जल संरक्षण करने को मोटी मेड़, छोटे खेत' का अपनाना होगा प्रबंधन : डॉ. आनंद सिंह
कानपुर, 14 जुलाई (हि.स.)। जल संरक्षण के लिए तकनीकी प्रबंधन में रबी फसलों की कटाई के उपरांत खेत की गहरी जुताई करना, कटी मेड़ों को बांधना, हरी खाद की बुवाई आदि कार्य के साथ जल संरक्षण के लिए 'मोटी मेड़, छोटे खेत' का प्रबंधन अपनाना होगा।
यह जानकारी रविवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक कानपुर के कुलपति डॉ. आनंद कुमार सिंह ने दी।
उन्होंने बताया कि जल हमारे पास उपलब्ध है उस जल का 70 प्रतिशत उपयोग कृषि कार्य में होता है। हमारी जिम्मेदारी भी अधिक है कि वर्षा जल के संरक्षण के साथ-साथ जल के प्रबंधन एवं सिंचाई दक्षता की तकनीकों को अपनाएं। विश्व में खेती में इस्तेमाल होने वाली जमीन 52 प्रतिशत से अधिक जल अपवाह के प्रबंधन सही न होने पर क्षरित होती है। वर्तमान में पर्यावरण से जुड़ी सभी समस्याएं देश के लिए चिंताजनक एवं चुनौतीपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2050 तक पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है। खेती बाड़ी में जल प्रबंधन में क्षेत्र आधारित जल की उपलब्धता, विशेष जलवायु को विशेष फसल पद्धति सिंचाई जैसे सूक्ष्म सिंचाई,टपक सिंचाई व बौछारी सिंचाई को अपनाना होगा। जिसमें हर बूंद पानी का प्रयोग होता है।
उन्होंने कहा देश में जल की कमी से अधिक जल के प्रबंधन की आवश्यकता है। जिससे हमारे कृषि विज्ञान केंद्र व विश्वविद्यालय गांव-गांव, खेत-खेत तक तकनीकी पहुंचने में कार्य कर रहे है। उन्होंने जोर देकर कहा कि माह जुलाई-अगस्त-सितंबर के 90 दिन का जल प्रबंधन भूजल स्तर को ऊपर उठा सकता है। जिससे हमें बाकी आठ से नौ माह पीने का पानी कम नहीं होगा। तालाब, पोखर भरे रहेंगे, खेतों में नमी संरक्षित रहेगी परंतु 3 माह जल संरक्षण पर सतर्क रहना है। यदि हम वर्षा जल को संरक्षित कर लें,तो पूरे देश-प्रदेश में जलस्तर बढ़ने के साथ-साथ जल उपलब्धता सुनिश्चित रहेगी।
हिन्दुस्थान समाचार / रामबहादुर पाल / राजेश
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