शोध: एक प्रजाति से दूसरे प्रजाति में अनुवांशिक डीएनए का जाना कैंसर का कारक
—बीएचयू के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग और जनरल सर्जरी विभाग में रिसर्च
वाराणसी,10 अगस्त (हि.स.)। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग और जनरल सर्जरी विभाग में की गयी रिसर्च में महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया है। एक प्रजाति से दूसरे प्रजाति में अनुवांशिक डीएनए का जाना पित्त की थैली के कैंसर का कारक हो सकता है। मनुष्य की क्रमागत उन्नति के दौरान मनुष्य के जीन में बैक्टीरिया और वायरस के जीन के कुछ हिस्से भी सम्मलित हो गए हैं, जो लाखों साल से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होते हैं।
ये डीएनए के उन हिस्सों मैं है, जिन्हें अब तक जंक डीएनए समझा जाता था और ऐसा सोचा जाता था कि इनका कोई कार्य नहीं है । क्योंकि इन हिस्सों से प्रोटीन नहीं बनते। इस रिसर्च में सामने आया है कि डीएनए के ये हिस्से कोडिंग डीएनए को नियंत्रित कर सकते हैं। और सेल कौन सा प्रोटीन बनाएगा या विभाजित होगा या नहीं, उसे भी नियंत्रित कर सकते हैं।
बैक्टीरिया या वायरस इन्फेक्शन होने पर इन जीन के सक्रिय होने की सम्भावना होती है, जो मूल रूप से बैक्टीरिया या वायरस को मनुष्य के अंदर रहने और बढ़ने में सक्षम बनाते हैं। किन्तु इसके साथ साथ ये मनुष्य के सेल को अनियंत्रित बढ़ने, इम्यून सिस्टम से बचने और सेल को मरने से रोक सकते हैं। अगर यह होता है तो नार्मल सेल कैंसर में तब्दील हो सकता है। यह विश्व में पहली बार है जहाँ से परिकल्पना की गयी है कि कैसे बैक्टीरिया और वायरस एक नार्मल सेल को कैंसर में तब्दील कर सकते हैं।
रूही दीक्षित, मोनिका राजपूत, प्रो. वी. के. शुक्ल और प्रो. मनोज पांडेय की संयुक्त रिसर्च स्प्रिंगर के वर्ल्ड जर्नल ऑफ़ सर्जिकल ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित हुई है। इस रिसर्च में 17 as RNA मिले हैं, जो पित्त की थैली के कैंसर में हैं। किन्तु नार्मल पित्त की थैली में नहीं होते। इनमें से 15 में बैक्टीरिया या वायरस के डीएनए के हिस्से पाए गए हैं। इनमें से 14 पहली बार पित्त की थैली के कैंसर में पायी गयी हैं। जिन बैक्टीरिया के अंश पाए गए हैं उनमें क्लेबसिएला न्युमोनी, बैसिलस परक्लिकेमिफोर्मिस, स्टेफाईलोकोकस औरयस, पासचुरेला , रालस्टोनिआ और वायरस में ज़ीका वायरस, चिकन गुनिया वायरस, और रेट्रो वायरस हैं। यह शोध माइक्रो बायो और मेटाब्लेमिक्स के अध्ययनों को एक नयी दिशा देगा। इससे कैंसर के नए कारणों का पता चलने से उनके इलाज में नई दिशा मिलने की आशा है।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी / Siyaram Pandey
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