जब तक काशी की परंपरा को काशी के लोग जीवित रखेंगे, तब तक काशी जीवंत रहेगी: नागेन्द्र पांडेय
वाराणसी, 03 फरवरी (हि.स.)। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर नागेंद्र पांडेय ने कहा कि बनारसीपन बनारस के लोगों के हृदय में है, इसे किसी भी तरह का विकास प्रभावित नहीं कर सकता। वाराणसी के विकास की चर्चा कर उन्होंने साहित्यिक स्रोत से काशी के कालक्रम को समझाने का प्रयास किया। प्रो.पांडेय शनिवार को बीएचयू के मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र सभागार में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह को सम्बोधित कर रहे थे।
वाराणसी इंस्टीट्यूट ऑफ हिस्ट्री की पहल और आईसीएचआर स्पॉन्सर्ड रीइमेजिनिंग डेवलपमेंट इन द कॉन्टेक्स्ट ऑफ वाराणसी ग्लोरियस हेरिटेज विषयक सम्मेलन में प्रो. पांडेय ने कहा कि काशी की परंपरा काशी के लोगों से है। जब तक यहां के लोग उस परंपरा को जीवित रखेंगे तब तक काशी जीवंत रहेगी।
सम्मेलन में पुरातत्वविद ज्ञानप्रवाह की प्रो. विदुला जायसवाल ने कहा कि काशी प्राचीन समय में एक सेटेलाइट सेटलमेंट था, जिसका एक केंद्र था। उन्होंने काशी के इतिहास को उत्खनन के माध्यम से बताया कि यह 1800 ईसवीं पूर्व पुराना है।
सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए अखिल भारतीय विद्वत परिषद वाराणसी के संस्थापक प्रोफेसर कामेश्वर उपाध्याय ने कहा कि काशी को समझने के लिए पश्चिम के कालानुक्रम की अवधारणा को त्यागना होगा तथा सनातन की अवधारणा से समझना होगा। प्रो. उपाध्याय ने कहा कि काशी का इतिहास सिर्फ पुरातात्विक उत्खनन के आधार पर ही नहीं बल्कि सनातन के साहित्यिक स्रोतों के आधार पर होना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि काशी सृष्टि से भी पुरानी है और जब इसका निर्माण हुआ तबसे यह 12 महीनों में बारह रूप धारण करती है।
सम्मेलन में प्रो. ब्रजभूषण ओझा ने भी विचार रखा। सम्मेलन का रिपोर्टियर कुलदीप कुमार मिश्रा ने प्रस्तुत किया। समापन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन सुतपा दास ने दिया। इसके पहले सम्मेलन की संगठन सचिव जयलक्ष्मी कौल ने भारत गीत प्रस्तुत किया। समापन समारोह में 150 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। समापन सत्र के प्रारंभ में कुल 05 तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता विषय के विशेषज्ञों ने की। इन सत्रों में कुल 55 पेपर भिन्न-भिन्न राज्यों के विद्वानों ने पढ़ा तथा वाराणसी के विकास के विभिन्न पक्षों का वर्णन किया।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/आकाश
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