काशी में हुई थी राजर्षि उदय प्रताप सिंह और स्वामी विवेकानंद की ऐतिहासिक मुलाकात

— प्रो. हरिकेश बहादुर सिंह ने गोष्ठी में की महत्वपूर्ण स्मृतियां साझा
वाराणसी, 25 मार्च (हि.स.)। शिक्षाविद् प्रो. हरिकेश बहादुर सिंह ने मंगलवार को भिनगा के राजा राजर्षि उदय प्रताप सिंह से जुड़ी अनमोल विरासत,उनके योगदान और स्मृतियों को गोष्ठी में साझा किया। इस संगोष्ठी का आयोजन उदय प्रताप कॉलेज और बीएचयू के अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था, जिसका विषय था: राजर्षि उदय प्रताप सिंह: शिक्षा, लोक सेवा और राष्ट्र निर्माण की एक विरासत।
प्रो. सिंह ने संगोष्ठी में बताया कि फरवरी 1902 में, काशी में स्वामी विवेकानंद और राजर्षि उदय प्रताप सिंह की ऐतिहासिक मुलाकात हुई थी। उस दौरान, राजर्षि ने स्वामी विवेकानंद से कहा था कि स्वामी जी, मेरे विनम्र अनुमान में आप महात्मा बुद्ध और आचार्य शंकर की तरह एक दिव्य आत्मा हैं। कृपया मुझे आशीर्वाद दें। साथ ही, राजर्षि ने स्वामी जी से काशी में संन्याश्रम स्थापित करने की विनती की थी। अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए, उन्होंने स्वामी विवेकानंद को 500 रुपये का चेक भेजा था। हालांकि, स्वामी विवेकानंद ने यह राशि स्वामी शिवानंद को दे दी थी, जिन्होंने बाद में 4 जुलाई 1902 को श्री रामकृष्ण अद्वैत आश्रम की स्थापना की। प्रो. सिंह ने कहा कि राजर्षि की प्रतिमा और पुण्यभूमि में उन्हें गहरी पवित्रता का अनुभव होता है।
संगोष्ठी में विशिष्ट वक्ता माँ विन्ध्यवासिनी विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. शोभा गौड़ ने राजर्षि के जीवन को शिक्षा, साहित्य और अध्यात्म के अद्भुत समन्वय के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक विकास ही व्यक्ति को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से जोड़ता है। उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. सीमा सिंह ने कहा कि राजर्षि पर साहित्य का सृजन और उसका प्रकाशन उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। दिल्ली विश्वविद्यालय के आचार्य प्रो. रजनी रंजन सिंह ने कहा कि राजर्षि का दर्शन कर्तव्य आधारित था, न कि अधिकार आधारित। उनका दर्शन पक्षपात रहित था और इसमें विश्व के समस्त शुभ तत्वों का समाकलन था।
संगोष्ठी में काॅलेज के प्राचार्य प्रो.धर्मेंद्र कुमार सिंह ने स्वागत भाषण दिया। आयोजन में सचिव प्रो. रमेश धर द्विवेदी और संचालन में प्रो. रेनू सिंह ने अपनी भूमिका निभाई।
—जाति एवं धर्म आधारित संस्थाओं की स्थापना: नव जागरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम
संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में साहित्यकार डॉ. राम सुधार सिंह ने जाति और धर्म आधारित संस्थाओं की स्थापना के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि नवजागरण काल में भारत की जनता को इस आशय से शिक्षित करना था कि वे अपनी अस्मिता को जीवित रखते हुए राष्ट्र निर्माण का कार्य कर सकें। संगोष्ठी में डॉ. अशोक कुमार सिंह, डॉ. उदय प्रताप सिंह, डॉ. मेजर अरविंद कुमार सिंह और प्रो.प्रदीप सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। प्रो. प्रदीप सिंह ने कहा कि शिक्षा और अनुशासन के क्षेत्र में उदय प्रताप कॉलेज की एक विशिष्ट पहचान है।
इस अवसर पर प्रो. एन.पी. सिंह, प्रो.गरिमा सिंह, प्रो.शशिकांत द्विवेदी, प्रो. मनोज प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. मुधीर राय, प्रो. सुधीर शाही, प्रो. प्रज्ञा पारमिता और डॉ. अरविंद सिंह आदि भी उपस्थित थे।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी