मातृभाषा का सम्मान माँ के चरण स्पर्श के समान — रीना त्रिपाठी

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मातृभाषा का सम्मान माँ के चरण स्पर्श के समान — रीना त्रिपाठी


मातृभाषा का सम्मान माँ के चरण स्पर्श के समान — रीना त्रिपाठी


-कउड़ा पर जुटान” में गूंजा भोजपुरी संरक्षण का स्वर

- गोरखपुरिया भोजपुरिया परिवार का संकल्प

गोरखपुर, 28 दिसंबर (हि.स.)l मातृभाषा के सम्मान, लोक संस्कृति के संरक्षण और सामाजिक संवाद को सशक्त बनाने के उद्देश्य से गोरखपुरिया भोजपुरिया परिवार द्वारा रविवार को स्थानीय नेपाल लॉज में आयोजित “कउड़ा पर जुटान” कार्यक्रम भावनात्मक, वैचारिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत प्रभावशाली रहा। कार्यक्रम में समाज के विभिन्न वर्गों के प्रबुद्धजन, साहित्यकार, चिकित्सक, अधिवक्ता, शिक्षाविद्, रंगकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गंगोत्री देवी महिला महाविद्यालय की संरक्षिका एवं गोरखपुरिया भोजपुरिया परिवार की सदस्या रीना त्रिपाठी ने मातृभाषा को लेकर गहन और संवेदनशील विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा अपनी भाषा का सम्मान करना अपनी माँ के चरण छूने के बराबर है। भोजपुरी हमारी छूटी हुई भाषा है। जब हम इसे बोलना छोड़ देते हैं, तो यह भाषा धीरे-धीरे मरने लगती है। कउड़ा पर जुटान जैसे आयोजन हमारी माँ की भाषा को जीवित रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

कार्यक्रम के दौरान गोरखपुरिया भोजपुरिया के संरक्षक डॉ. संजयन त्रिपाठी ने कहा कि इस प्रकार के आयोजन समाज में आपसी संवाद को बढ़ाते हैं और लोकसंस्कृति को नई पीढ़ी से जोड़ने का कार्य करते हैं। उन्होंने कहा भोजपुरी केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि हमारी अस्मिता, हमारी पहचान और हमारी सांस्कृतिक विरासत है। वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. ए. के. पाण्डेय ने भोजपुरी भाषा के संरक्षण और संवर्धन पर जोर देते हुए कहा कि इसकी वास्तविक शुरुआत घर से ही होती है। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा दुर्भाग्य की बात है कि हम अपनी ही भाषा बोलने में संकोच करते हैं। यह प्रवृत्ति हमें छोड़नी होगी।

कार्यक्रम में वरिष्ठ रंगकर्मी एवं उद्घोषक सर्वेश दूबे ने भाषा की सांस्कृतिक शक्ति और उसकी आत्मिक ऊर्जा पर प्रकाश डालते हुए कहा हर भाषा की अपनी मिठास और अपनी सुगंध होती है। भोजपुरी की यही ताकत है कि इतने प्रतिकूल मौसम के बावजूद हम सब यहाँ एकत्रित हुए हैं। भाषा लोगों को जोड़ती है, भावनाओं को संजोती है और समाज को एक सूत्र में पिरोती है। परिचय सत्र के उपरांत गोरखपुरिया भोजपुरिया के संस्थापक विकास श्रीवास्तव ने संगठन की प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि भाषा-विज्ञान की समझ, शोध, संरक्षण और प्रलेखन आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि गोरखपुरिया भोजपुरिया परिवार इस दिशा में निरंतर और मजबूत पहल कर रहा है तथा आने वाले समय में भोजपुरी भाषा और लोकसंस्कृति के लिए और भी व्यापक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

वहीं सह-संस्थापक नरेंद्र मिश्र ने संगठन की भावी कार्ययोजनाओं से उपस्थित सदस्यों को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि भविष्य में भोजपुरी भाषा, लोककला, लोकसंगीत और सांस्कृतिक संवाद को केंद्र में रखकर विभिन्न प्रशिक्षण, गोष्ठी और जन-जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

कार्यक्रम के दौरान डॉ. पी. एन. भट्ट, प्रो. प्रभाकर तिवारी, एडवोकेट राकेश मिश्रा, पूजा गुप्ता, सरिता सिंह और आशुतोष मिश्र ने भी भोजपुरी भाषा, सांस्कृतिक चेतना और सामाजिक सहभागिता पर अपने विचार व्यक्त किए तथा गोरखपुरिया भोजपुरिया की भूमिका की सराहना की। इस अवसर पर रवि प्रकाश मिश्र, एडवोकेट दिव्येंदु नाथ, जितेंद्र उपाध्याय, अनुपमा मिश्रा, रीता मिश्रा, रूपल त्रिपाठी, महेश शुक्ला, पंडित नरेंद्र उपाध्याय, शैलेश त्रिपाठी उर्फ मोबाइल बाबा, रोहतास श्रीवास्तव, रामप्रताप विश्वकर्मा रमाशंकर सिंह, अरविंद वर्मा सहित बड़ी संख्या में गोरखपुरिया भोजपुरिया परिवार के सदस्य एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का समापन इस सामूहिक संकल्प के साथ हुआ कि भोजपुरी भाषा को केवल मंचों तक सीमित न रखकर दैनिक जीवन, परिवार और समाज में अपनाया जाएगा, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपनी मातृभाषा, संस्कृति और पहचान पर गर्व कर सके।

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हिन्दुस्थान समाचार / प्रिंस पाण्डेय

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