधर, बलिया संसदीय सीट से फेफना और जहुराबाद विधानसभा क्षेत्र में राजभर मतों की भूमिका अहम है। वह भी सीट बीजेपी हार गई और सपा के खाते में सीट चली गई। वहीं गाजीपुर की सीट भी बीजेपी हार गई और सपा से अफजाल अंसारी चुनाव जीत गए।

पांचवें चरण के चुनाव में इंडिया (आईएनडीआईए) गठबंधन ने आरक्षण का मुद्दा और महिलाओं को एक लाख रुपये सालाना देने के नाम पर मास्टर स्ट्रोक खेला। जिसका सीधा फायदा पांचवें-छठवें और सातवें चरण में कांग्रेस और सपा गठबंधन को मिला। इस मास्टर स्ट्रोक के चलते ही बहुजन समाज पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक भी विपक्षी गठबंधन के पक्ष में शिफ्ट हो गया और उन्हें चुनाव में इसका लाभ कई सीटें जीतने में मिला।

नए सियासी समीकरणों की बात करें तो वाराणसी सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीत का फासला उनके कामों को देखते हुए किया जाए तो चिंतनीय है। इनसे ज्यादा मतों से तो रायबरेली सीट से राहुल गांधी ने जीत दर्ज की है।

बहरहाल चुनाव में एक दल और प्रत्याशी की हार होती है तो किसी की जीत होती ही है। सपा की साइकिल के पक्ष में आए जनाधार के बाद उप्र की राजनीति और सरकार में फेरबदल की संभावनाएं भी तेज हो गई हैं। ऐसा इसलिए भी है कि प्रदेश सरकार के मंत्री जितिन प्रसाद समेत दो मंत्री लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर दिल्ली की राजनीति में जाने वाले हैं। ऐसे में उनके अपना त्यागपत्र देना होगा। उनके त्याग पत्र और भारत सरकार के गठन के बाद उप्र में भी मंत्रीमंडल में बदलाव किए जाएंगे।

हिन्दुस्थान समाचार/वेद नारायण/मोहित

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