भारत के सशक्त और महान सनातन लोकमत से विश्व को उम्मीद : शिव प्रताप शुक्ल
—सक्षम राष्ट्र के निर्माण के लिए सभी सहभागी बनें : सिक्किम के राज्यपाल
वाराणसी, 27 मई (हि.स.)। देश के संतों, विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने सोमवार को सिगरा स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में एक स्वर से सशक्त, सनातन और महान लोकतांत्रिक भारत को 2047 तक हर हाल में विश्वगुरु बनाने का संकल्प लिया। अवसर रहा अखिल भारतीय संत समिति, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, श्री गंगा महासभा, श्री काशी विद्वतपरिषद और भारत संस्कृति न्यास के संयुक्त पहल पर आयोजित सम्मेलन का। सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने सक्षम और सशक्त भारत के निर्माण में सभी से अपना योगदान देने की अपील की।
राज्यपाल ने कहा कि संवाद हमारी सनातन संस्कृति का आधार है। संवाद से ही सृष्टि के सभी रहस्य जानने योग्य बनते हैं। हमारे सभी ग्रंथ केवल संवाद ही हैं। श्रुति, उपनिषद, स्मृति, पुराण , रामायण महाभारत आदि सभी ग्रंथ संवाद ही हैं। इसी संवाद में सभी समाधान भी हैं और दिशा निर्देश भी। जीवन के सूत्र भी हैं और राजसत्ता तथा राजधर्म के भी सूत्र हैं। राज्यपाल ने कहा कि महत्वपूर्ण यह है कि ऐसे समय में जब विश्व के एक बड़े हिस्से में भयानक युद्ध की विभीषिका से मानवता त्रस्त है, हमारा भारत वर्ष अपने संवेदनशील मानवीय एवं सनातन मूल्यों के साथ लोकतंत्र का उत्सव मना रहा है।
शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि भारत को अपने इस महान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गर्व है। इस गर्व ने ही विगत वर्षों में भारत को आत्मनिर्भरता, आर्थिक संपन्नता, सामरिक सुदृढ़ता और विश्व को सांस्कृतिक मानवीय नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता दी है। ऐसे में हम सभी भारतीयों का यह कर्तव्य बन जाता है कि अपनी इसी सनातन संस्कृति की अवधारणा को और अधिक सुदृढ़ कर अपने लोकतांत्रिक कर्तव्यों के साथ भारत को विश्वगुरु के रूप में स्थापित करने में अपना योगदान अवश्य दें।
सम्मेलन में सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य ने कहा कि यह सभागार आज ऐसे क्षण का साक्षी बन रहा है जब भारत अपनी महान संस्कृति और सनातन परंपरा के साथ ही अपनी लोकतांत्रिक मान्यताओं के लिए निरंतर विश्व को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। देश अपने लिए अच्छे शासन की कामना के साथ अपने प्रतिनिधियों के चयन में लगा है। अपनी स्वाधीनता के अमृत काल में राष्ट्र निरंतर नए-नए कीर्तिमान गढ़ रहा है। सामाजिक, आर्थिक, सामरिक और राजनीतिक क्षेत्र से लेकर शिक्षा और विज्ञान एवं तकनीक में विश्व को नए मानक उपलब्ध करा रहा है। सिक्किम के राज्यपाल ने कहा कि भारत आज जिस रूप में विश्व के समक्ष उपस्थित है। उसमें हमारे नेतृत्व करने वाले प्रत्येक चरित्र का योगदान है। नेतृत्व से ही सब कुछ हासिल होता है। इसलिए नेतृत्व सक्षम और दिशावान होना चाहिए। कार्यक्रम के संयोजक स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि सनातन संस्कृति भारत की आत्मा, संत इसके संरक्षण के लिए हर बलिदान देंगे। इतिहास इस बात का गवाह है कि भारत की संप्रभुता और सनातन को जब भी किसी ने संकट में डालने की कोशिश की है, भारत की संत परंपरा ने उसका डट कर मुकाबला किया है और सनातन राष्ट्र को सुरक्षित रखने का कार्य किया है।
विषय प्रस्ताव आरएसएस के काशी प्रांत प्रचारक रमेश, प्रस्तावना डॉ. शुकदेव त्रिपाठी, संचालन प्रो. रामनारायण द्विवेदी, धन्यवाद ज्ञापन गोविन्द शर्मा ने दिया। सम्मेलन में काशी सुमेरूपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती, अन्नपूर्णा मठ के महंत शंकर पुरी, महामण्डलेश्वर सन्तोष दास सतुआ बाबा, प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी (अध्यक्ष श्रीकाशी विद्वत् परिषद् ), महामण्डलेश्वर प्रखर , श्री महन्त यमुनापुरी, श्री महन्त बालकदास, स्वामी विमलदेव आश्रम, पद्मश्री प्रो० नागेन्द्र पाण्डेय, पद्मश्री प्रो. के. के. त्रिपाठी, पद्मश्री पण्डित शिवनाथ मिश्र, पद्मश्री रजनीकान्त, धर्मसंघ शिक्षा मंडल के सचिव जगजीतन पांडेय आदि की विशिष्ट मौजूदगी रही।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/दिलीप
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