सामाजिक-आर्थिक सांस्कृतिक बदलाव के लिए शोध जरूरी : डॉ. माणिक

सामाजिक-आर्थिक सांस्कृतिक बदलाव के लिए शोध जरूरी : डॉ. माणिक
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सामाजिक-आर्थिक सांस्कृतिक बदलाव के लिए शोध जरूरी : डॉ. माणिक


जौनपुर,10 फरवरी (हि.स.)। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के संकाय भवन के संगोष्ठी हाल में शनिवार को दो सप्ताह का कैपेसिटी बिल्डिंग कार्यक्रम का आयोजन हुआ।

कार्यशाला के द्वितीय सत्र में मुख्य वक्ता गोविंद वल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान प्रयागराज से आये डॉ माणिक कुमार ने कहा कि समाज-देश-विश्व में हो रहे सामाजिक-आर्थिक सांस्कृतिक बदलाव के अध्ययन के लिए शोध जरूरी है।

उन्होंने कहा कि इसके लिए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण वार्षिक रिपोर्ट व राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़ों के स्ट्रेटा, एसपीएसएस सॉफ्टवेयर के माध्यम से बेरोजगारी,रोजगार इत्यादि अवयवों का अवलोकन करना सिखाया। प्राध्यापक-शोधार्थी को इस प्रकार के शोध के जरिए समस्या निवारण का प्रयास कर सकता है। सामाजिक शोध में आने वाली समस्याओं बारे भी डॉ कुमार ने चर्चा की।

प्रबंध संकाय के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो.अविनाश पाथर्डीरकर ने प्रथम सत्र में सहसंबंध, रिग्रेशन एनालिसिस, उसके अपवाद व उपयोगिता पर प्रतिभागियों को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि सहसंबंध अनुसंधान दो चरों के बीच संबंध का एक सांख्यिकीय माप है। इसमें एक शोधकर्ता दो चर को मापता है,किसी भी बाहरी चर के प्रभाव के बिना उनके बीच सांख्यिकीय संबंध को समझतें हुये उसका आकलन करता है और यह निर्धारित करता है कि वे सहसंबद्ध हैं या नहीं।

उन्होंने इसको अमेरिका में हुए आइसक्रीम,अपराध बढ़ोतरी पर हुए उदाहरण के साथ समझाते हुए इसकी व्याहारिक पहलू पर प्रकाश डालते हुए प्रतिभागियों को अलर्ट भी किया। इस कार्यशाला में प्रो.अजय प्रताप सिंह, डॉ मनोज पांडेय, डॉ.जाह्नवी श्रीवास्तव, डॉ.अनु त्यागी,अनुपम आदि ने भाग लिया।

हिन्दुस्थान समाचार/विश्व प्रकाश/राजेश

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