जिला महिला चिकित्सालय 'साथिया केन्द्र' में हर माह आती हैं 600 से अधिक किशोरियां

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जिला महिला चिकित्सालय 'साथिया केन्द्र' में हर माह आती हैं 600 से अधिक किशोरियां


-मासिक धर्म को लेकर बदल रही सोच, स्कूल घर-परिवार में खुलकर करती हैं बात

-अंतरराष्ट्रीय माहवारी स्वच्छता दिवस’ (28 मई) पर विशेष

वाराणसी, 27 मई (हि.स.)। ‘एक ऐसा भी दौर था जब किशोरियां व युवतियां मासिक धर्म के बारे में बात करने में भी संकोच करती थीं। पीरियड्स के दौरान होने वाली तमाम समस्याओं के बारे में किसी को नहीं बताती थीं। नतीजा होता था कि उन्हें तमाम तरह की बीमारियां घेर लेती थीं। लेकिन अब आधुनिक समाज में मासिक धर्म पर बात करना, उस पर चर्चा करना और उपायों का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इसका ही नतीजा है कि किशोरियों-युवतियों के साथ युवक भी अब इस मुद्दे पर बेहद संवेदनशील और सजग हो गए हैं।’

जिला महिला चिकित्सालय में स्थित ‘साथिया केंद्र’ की परामर्शदाता सारिका चौरसिया बताती हैं कि हर माह लगभग 600 किशोरियां यहां आती हैं। वह अपने पीरियड्स के बारे में निःसंकोच चर्चा करती हैं और जरूरी सलाह भी लेती हैं। ऐसी ही अन्य किशोरियों, युवतियों को मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता के प्रति और जागरूक करने के लिए हर साल 28 मई को ‘अन्तराष्ट्रीय माहवारी स्वच्छता दिवस’ मनाया जाता है। इस वर्ष दिवस की थीम ‘वर्ष 2030 तक मासिक धर्म को जीवन का एक सामान्य तथ्य बनाना है’ निर्धारित की गई है। इसका उद्देश्य व्यापक लक्ष्य के लिए एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां कोई भी व्यक्ति 2030 तक मासिक धर्म के कारण पीछे न रहे।

सारिका बताती है कि माहवारी स्वच्छता दिवस 28 मई को इसलिए मनाया जाता है क्योंकि महिलाओं और लड़कियों को औसतन प्रति माह पांच दिन मासिक धर्म होता है। मासिक धर्म का चक्र औसतन 28 दिन होता है। इसलिए मई का 28वां दिन जो साल का पांचवां महीना होता है, इसी वजह से यह दिवस 28 मई को मनाया जाता है। वह बताती हैं कि जिला महिला चिकित्सालय में यह केन्द्र वर्ष 2015 से चल रहा है। पीरियड्स आने की सही उम्र 12 साल होती है, हालांकि कई लड़कियों को आठ साल की उम्र या 15 साल की उम्र में भी मासिक धर्म शुरू हो जाते हैं। वहीं मासिक धर्म बंद होने की उम्र 45 से 50 साल होती है। उन्होंने बताया कि मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता, संतुलित व स्वस्थ खानपान, अधिक से अधिक पानी पिएं, ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन का सेवन करें। केन्द्र में आई आर्य महिला इंटर कॉलेज की छात्रा राधिका (16) बताती हैं कि पीरियड्स या मासिक धर्म को लेकर समाज में धीरे-धीरे सोच बदल रही है। अब हम स्कूल, घर-परिवार में इस पर खुल कर चर्चा करते हैं। यदि कुछ भी समस्या होती है तो हम जिला महिला चिकित्सालय में स्थित ‘साथिया केंद्र’ की परामर्शदाता से बात करते रहते हैं।

वसंत कन्या डिग्री कॉलेज की दीपशिखा (19) ने कहा कि मासिक धर्म अब बोझ नहीं रहा है। यह प्राकृतिक प्रवत्ति है, जो करीब 12वीं साल से ही लड़कियों में शुरू हो जाती है। यदि शुरुआत में ही इसको लेकर संकोच नहीं तोड़ा गया तो आगे चलकर कुछ समस्याएं भी हो सकती हैं।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी ने बताया कि सरकार के प्रयासों और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत चलाये जा रहे राष्ट्रीय किशोर स्वस्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके) के सार्थक परिणाम आ रहे हैं। किशोरियों के स्वास्थ्य को लेकर चलाये जा रहे कार्यक्रमों की ही देन है कि उनमें पीरियड्स के प्रति जागरुकता बढ़ी है।

-क्या कहती है एनएफएचएस की रिपोर्ट

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-21) की रिपोर्ट पर नजर डालें तो पता चलता है, जिले में 15 से 24 वर्ष की 85.6 प्रतिशत किशोरियां/युवतियां पीरियड्स के दौरान स्वच्छता के आधुनिक तरीकों का प्रयोग कर रही हैं, जबकि एनएफएचएस-4 (2015-16) की रिपोर्ट में यह महज 69.1 प्रतिशत ही रहा।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/आकाश

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