गुरू बिन भवनिधि तरहिं न कोई, जौं बिरंचि संकर सम होई

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गुरू बिन भवनिधि तरहिं न कोई, जौं बिरंचि संकर सम होई


गुरू बिन भवनिधि तरहिं न कोई, जौं बिरंचि संकर सम होई


गुरू बिन भवनिधि तरहिं न कोई, जौं बिरंचि संकर सम होई












































-महानगर के विभिन्न धार्मिक स्थलों पर हुआ गुरुदेव भगवान का पूजन

झांसी, 03 जुलाई(हि.स.)। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस में कहा है- गुरू बिन भवनिधि तरहिं न कोई। जौं बिरंचि संकर सम होई।। अर्थात भले ही कोई भगवान शंकर या ब्रह्मा जी के समान ही क्यों न हो, किन्तु गुरू के बिना भवसागर नहीं तर सकता। भारतीय सनातन संस्कृति में आदिकाल से ही गुरु को ईश्वर से भी पहले माना जाता है। आषाढ़ की पूर्णिमा को हमारे शास्त्रों में गुरुपूर्णिमा कहा गया है। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु के प्रति आदर और सम्मान व्यक्त करने के वैदिक शास्त्रों में कई प्रसंग बताए गये हैं। उसी वैदिक परम्परा के महाकाव्य रामचरित मानस में गौस्वामी तुलसीदास जी ने कई अवसरों पर गुरु महिमा का बखान किया है। इस परंपरा का निर्वहन करते हुए महानगर के विभिन्न धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालुओं ने अपने गुरुदेव भगवान का पूजन किया।

गुरु में आकर्षण है, आसक्ति नहीं, ममता है पर मोह नहीं, समता है पर शाेक नहीं, प्रशस्त नेह है पर गेह नहीं, चिंतन है पर चिंता नहीं। चित्त में निर्मलता है, मलिनता नहीं। गुरुओं की देह से धवल कांति दूर- दूर तक प्रवाहित होती रहती है। यह सब साधु चर्या के गुण हैं। गुरु ही ब्रम्हा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही परम ब्रम्ह है। इस परंपरा का निर्वहन करते हुए सोमवार को गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर महानगर के विभिन्न मंदिरों तथा गुरुओं के आश्रमों में गुरुपूजन एवं दर्शनों के लिए शिष्यों की भीड उमड पडी। सिविल लाइन ग्वालियर रोड स्थित कुंज बिहारी मंदिर में प्रातः से हजारों श्रद्धालुओं की भीड एकत्रित हो गई। भगवान कुंजबिहारी सरकार की आरती उपरांत गुरुपूजन का सिलसिला प्रारम्भ हुआ जो दिन भर चलता रहा।

कुंजबिहारी मंदिर में नित्यलीला निकुंज गौलोक वासी पूज्य गुरुदेव भगवान महंत बिहारीदास महाराज के चित्र का पूजन कर श्रद्धालु शिष्यों ने बुंदेलखण्ड धर्माचार्य महंत राधामोहन दास महाराज का अंगूठा धोकर चरणामृत लिया फिर रोली चंदन का टीका लगाया, अंगवस्त्र, फल एवं मिष्ठान भेंट करते हुए माल्यार्पण कर आरती उतारकर आशीर्वाद लिया। बुंदेलखण्ड धर्माचार्य महंत राधामोहन दास महाराज ने सभी शिष्यों को शुभाशीष देते हुए कहा कि सभी धर्म का पालन करते हुए स्वयं को सतकर्मों में लगायें और यथासंभव गरीबों तथा बेसहारा लोगों की मदद अवश्य करो। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म का पालन करते हुए गाय, गीता, गंगा को श्रेष्ठ मानों तथा अपने से बडों का तथा नारी शक्ति का सदैव सम्मान करने की आदत डालें।

अयोध्या नगरी की तर्ज पर झांसी के मेंहदी बाग स्थित श्रीरामजानकी मंदिर में भी गुरु पूजन का कार्यक्रम धूमधाम से मनाया गया। वहां के महंत भजनानंदी संत शिरोमणि श्री रामप्रियदास महाराज की अनुपस्थिति में युवराज महंत प्रेमदास जी ने गुरु पूजन परंपरा का निर्वहन किया। शिष्यों की भीड़ पूरे दिन गुरु पूजन के लिए बनी रही।

भगवान भोलेनाथ के प्रसिद्ध मंदिर सिद्धेश्वर में महानगर धर्माचार्य हरिओम पाठक ने भी गुरु पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया। अपने शिष्यों को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि भले ही कोई भगवान शंकर या ब्रह्मा जी के समान ही क्यों न हो,किन्तु गुरू के बिना भवसागर नहीं तर सकता। भारतीय सनातन संस्कृति में आदिकाल से ही गुरु को ईश्वर से भी पहले माना जाता है। उन्होंने कहा कि गुरु ही किसी प्राणी को संसार के आवागमन से मुक्ति का मार्ग दिखाता है।

इसके अलावा महंत वैदेही बल्लभ महाराज ने शिवाजी नगर स्थित अपने आवास पर गुरु पूजन कार्यक्रम आयोजित किया।

हिन्दुस्थान समाचार/महेश/पदुम नारायण

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