दुनिया की सबसे बड़ी रोज़गार गारंटी योजना मनरेगा को केंद्र सरकार ने खत्म कर दिया:डॉ उदितराज
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने नेशनल हेराल्ड मामले के बहाने सरकार पर साधा निशाना
वाराणसी, 21 दिसंबर (हि.स.)। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता व असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी)के राष्ट्रीय चेयरमैन डॉ. उदित राज ने रविवार को नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर केन्द्र सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी को टारगेट करने के लिए सरकार का नेशनल हेराल्ड केस का बेशर्मी भरा हौवा बेइज्जती के साथ खत्म हुआ।
डॉ उदित यहां मैदागिन स्थित पार्टी कार्यालय में संवाददाताओं से मुखातिब थे। उन्होंने कहा कि पार्टी की चेयरपर्सन सोनिया गांधी और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को टारगेट करने वाला राजनीति से प्रेरित केस कभी भी कानून से जुड़ा नहीं था, बल्कि यह निजी नफ़रत से प्रेरित था। पिछले 11 सालों में कांग्रेस पार्टी के द्वारा सरकार की कई नाकामियों को लगातार सामने लाने पर यह कदम उठाया गया।
स्पेशल कोर्ट ने नेशनल हेराल्ड मामले में 2021 में मनी-लॉन्ड्रिंग जांच शुरू करने के लिए एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) पर साफ तौर पर सवाल उठाए और उसे फटकार लगाई।
उन्होंने कहा कि केन्द्र की मोदी सरकार ने “सुधार” के नाम पर लोकसभा में एक और बिल पास करके दुनिया की सबसे बड़ी रोज़गार गारंटी योजना मनरेगा को खत्म कर दिया है। यह महात्मा गांधी की सोच को खत्म करने और सबसे गरीब भारतीयों से काम का अधिकार छीनने की जान-बूझकर की गई कोशिश है। मनरेगा गांधीजी के ग्राम स्वराज, काम की गरिमा और डिसेंट्रलाइज़्ड डेवलपमेंट के सपने का जीता-जागता उदाहरण है, लेकिन इस सरकार ने न सिर्फ़ उनका नाम हटा दिया है, बल्कि 12 करोड़ नरेगा मज़दूरों के अधिकारों को भी बेरहमी से कुचला है। दो दशकों से, मनरेगा करोड़ों ग्रामीण परिवारों के लिए लाइफ लाइन रहा है और कोविड—19 महामारी के दौरान आर्थिक सुरक्षा के तौर पर ज़रूरी साबित हुआ है। उन्होंने आरोप लगाया कि 2014 से, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मनरेगा के ख़िलाफ़ रहे हैं। उन्होंने इसे “कांग्रेस की नाकामी की जीती-जागती निशानी” कहा था। पिछले 11 सालों में, सरकार ने मनरेगा को सिस्टमैटिक तरीके से कमज़ोर किया है और उसमें तोड़फोड़ की है, बजट में कटौती करने से लेकर राज्यों से कानूनी तौर पर ज़रूरी फंड रोकने, जॉब कार्ड हटाने और आधार-बेस्ड पेमेंट की मजबूरी के ज़रिए लगभग सात करोड़ मज़दूरों को बाहर करने तक। इस जानबूझकर किए गए दबाव के नतीजे में, पिछले पाँच सालों में मनरेगा हर साल मुश्किल से 50-55 दिन काम देने तक सिमट गया है। उन्होंने कहा कि यह कार्य सत्ता के नशे में चूर एक तानाशाही सरकार की सोची-समझी बदले की कार्रवाई के अलावा और कुछ नहीं है।
पत्रकार वार्ता के दौरान पार्टी के महानगर अध्यक्ष राघवेन्द्र चौबे, अनिल श्रीवास्तव, प्रदेश प्रवक्ता संजीव सिंह, अमरनाथ पासवान और डॉ नृपेन्द्र आदि भी मौजूद रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

