हिन्दी भाषा से सरल कोई भाषा नहीं: डॉ. रमेश प्रताप सिंह
लखनऊ, 14 सितम्बर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने हिन्दी दिवस के अवसर पर शनिवार को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी भवन के निराला सभागार में किया। दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्पार्पण के उपरान्त वाणी वंदना सर्वजीत सिंह ने प्रस्तुत की।
हिन्दी संस्थान के निदेशक आरपी सिंह ने स्मृति चिह्न भेंट कर अतिथि डॉ. रामकठिन सिंह, डॉ. श्रुति, डॉ. रमेश प्रताप सिंह का स्वागत किया गया। इस अवसर पर डॉ. रमेश प्रताप सिंह ने कहा कि हिन्दी भाषा में विस्तार की सम्भावनाएं है। हिन्दी सभी भाषाओं की समुच्चय है। भाषा अभिव्यक्ति का साधन होती है। आज की हिन्दी राजभाषा तक सीमित नहीं है। हिन्दी भाषा से सरल कोई भाषा नहीं है। हिन्दी पहले भी समृद्ध थी और आज की हिन्दी में विरासत के तत्व विद्यमान हैं।
हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी, उसमें हिन्दी ही नहीं बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी है। हिन्दी हमारी भावना, संवेदना और संस्कृति है। क्षेत्रीय, प्रान्तीय भाषा कन्नड़, नेपाली, हिन्दी को विकसित होने में बाधा डालती है। केशवचन्द्र सेन से हिन्दी को राष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान बनाने में बड़ी भूमिका निभायी थी। हिन्दी भाषा कभी कमजोर स्थिति में नहीं रही। देश की स्वतंत्रता में हिन्दी साहित्यकारों का काफी योगदान रहा। साहित्यकारों की कालजयी ताकत भी रही, जिससे देश स्वतंत्र हो गया।
डॉ. श्रुति, ने कहा कि आज हिन्दी भाषा के सम्मुख कई चुनौतियां है। हिन्दी में बोलने की अभूतपूर्व क्षमता है। भारत बहुभाषी-विविध संस्कृतियों का देश है। भाषायी संस्कृति को एक सूत्र में बांधने की क्षमता हिन्दी को ही है। हिन्दी केवल एक भाषा ही नहीं, भारत की संस्कृति है। हिन्दी भारत माता के माथे की बिन्दी है। महात्मा गांधी ने एकभाषिता पर काफी बल दिया। हिन्दी में अन्य भाषाओं को समाहित करने की क्षमता है। हिन्दी का शब्द भण्डार निरन्तर बढ़ता जा रहा है। हिन्दी में संप्रेषणीयता की अद्भुत क्षमता है। संचार माध्यम व फिल्मों ने भी हिन्दी को बढ़ावा दिया। अलग-अलग भाषाओं के शब्द को हिन्दी अपने में समाहित करती चली जा रही है। हिन्दी को आगे बढ़ाने में आत्मविश्वास की आवश्यकता है। हमारी हिन्दी की भावना देशवासियों में प्रचार-प्रसार करने की आज आवश्यकता है।
डॉ. रामकठिन सिंह ने कहा कि हिन्दी का बढ़ावा देने में विज्ञान परिषद ने 1914 से निरन्तर प्रकाशित होने वाली पत्रिका ’विज्ञान’ ने अहम भूमिका निभायी। हिन्दी लेखकों में गुणाकरमुले का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। वर्तमान में नई शिक्षा नीति ने भी हिन्दी को अग्रसर करने में प्रयासरत है। हमें अपनी मात्र भाषा में लिखने, बोलने, पढ़ने-सीखने में गर्व का अनुभव होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें अनुवाद के स्थान पर मूल लेखन पर बल देना चाहिए। हिन्दी एक सक्षम भाषा है, जिसमें विज्ञान लेखन की पर्याप्त क्षमता है। उन्होंने विज्ञान विषय पर केन्द्रित अपनी कविता का पाठ किया।
हिन्दुस्थान समाचार / दीपक वरुण
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