विश्व में कोविड का दुष्प्रभाव प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध से भी ज़्यादा: डॉ सौम्या स्वामीनाथन

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विश्व में कोविड का दुष्प्रभाव प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध से भी ज़्यादा: डॉ सौम्या स्वामीनाथन


विश्व में कोविड का दुष्प्रभाव प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध से भी ज़्यादा: डॉ सौम्या स्वामीनाथन


वाराणसी,13 मार्च (हि.स.)। डब्लूएचओ की पूर्व चीफ साइंटिस्ट डॉ सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में जितनी जान माल की क्षति हुई। उससे कहीं ज़्यादा नुकसान कोविड से हुआ। कोविड महामारी ने भारत सहित सभी देशों के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती पेश की। महामारी ने लोगों को समझा दिया की स्वास्थ्य हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज है, जिसके लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति हुई।

डॉ सौम्या बुधवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय विज्ञान संस्थान के महामना सभागार में आयोजित 24वें एसपी रे चौधरी मेमोरियल व्याख्यान को सम्बोधित कर रही थी। हरित क्रांति के जनक प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन की बेटी डॉ सौम्या स्वामीनाथन ने “लेसन फ्रॉम दी पैनडेमिक फॉर साइंस एंड पब्लिक हेल्थ” विषयक व्याख्यान में कहा कि विज्ञान की प्रगति से ही वायरस और इसके रोग जनन को बेहतर तरीक़े से समझ सकते है और उस पर विजय पाने के लिए नये उपकरण विकसित करने के लिए उस ज्ञान का उपयोग कर सकते है।

वर्तमान में उपलब्ध वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग विज्ञान के चार क्षेत्रों (सर्विलांस, बेसिक रिसर्च, ट्रांसलेशनल रिसर्च और क्लिनिकल ट्रायल्स) पर केंद्रित करते हुए हम किसी आने वाले उभरते नये वायरस खतरों को सक्रिय रूप से प्रबंधित करके बेहतर अनुसंधान कर सकते है। मौजूदा और भविष्य के महामारी जोखिमों की निगरानी और आकलन के लिए नए पैथोजन की निरंतर खोज और ज्ञात पैथोजन का सर्विलांस नितांत आवश्यक है। इन रोगजनकों का चयन विशिष्ट मानदंडों के आधार पर किया जाता है, जो मौलिक अनुसंधान को बढ़ावा देते हैं और उभरते भविष्य के खतरों के लिए हमारी तैयारी को बढ़ाता है।

उन्होंने वैज्ञानिकों की सराहना कर कहा कि किसी भी वैक्सीन के विकास में कम से कम 10-15 वर्ष लगते है, लेकिन यह वैज्ञानिकों की मेहनत का परिणाम था कि हम इतनी तेज़ी से कोविड की वैक्सीन बना सके। कोविड के पहले सबसे तेज़ी से मम्प्स की वैक्सीन बनी थी जिसमें 4 वर्ष लगे थे। व्याख्यान में बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रोफेसर पंजाब सिंह ने कहा कि किसी भी भविष्य की महामारी के लिए वैज्ञानिकों को समग्र रूप से काम करना होगा।

व्याख्यान में संस्थान के अध्यक्ष प्रो.राजीव रमन ने प्रोफेसर एस. पी. रे. चौधरी के व्यक्तित्व और शोध के बारे में बताया। संचालन प्रोफेसर मधु तापड़िया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ गौरव पांडेय ने किया। व्याख्यान में विज्ञान संस्थान के डीन, डायरेक्टर के अलावा पूर्व निदेशक प्रो. अनिल त्रिपाठी, प्रोफेसर एसबी अग्रवाल, प्रोफेसर कायस्था, प्रोफेसर एस. सी. लखोटिया, प्रोफेसर मर्सी जे. रमन, डॉ समीर गुप्ता, डॉ बामा चरण मंडल, डॉ ऋचा आर्य के साथ छात्र उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/मोहित

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