अष्ट विकृतियाँ एक ऐसा सुरक्षा जाल, यह किसी भी उच्चारण की त्रुटियों को पकड़ती हैं : स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
-ज्योतिष्पीठाधीश्वर ने शुक्ल यजुर्वेद माध्यन्दिनी घनपाठ ग्रन्थ का किया लोकार्पण
वाराणसी, 16 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी में मंगलवार शाम ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने शुक्ल यजुर्वेद माध्यन्दिनी घनपाठ ग्रन्थ का लोकार्पण किया। केदारघाट स्थित श्री विद्यामठ में ग्रंथ के लोकार्पण के बाद शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बताया कि ज्योतिष्पीठ ने यजुर्वेद के घनपाठ का पहली बार प्रकाशन किया है। ग्रंथ को लिखने वाले डॉ. मणि कुमार झा केे परिश्रम की सराहना की। शंकराचार्य ने वेदों की अष्ट विकृतियों(आठ विशेष पाठ विधियाँ) को वेदों के मूल स्वरूप का अजेय संरक्षक घोषित किया। उन्होंने कहा कि ये पाठ विधियाँ(जटा, माला, शिखा, रेखा, ध्वज, दण्ड, रथ और घन) केवल कंठस्थ करने की तकनीकें नहीं हैं, बल्कि ये एक अद्वितीय वैज्ञानिक सत्यापन तंत्र हैं, जिन्होंने सहस्राब्दियों तक वैदिक मंत्रों के प्रत्येक अक्षर, स्वर(उदात्त, अनुदात्त, स्वरित) और मात्रा की त्रुटिहीन शुद्धता को सुनिश्चित किया है।
शंकराचार्य ने कहा कि विश्व की किसी भी मौखिक परंपरा में ज्ञान को संरक्षित करने के लिए ऐसा जटिल और बहु-स्तरीय तंत्र उपलब्ध नहीं है। अष्ट विकृतियां एक ऐसा सुरक्षा जाल हैं जो किसी भी उच्चारण या पाठ संबंधी त्रुटि को तत्काल पकड़ लेती हैं। विशेषकर 'घन पाठ', वैदिक मंत्रों के पदों को जटिल, प्रत्यावर्ती क्रम में व्यवस्थित करता है। यह प्रणाली लगभग एक गणितीय एल्गोरिथम की तरह काम करती है, जहाँ एक भी अक्षर का विस्थापन या परिवर्तन पाठ को तुरंत खंडित कर देगा। हमारी यह परंपरा ही वह कारण है कि यूनेस्कों ने भी वैदिक जप की परंपरा को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी है। यह सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव सभ्यता की धरोहर है। उन्होंने कहा कि आज जब सूचनाओं को डिजिटल रूप से संरक्षित किया जाता है, तब भी वेदों के संरक्षण की यह मौखिक विधि हमें सिखाती है कि कैसे मानव स्मृति और शुद्ध उच्चारण का समन्वय सबसे स्थायी संरक्षण विधि हो सकता है।
शंकराचार्य ने कहा कि हमारा यह दृढ़ मत है कि विकृति पाठ ही वह अक्षय कवच है, जिसने वेदों को आक्रमणों, विस्मरण और समय के थपेड़ों से बचाए रखा है। इसके पहले डॉ. मणिकुमार झा की अगुआई में घनपाठीयों ने वैदिक मंत्रोच्चार के मध्य शंकराचार्य महाराज के चरण पादुका का पूजन किया। कार्यक्रम के आरंभ में चारों वेदों के विद्वानों ने चतुर्वेद पारायण किया। जिसके अनंतर विद्वानों का बसंत पूजन भी हुआ। संचालन वैदिक विद्वान पांडुरंगा पुराणिक ने किया। इस अवसर पर वैदिक विद्वान प्रो. हृदयरंजन शर्मा, प्रो. भी किशोर मिश्र, प्रो. राममूर्ति चतुर्वेदी, प्रो. पतंजलि मिश्र, प्रो. महेंद्र पाण्डेय, प्रो. सुनील कात्यान, प्रो. कमलेश झा, वैदिक घनपाठी रामचंद्र देव, भालचंद्र बादल, जयकृष्ण दीक्षित, नारायण उपाध्याय, अरुण दीक्षित, वी. चंद्रशेखर द्रविड़, वीरेश्वर दातार, नारायण घनपाठी, गोपाल रटाटे आदि की भी मौजूदगी रही।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

