क्रांतिकारी पंचांग–2026 का लोकार्पण, बाबू जगत सिंह की कोठी को राष्ट्रीय स्मारक बनाने की मांग
—शोध में खुलासा—1799 में काशी में लड़ा गया था स्वतंत्रता का युद्ध
वाराणसी, 19 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित लहुराबीर जगतगंज में शुक्रवार को मातृभूमि सेवा संस्था द्वारा तैयार सातवें वार्षिक क्रांतिकारी पंचांग–2026 का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े कई अहम ऐतिहासिक तथ्य सामने आए। कार्यक्रम का आयोजन जगतगंज कोठी में किया गया, जो स्वतंत्रता सेनानी बाबू जगत सिंह की ऐतिहासिक धरोहर रही है।
समारोह में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) न्यास अध्यक्ष और पद्म भूषण से सम्मानित राम बहादुर राय ने बाबू जगत सिंह संग्रहालय और उनसे जुड़े शोध पर आधारित पुस्तक का अवलोकन किया। उन्होंने कहा कि आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश से अनाम क्रांतिकारियों की खोज का आह्वान किया था और उसी दिशा में यह शोध एक महत्वपूर्ण कदम है।
वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने कहा कि शोध समिति के कार्य से यह तथ्य सामने आया है कि वर्ष 1799 में काशी में अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता का युद्ध लड़ा गया था, जो 1857 की क्रांति से काफी पहले का है। इससे स्पष्ट होता है कि काशी में आजादी की चेतना 1857 से पूर्व ही प्रबल हो चुकी थी। उन्होंने बताया कि 1857 से पहले का अधिकांश इतिहास फारसी भाषा में उपलब्ध है, लेकिन भाषा की कठिनाइयों के कारण कई तथ्य अब तक सामने नहीं आ सके थे। उन्होंने इतिहासकार डॉ. हामिद आफाक कुरैशी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने जीवन के उत्तरार्ध में गहन अध्ययन कर इस महत्वपूर्ण इतिहास को सामने लाने का कार्य किया है। शोध के अनुसार, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने नवाब वजीर अली शाह से नबाबी छीन ली, तो वे बनारस आकर बाबू जगत सिंह से मिले। इसके बाद बाबू जगत सिंह और वजीर अली शाह ने करीब डेढ़ लाख लोगों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया।
राम बहादुर राय ने कहा कि 1857 से पहले काशी में लड़ी गई इस लड़ाई के नायक बाबू जगत सिंह थे। लगभग पांच घंटे तक चले युद्ध में पराजय के बाद वजीर अली शाह नेपाल की तराई की ओर चले गए, लेकिन बाबू जगत सिंह अपने अदम्य साहस और बनारसी जुझारूपन के साथ जगतगंज स्थित अपनी कोठी में डटे रहे। अंग्रेजों को उन्हें गिरफ्तार करने में दो महीने का समय लग गया। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि बाबू जगत सिंह की कोठी को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां इस गौरवशाली इतिहास से परिचित हो सकें। उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 1787 में बाबू जगत सिंह द्वारा कराई गई खुदाई के दौरान सारनाथ की बौद्ध विरासत से जुड़े महत्वपूर्ण प्रमाण मिले थे। खुदाई में प्राप्त एक मंजूषा का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत सरकार को आज के समय में उस धरोहर की खोज कर उसे संरक्षित करना चाहिए। कार्यक्रम में इतिहासकारों, शोधकर्ताओं और स्थानीय गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही। लोकार्पण समारोह ने काशी के स्वतंत्रता संग्राम के भूले-बिसरे अध्यायों को एक बार फिर राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में ला दिया।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

