वाराणसी: सर्द मौसम में श्रद्धालु सिर पर बोरा और हाथ में झोला लेकर निकले अंतरगृही यात्रा पर

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वाराणसी: सर्द मौसम में श्रद्धालु सिर पर बोरा और हाथ में झोला लेकर निकले अंतरगृही यात्रा पर


वाराणसी: सर्द मौसम में श्रद्धालु सिर पर बोरा और हाथ में झोला लेकर निकले अंतरगृही यात्रा पर


—हर हर महादेव,काशी विश्वनाथ शंभों की गूंज परिक्रमा पथ पर, देर शाम मणिकर्णिका तीर्थ पर स्नान से परिक्रमा यात्रा शुरू हुई, चौकाघाट पर रात्रि विश्राम के दौरान श्रद्धालुओं ने बाटी-चोखा का प्रसाद लगाकर खाया

वाराणसी,4 दिसम्बर (हि.स.)। मार्गशीर्ष माह (अगहन माह) के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर गुरूवार को काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ की नगरी में पौराणिक अंतरगृही परिक्रमा यात्रा में श्रद्धालु नर—नारियों का सैलाब उमड़ पड़ा। उबड़ खाबड़ मार्ग और सर्द मौसम में सनातनी श्रद्धालु और महिलाएं नंगे पांव आस्था की डगर पर चल पड़े। सिर पर खाने पीने के सामान की गठरी और कंधे पर झोला लटकाए ग्रामीण महिलाओं के श्रद्धाभाव को देख शहर में आए विदेशी पर्यटक चकित रह गए। पापों के शमन के लिए परिक्रमा पथ में शामिल श्रद्धालु पूरे 75 तीर्थों का परिक्रमा कर रहे हैं। कठिन यात्रा की शुरुआत बुधवार देर शाम पंच विनायकों के दर्शन, बाबा विश्वनाथ के मुक्ति मंडप में संकल्प और मणिकर्णिका तीर्थ पर स्नान और मणिकर्णिकेश्वर महादेव के दर्शन से हुई। रात में श्रद्धालु मणिकर्णिका घाट से नाव से अस्सी घाट पहुंचे। फिर यहां से नंगे पाव पैदल अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर, श्री संकटमोचन होते हुए वरुणा पुल तक यात्रा किया। चौकाघाट के पास रात्रि विश्राम के दौरान श्रद्धालुओं ने सड़क किनारे बाटी चोखा का प्रसाद ग्रहण किया। शिव आराधना समिति के डॉ. मृदुल मिश्र बताते हैं कि सनातन धर्म में माना जाता है कि अंतरगृही यात्रा करने से जीवन में हुए पापों का प्रायश्चित होता है। त्रेतायुग में माता सीता ने अंतरगृही यात्रा की शुरूआत की थी। तभी से काशी में अंतरगृही यात्रा की पौराणिक परंपरा चली आ रही है। काशी के अंदर—अंदर ही लगभग 25 किलोमीटर के दायरे में सिद्धि विनायक के बाद कंबलेश्वर, अश्वतरेश्वर, वासुकीश्वर का दर्शन करते हुए श्रद्धालु इस दौरान काशी में अलग-अलग स्थानों पर स्थित 75 पौराणिक तीर्थों की परिक्रमा की जाती है। इसके बाद यात्रा का समापन मणिकर्णिका घाट पर संकल्प छुड़ाकर होता है। समाजसेवी रामयश मिश्र बताते है कि अंतरगृही यात्रा में शामिल लोगों को देखकर यही लग रहा था कि सनातन परंपरा को यही लोग जीवित रखे हुए हैं। इसमें बहुत से लोग बहुत पढ़े लिखे नहीं है, गांव के हैं। काशी के ग्रामीण अंचल से है। लेकिन उनके मन में सनातन संस्कृति को लेकर जो श्रद्धा भाव भरा हुआ है,वह अनुकरणीय है। ठंड के इस मौसम में भी सर पर 15 -20 किलो का बोझ उठाएं नंगे पांव यह लोग यात्रा करके भारत की सनातन सांस्कृति परंपरा को जीवित रखे हुए है। इनके द्वारा किए जा रहे जय घोष ' भोले बाबा दूर है— जाना जरूर है', हर— हर महादेव,काशी विश्वनाथ शंभो यह आभास दिला रहा है कि सनातन संस्कृति की जड़े कितनी गहरी और बेमिशाल है।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

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