स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना मोर्चाघर! कभी हुआ करता था ईस्ट इंडिया कंपनी का माल गोदाम

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स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना मोर्चाघर! कभी हुआ करता था ईस्ट इंडिया कंपनी का माल गोदाम


स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना मोर्चाघर! कभी हुआ करता था ईस्ट इंडिया कंपनी का माल गोदाम


- भारतीय संस्कृति की झलक, लोगों के जानने लायक है ऐतिहासिक मोर्चाघर का इतिहास

- गोदाम के मुख्य द्वार पर आज भी हैं दो हाथी के बीच विराजमान मां लक्ष्मी और उनके नीचे बैठे उल्लू के चित्र

मीरजापुर, 05 नवम्बर (हि.स.)। भारत को ऐसे ही सोने की चिड़िया नहीं कहा जाता था। एक समय था जब गंगा किनारे मोर्चाघर ईस्ट इंडिया कंपनी का माल गोदाम हुआ करता था। गंगा के रास्ते आयात-निर्यात भी होता था। यह बात है आजादी के पहले अंग्रेज शासनकाल की, तब अंग्रेजों की बादशाहत हुआ करती थी। अब यह इमारत रिहायशी मकान में तब्दील हो चुकी है। हालांकि स्थापत्य कला से समृद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी के गोदाम पर भारतीय संस्कृति की झलक अब भी दिखने को मिलेगी। गोदाम के मुख्य द्वार के शिखर पर दो हाथी व बीच में मां लक्ष्मी और उनके नीचे बैठे उल्लू के चित्र आज भी स्थापित हैं। सैकड़ों साल पहले बना गोदाम आज भी मजबूती में बेमिसाल है। उस समय भले ही अंग्रेज शासनकाल था, लेकिन वे भारतीय संस्कृति से अपरिचित नहीं थे। माल गोदाम के मुख्य द्वार पर बने हाथियों के बीच मां लक्ष्मी की मूर्ति व उनके नीचे बैठे उल्लू का चित्र इसका प्रमाण हैं।

मोर्चाघर से चुनार किला तक पहुंचने के लिए है सुरंग, छिपे हुए हैं कई रहस्य

हम बात कर रहे हैं शताब्दी पूर्व गंगा किनारे मोर्चाघर में बसे ईस्ट इंडिया के माल गोदाम की। मोर्चाघर में कई रहस्य छिपे हुए हैं। यहां तक कि मोर्चाघर से चुनार किला तक पहुंचने के लिए सुरंग भी है। हालांकि अभी इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है। हिन्दुस्थान समाचार ने जब मोर्चाघर का पड़ताल किया तो एक स्थान ऐसा मिला जो वाकई लोगों के जानने लायक था। हिन्दुस्थान समाचार ने उसे अपने कैमरे में कैद कर लिया। पड़ताल के वक्त पता चला कि यह आजादी से पहले ईस्ट इंडिया का माल गोदाम हुआ करता था और यहीं से व्यापारिक गतिविधियां होती थीं। उस वक्त एक ऐसा समय आया जब ईस्ट इंडिया कंपनी को माल गोदाम बंद करना पड़ा, तब कोलकाला के लालचंद्र मारवाड़ी ने ईस्ट इंडिया कंपनी से मोर्चाघर खरीद लिया था, फिर अनुमानतः 1924 में लालचंद्र मारवाड़ी ने उसे बेच दिया था।

लाही चपड़ा व्यवसायी ने एक दिन की कमाई से ईस्ट इंडिया कंपनी से खरीदा था मोर्चाघर

उस समय लाही चपड़ा व्यवसायी पुरुषोत्तम लाल जायसवाल ने एक दिन की कमाई अनुमानतः 40 हजार रुपये से मोर्चाघर को खरीद लिया था। मोर्चाघर का कुल क्षेत्रफल 20 बीघा था। उस वक्त मोर्चाघर का आधा हिस्सा आम का बगीचा हुआ करता था।

उत्तराधिकारी इं. अभय करते थे देखरेख, अब इनके वंशज संभाले हैं विरासत

लाही चपड़ा व्यवसायी पुरुषोत्तम लाल जायसवाल के निधन के बाद उनके उत्तराधिकारी इं. अभय कुमार जायसवाल मोर्चाघर की देखरेख करने लगे। इं. अभय कुमार जायसवाल की मृत्यु के बाद इनके वंशज विरासत संभाले हुए हैं। हालांकि सरकार को भी इस ऐतिहासिक स्थल पर ध्यान देने की जरूरत है।

आधा हिस्सा गंगा में समाहित

इस समय हालात यह है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के माल गोदाम का आधा हिस्सा गंगा में समाहित हो चुका है। अब मात्र रिहायशी मकान बनकर रह गया है। यहां करीब आधा दर्जन परिवार किराए पर निवास करते हैं। हालांकि इन सभी से इमारत से कोई मतलब नहीं है।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/सियाराम

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