प्राचीन काल में स्त्री को सम्पत्ति का अधिकार नहीं था : न्यायमूर्ति अजीत सिंह
--स्त्री अधिकारों पर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम
प्रयागराज, 12 मार्च (हि.स.)। प्राचीन काल में स्त्री को सामाजिक अधिकार प्राप्त थे, पर सम्पत्ति का अधिकार नहीं था। बाल विवाह तथा सम्पत्ति के अधिकार और भी सीमित कर दिये गये थे। मुगल काल आते-आते उसकी स्थिति और भी दयनीय हो गयी। तत्कालीन समय में नारी भोग्या समझी जाती थी, किन्तु जैसे-जैसे समाज शिक्षित हुआ सामाजिक चिंतन पैदा हुए तो समाज में स्त्री के अधिकारों पर बात होने लगी।
यह बातें मुख्य अतिथि उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अजीत सिंह ने मंगलवार को ईश्वर शरण महाविद्यालय में वीमेन सेल और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के संयुक्त तत्वावधान में स्त्री अधिकारों पर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने संविधान का ज़िक्र करते हुए पर्दा प्रथा तथा उसकी व्यावहारिक कठिनाइयों पर बात की। अनुच्छेद 14 और 15 का ज़िक्र करते हुए समन्वय की बात करते हुए सभी को समान अधिकार देने की बात कही। आरक्षण की अवधारणा पर उन्होंने कहा कि कुछ विशेष अधिकार देकर ही महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता है। सेक्शन 160 सीआरपीसी का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उसमें यह प्रावधान है कि कोई भी महिला पूछताछ के लिए पुलिस थाने पर नहीं बुलायी जाती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता सुभाष राठी ने सामाजिक आवश्यकता की बात करते हुए कहा कि आजकल रिश्तों की अहमियत नहीं रही। संविधान का ज़िक्र करते हुए कहा कि विभिन्न देशों के संविधान की विशेषताएं लेकर बनाया गया है। उन्होंने बताया कि समाज में जब ज़रूरत होती है तो पीआईएल के माध्यम से कानून का निर्माण होता है। उन्होंने पोस्को एक्ट का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए उसके विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने समस्त देश को स्त्री के प्रति एक नया दृष्टिकोण विकसित करने का आह्वान किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. शिखा श्रीवास्तव ने एवं डॉ. अमिता पाण्डेय ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। तत्पश्चात डॉ. इन्दिरा श्रीवास्तव ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। उद्घाटन सत्र में समस्त विभागों के आचार्य, छात्रगण व शोधार्थी आदि उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/सियाराम