जिप्सम के जरिये ऊसर को बनाई जा सकती है उपजाऊ जमीन
कानपुर, 06 अप्रैल (हि.स.)। देश में लगभग 71 लाख हेक्टेयर भूमि ऊसर से प्रभावित है तो वहीं उत्तर प्रदेश में लगभग 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल इस प्रकार की भूमि है। ऐसी ऊसर भूमि में उत्पादन न के बराबर होता है और अक्सर खाली ही पड़ी रहती है। हालांकि अब किसान जागरुक हो रहे हैं और ऐसी भूमि पर उत्पादन लेने का प्रयास करते हैं। इस तरह की भूमि पर जिप्सम का प्रयोग करके उसे उपजाऊ बनाया जा सकता है और इसके लिए गर्मी का महीना सबसे उपयुक्त होता है। यह बातें शनिवार को चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मृदा वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने कही।
उन्होंने बताया कि फसलों के पोषक तत्वों की मांग केवल जिप्सम डालकर पूरा करना असंभव है। क्योंकि इसमें केवल कैल्शियम, गंधक प्राप्त किए जा सकते हैं। इसलिए रासायनिक उर्वरकों एवं हरी खाद के साथ जिप्सम का प्रयोग करके भूमियों में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
उन्होंने बताया कि ऊसर मृदा में उपस्थित सोडियम की अधिक मात्रा से मृदा का पीएच मान बढ़ जाता है जिसके कारण पानी व हवा का रिसाव कम होता है तथा मिट्टी की भौतिक दशा बिगड़ जाती है। इन भूमियों में नाइट्रोजन, कैल्शियम तथा जिंक की भारी कमी हो जाती है। जिससे फसल उत्पादन लाभदायक नहीं हो पाता है।
डॉक्टर खान ने बताया कि ऊसर भूमियों में जिप्सम फैलाने के तुरंत बाद कल्टीवेटर या देशी हल से भूमि के ऊपरी 7-8 सेंटीमीटर की सतह में जिप्सम को मिलाकर खेत में समतल करके मेड़बंदी करना जरूरी होता है। ताकि खेत में सब जगह पानी बराबर पहुंच सके। जिप्सम को मृदा में अधिक गहराई तक नहीं मिलाना चाहिए। ऊसर भूमियों में जिप्सम को बार-बार मिलाने की आवश्यकता नहीं होती है। शोधों द्वारा पाया गया है कि धान को ऊसर भूमियों में लगातार उगाते रहे तो मृदा के ऊसरपन में कमी आती है और कभी भी खेतों को लंबी अवधि तक खाली नहीं छोड़ना चाहिए।
हिन्दुस्थान समाचार/अजय/राजेश
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