हमीरपुर-महोबा सीट पर जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिला था वनवास
41 प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में आने से साइकिल हो गई थी पंचर
हमीरपुर, 08 मई (हि.स.)। हमीरपुर-महोबा संसदीय क्षेत्र में पिछले बहत्तर सालों में पहली बार 41 प्रत्याशियों ने चुनाव मैदान में आकर ताल ठोंकी थी। दर्जनों निर्दलीय उम्मीवारों के कारण जहां निर्वाचन प्रक्रिया से जुड़े अफसरों को बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ी थी वहीं वोटिंग का ग्राफ नीचे गिरने से कांग्रेस वनवास पर चली गई थी। हालांकि ग्यारहवीं लोकसभा केचुनाव में साढ़े तीन हजार से ज्यादा प्रत्याशियों के कारण भाजपा ने लगातार तीसरी बार कमल खिलाया था। अबकी बार ग्यारह प्रत्याशी चुनाव की पिच पर बैटिंग करने आए हैं जो भाजपा और इंडिया गठबंधन के चुनावी गणित बिगाडऩे में जुटे हैं।
बुंदेलखंड में हमीरपुर-महोबा संसदीय क्षेत्र की सीट पर भाजपा, कांग्रेस समेत अन्य प्रमुख दलों की प्रतिष्ठा आम चुनावों में दांव पर लगती रही है। इसीलिए जातीय आधार पर जमीनी नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा गया। वर्ष 1996 के आम चुनाव में संसदीय क्षेत्र में 17.36 लाख 291 मतदाता थे जिनमें 9.48 लाख 250 पुरुष मतदाता थे। मतदाताओं ने वोटिंग के दिन बूथों पर जाकर बड़े ही उत्साह से बैलेट पेपर पर मुहर लगाई थी। हालांकि मतदान यहां 43.89 फीसदी ही हुआ था। इसके बावजूद भाजपा ने पहली बार सपा को पराजित कर सीट पर कब्जा किया था। उस समय इकतालीस प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे जिसके कारण निर्वाचन विभाग को अतिरिक्त व्यवस्थाएं करनी पड़ी थी। अबकी बार लोकसभा के चुनाव के मतदान 20 मई को होने है। तपती धूप में चुनाव मैदान में भाजपा और इंडिया गठबंधन समेत अन्य प्रत्याशी पसीना बहा रहे है।
72 साल में आम चुनाव में पहली बार 41 प्रत्याशी आए थे सियासी मैदान में
हमीरपुर-महोबा संसदीय क्षेत्र में बहतर सालों में पहली बार चुनावी दंगल में बड़ा घमासान मचा था। वर्ष 1996 के आम चुनाव में भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस समेत 41 प्रत्याशियों के किस्मत अजमाने से निर्वाचन डिपार्टमेंट को बड़ी परेशानी उठानी पड़ी थी। वर्ष 1991 में प्रमुख दलों समेत 17 प्रत्याशी सांसद बनने को चुनाव मैदान में आए थे जबकि 1996 में 41, वर्ष 1998 में 12, वर्ष 1999 में 16, वर्ष 2004 में 15, वर्ष 2009 में 15, वर्ष 2014 में 15 व 2019 के आम चुनाव में भाजपा समेत 14 प्रत्याशी चुनाव मैदान में आए थे। इस बार भाजपा, बसपा और इंडिया गठबंधन समेत 11 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे है जिससे दलीय प्रत्याशियों के चुनावी समीकरण भी कहीं कम और कहीं ज्यादा गड़बड़ा सकते हैं।
आम चुनाव में कांग्रेस के बड़े राजघराने के नेता की भी जमानत हुई थी जब्त
हमीरपुर-महोबा संसदीय क्षेत्र में लम्बे समय बाद राममंदिर के मुद्दे पर 1991 के आम चुनाव में भाजपा ने जीत का परचम फहराया था। यहां की सीट पर झांसी के एक बड़े कारोबारी ने कमल खिलाया था। उन्हें साढ़े चौबीस फीसदी मत मिले थे। भाजपा की 1996 में भी जीत बरकरार रही। 39.72 फीसदी मत लेकर भाजपा ने लगातार दूसरी बार सीट पर कब्जा किया था। सपा दूसरे स्थान पर रही वहीं बसपा 21.95 फीसदी वोट लेकर तीसरे नम्बर की पार्टी इस क्षेत्र में बनी थी। वर्ष 1996 के आम चुनाव में सर्वाधिक इकतालीस प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में आने के कारण कांग्रेस के सबसे बड़े राजघराने के नेता को न सिर्फ हार का सामना करना पड़ा बल्कि जमानत भी जब्त हुई थी। कांग्रेस को सिर्फ 7.12 फीसदी मत मिले थे।
वोटिंग का ग्राफ नीचे गिरने से सपा हुई थी पंचर, कांग्रेस को मिला था बनवास
बुंदेलखंड की हमीरपुर-महोबा लोकसभा सीट पर आम चुनाव में अजब गजब रंग सामने आए थे। राममंदिर आन्दोलन को लेकर भाजपा को कई दशक बाद पहली बार यहां की सीट मिली थी। भाजपा ने ग्यारहवीं लोकसभा के चुनाव में ही सीट पर दूसरी बार जीत का परचम फहराया था। इतना ही नहीं 1998 के आम चुनाव में भी भाजपा ने हमीरपुर-महोबा की सीट पर हैट्रिक लगाई थी। लेकिन 1999 में यह सीट बसपा के खाते में चली गई थी। पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ता व बुजुर्ग केके त्रिवेदी ने बताया कि 1996 के आम चुनाव में 43.89 फीसदी मतदान हुआ था। वोटिंग का ग्राफ नीचे गिरने के कारण सीट पर भाजपा का कमल खिला था। वहीं सपा की साइकिल पंचर हो गई थी। और तो और कांग्रेस इस चुनाव में बनवास पर चली गई थी।
हिन्दुस्थान समाचार/पंकज//बृजनंदन
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