आरएसएस के पहले तीन सरसंघचालकों के जीवनकार्य पर आधारित “संघ गंगा के तीन भगीरथ” की प्रस्तुति
—सरसंघ चालकों के जीवन कार्य को जीवंत मंच पर देखना हम स्वयंसेवकों का सौभाग्य:रमेश
वाराणसी,19 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी (काशी)में शुक्रवार शाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस)के पहले तीन सरसंघचालकों के जीवनकार्य पर आधारित “संघ गंगा के तीन भगीरथ” नाटकों की प्रस्तुति देख स्वयंसेवक उत्साह से भर उठे। पिपलानी कटरा कबीरचौरा स्थित नागरी नाटक मंडली में नागपुर की राधिका क्रियेशन की पहल पर नाटक का प्रारंभ केशव के ऋग्वेद शिक्षक श्री वझे गुरुजी (नानाजी वझे) से होता है, जहाँ वे केशव की छोटी-छोटी शरारतों और छत्रपति शिवाजी महाराज के पदचिह्नों पर चलने की उसकी प्रबल इच्छा का उल्लेख उसके माता-पिता से करते हैं। सामाजिक चेतना जगाने वाले संवादों से नाटक धीरे-धीरे आगे बढ़ता है। केशव ने अत्यंत कठिन परिस्थितियों में, परंतु दृढ़ निश्चय के साथ कलकत्ता जाकर डॉक्टर बनने का अपना सपना पूरा किया। नाट्य में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार बनने के बाद उनके क्रांतिकारी विचार, जातिवाद पर उनके स्पष्ट मत, और संघ के कार्य को कलाकारों ने जीवंत बनाया। इस नाटक में दो प्रसंगों को जोड़ने के लिए भारत माता की मधुर वाणी में प्रस्तुत प्रस्तावना भी लोगों को भाया। नाटक में मीनल मुंडले ने भारत माता की भूमिका शानदार ढंग से निभाई । महात्मा गांधी व डॉ. हेडगेवार की भेंट का प्रसंग अविस्मरणीय बन गया। महात्मा गांधी की भूमिका निभाने वाले संकल्प पायल ने गांधीजी को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया । इसी तरह गुरुजी (गोलवलकर) का जीवन, अखंडानंद के साथ उनका प्रवास, नागपुर लौटना, डॉ. हेडगेवार से मुलाकात, उनका अंतिम भाषण ने दर्शकों को बांधे रखा। सरदार वल्लभभाई पटेल और गुरुजी के बीच संवाद, कश्मीर का भारत में विलय, संघ पर लगा प्रतिबंध को सूत्रधारिका ने शानदार ढ़ंग से प्रस्तुत किया। बाला साहेब देवरस का तीसरे सरसंघचालक के रूप में चयन, 1975 की आपातकाल की पृष्ठभूमि, उसके विरोध में हुए सत्याग्रह, मीसा बंदी, रामजन्मभूमि आंदोलन की प्रस्तुति हुई।
इस नाटक का लेखन श्रीधर गाडगे ने किया है। नाटक के मार्गदर्शक रविंद्र भुसारी, निर्देशक संजय पेंडसे, निर्मात्री सारिका पेंडसे हैं। संगीत डॉ. भाग्यश्री चिटणीस और नेपथ्य सतीश पेंडसे ने रचा है। मनीष ऊईके (डॉ. हेडगेवार), अधिवक्ता रमण सेनाड ( गुरुजी) और यशवंत चोपडे (बालासाहेब देवरस)ने अपनी भूमिका को खास बना दिया। नाट्य मंचन के दौरान संघ के काशी प्रांत के प्रांत प्रचारक रमेश, डॉ अजीत सेगल, डॉ संजय मेहता, राम वीर शर्मा, दीन दयाल पाण्डेय आदि की मौजूदगी रही। इस दौरान प्रांत प्रचारक ने अपने सम्बोधन में कहा की शताब्दी वर्ष में संघ के प्रथम तीन सरसंघ चालकों के जीवन कार्य को जीवंत मंच पर देखना हम स्वयंसेवकों के लिए सौभाग्य का विषय है। समापन पर नाटक के कलाकारों का सम्मान वीरेंद्र जायसवाल ( क्षेत्र कार्यवाह आरएसएस ) ने किया।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

