पं. विद्यानिवास मिश्र की जन्मशती पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
वक्ता बोले— इतिहास-बोध की चेतना को समझने की आवश्यकता
—भारतीय संस्कृति और भारत-बोध के विविध आयामों का किया उल्लेख
वाराणसी, 18 दिसंबर (हि.स.)। प्रख्यात भाषाविद् एवं हिन्दी साहित्यकार पद्मभूषण पंडित विद्यानिवास मिश्र की जन्मशती के अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘भारत बोध : स्वरूप तथा आयाम’ का गुरुवार को समापन हो गया। संगोष्ठी का आयोजन काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) स्थित मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र सभागार में किया गया।
अंतिम दिन के सत्र की शुरुआत बृहस्पति पाण्डेय द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण से हुई। प्रथम सत्र का विषय ‘भारतीय स्वभाव और स्वधर्म’ रहा। इसमें प्रो. हीरामन तिवारी (एसोसिएट डीन, सामाजिक विज्ञान संकाय, जेएनयू, नई दिल्ली) ने राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं भौगोलिक विविधता में विकसित भारतीयता पर विचार रखे। प्रो. हरिदत्त शर्मा (पूर्व विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग, प्रयागराज) ने विदेश में स्वदेशबोध विषय पर व्याख्यान दिया। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. अरविंद मोहन ने भारत उन्नति: नवाचार और परंपरा के पारस्परिक संबंध पर विचार व्यक्त किए।
प्रो. नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने पं. विद्यानिवास मिश्र के कला-चिंतन पर प्रकाश डाला, जबकि प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी (संस्कृत विभागाध्यक्ष, बीएचयू) ने संस्कृत साहित्य में भारत-बोध की अवधारणा पर चर्चा की। सत्र की अध्यक्षता प्रो. संजय कुमार (समन्वयक, मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र) ने की।
दूसरे सत्र का विषय ‘भारत-राष्ट्र था’ रहेगा। इसमें डॉ. रामसुधार सिंह ने परंपरा एवं संस्कृति, डॉ. सुप्रिया पाठक ने नवोदित भारत: संकल्प और सामर्थ्य, डॉ. मिथिलेश ने भविष्य का भारत: आत्मनिर्भर एवं विकसित भारत तथा डॉ. उदय प्रकाश पाण्डेय ने स्वराज एवं आत्मनिर्भरता विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
भारतीय साहित्य, कला एवं संस्कृति के मर्मज्ञ इंदीवर ने भारत की सांस्कृतिक दृष्टि पर व्याख्यान देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति प्रकृति से उपजी है। उन्होंने विचारक जान मार्शल के कथन का उल्लेख करते हुए इतिहास-बोध की चेतना को समझने की आवश्यकता पर बल दिया।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. अम्बिका दत्त शर्मा (विभागाध्यक्ष, डॉ. एच.एस. गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर) रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईजीएनसीए, नई दिल्ली के संकाय प्रमुख प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने की। उन्होंने संगोष्ठी में प्रस्तुत सभी वक्तव्यों को पुस्तक रूप में प्रकाशित करने की घोषणा की। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रजनीकांत त्रिपाठी ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. दयानिधि मिश्र (सचिव, विद्याश्री न्यास, वाराणसी) ने प्रस्तुत किया।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

