वटवृक्ष की पूजा कर सुहागिनों ने की पति की दीर्घायु की कामना
महोबा, 06 जून (हि.स.)। हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का बहुत बड़ा महत्व है। यह पूजन स्त्रियां सौभाग्य प्राप्ति और पति की दीर्घायु की कामना के लिए करती हैं। इस दिन सभी सुहागन महिलाएं पूरे सोलह सिंगार कर बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। हर वर्ष वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को होता है।
वट सावित्री व्रत में वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। ज्योतिषियों के अनुसार, वट के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का निवास होता है इसलिए भी महिलाएं इस वृक्ष की पूजा करती हैं।
जनपद मुख्यालय के आलमपुरा निवासी पंडित सत्यव्रत चतुर्वेदी ने बताया कि मद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी। उन्होंने देवी का कठिन यज्ञ किया और देवी की कृपा से उनके घर एक तेजस्वनी कन्या का जन्म हुआ। राजा ने कन्या का नाम सावित्री रखा। कन्या बेहद रूपवान थी। बड़ी होने पर राजकुमारी सावित्री को साल्व देश के राजा के पुत्र सत्यवान से प्रेम हो गया। अब सावित्री सत्यवान को पति के रूप में पाना चाहती थी।
नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी क्योंकि सत्यवान अल्पायु थे, लेकिन फिर भी सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी, जिसका फल उन्हें बाद में मिला था। सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाए थे और लंबे समय तक वैवाहिक जीवन का आनंद प्राप्त किया। इस कारण से ऐसी मान्यता चली आ रही है कि जो स्त्री सावित्री के समान यह व्रत करती हैं उसके पति पर भी आने वाले सभी संकट इस पूजन से दूर होते हैं।
वट सावित्री व्रत के दिन सुहागन महिलाएं सुबह उठकर स्नान आदि कर शुद्ध होकर सोलह श्रृंगार कर पूजन की सामग्री के साथ वट (बरगद) वृक्ष के नीचे सफाई करने के बाद वहां पूजा अर्चना की। इसके बाद सत्यवान और सावित्री की मूर्ति को वहां स्थापित कर पति की दीर्घायु की कामना की है। धूप, दीप, रोली, भिगोए चने, सिंदूर आदि अर्पित किया कर कथा सुनी है। इसके बाद वट से आशीर्वाद मागकर पति और परिवार की समृद्धि की मनोकामना की है।
हिन्दुस्थान समाचार/ उपेंद्र/मोहित
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