उच्च आनुवंशिक क्षमता वाली साहीवाल नस्ल के संरक्षण में बीएचयू की बड़ी उपलब्धि
—एमओईटी तकनीक से चार गायों में सफल गर्भधारण, 95 फीसद मादा बछिया की सम्भावना
वाराणसी, 24 दिसम्बर (हि.स.)। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के राजीव गांधी दक्षिण परिसर, बरकछा स्थित पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान संकाय, कृषि विज्ञान संस्थान ने स्वदेशी गौ-वंश संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। विश्वविद्यालय में संचालित परियोजना के तहत चार गैर-वर्णित (नॉन-डिस्क्रिप्ट) गायों में उच्च आनुवंशिक क्षमता वाली साहीवाल नस्ल के भ्रूण का मल्टीपल ओव्यूलेशन एम्ब्रियो ट्रांसफर (एमओईटी) तकनीक से सफल गर्भधारण कराया गया है।
बुधवार को परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. मनीष कुमार तथा सह-अन्वेषक डॉ. कौस्तुभ किशोर सराफ और डॉ. अजीत सिंह ने बताया कि गर्भवती गायों का प्रसव मई–जून 2026 के दौरान अपेक्षित है। इस उन्नत प्रजनन प्रक्रिया में सेक्स-सॉर्टेड सीमेन का उपयोग किया गया है, जिससे लगभग 95 प्रतिशत सम्भावना है कि उच्च गुणवत्ता वाली साहीवाल नस्ल की मादा बछिया प्राप्त होगी। वैज्ञानिकों के अनुसार यह तकनीक डेयरी फार्मों को अधिक वैज्ञानिक और उत्पादक बनाने में सहायक सिद्ध होगी। यदि इसे विंध्य क्षेत्र के किसानों की गायों में अपनाया जाता है, तो इससे न केवल डेयरी प्रबंधन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि होगी और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के अनुरूप राष्ट्रीय खाद्य एवं पोषण सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी। इस सफलता पर राजीव गांधी दक्षिण परिसर (आरजीएससी) के प्रोफेसर-प्रभारी प्रो. बीएमएन कुमार ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए शोध टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस शोध का सीधा लाभ आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के पशुपालकों को मिलेगा और स्वदेशी नस्लों के संरक्षण को नई दिशा प्राप्त होगी।
बीएचयू की यह टीम अपने एडवांस्ड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) कार्यक्रम को और अधिक उन्नत प्रजनन तकनीकों से सशक्त बनाने तथा ग्रामीण किसानों तक इसकी पहुंच बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत है। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से टीम को सभी आवश्यक संस्थागत सहयोग प्रदान करने का आश्वासन भी दिया गया है, ताकि भविष्य में स्वदेशी पशु नस्लों का संरक्षण और किसानों का आर्थिक सशक्तिकरण सुनिश्चित किया जा सके।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

