माहे रमजान में पहला रोजा मुकम्मल हुआ,रोजा इफ़्तार में मांगी अल्लाह पाक से दुआ

— रमजान माह का पहला अशरा रहमत का,नमाज, कुरआन की तिलावत व दुआ का सिलसिला
वाराणसी,02 मार्च (हि.स.)। माहे रमजान में रविवार को पहला रोजा मुकम्मल हुआ । मुसलमानों ने पूरे दिन रोजा रख शाम को इफ़्तार किया। इसके बाद अल्लाह पाक से अपनी दुआओं में मगफिरत और बरकत की अपील की। एक महीने बाद खुशियों का त्योहार ईद परंपरा के अनुसार मनाया जाएगा। रमजान का पहला रोजा जहां सबसे छोटा रहा। वहीं,अंतिम रोजा सबसे बड़ा होगा। रमजान को लेकर लोगों में काफी उत्साह है।
वाराणसी के बेनिया बाग चौराहे के पास बाबा रहीम शाह बाबा के आस्ताने में भी रोजा इफ्तार करते हुए अकीदतमंदों को देखा गया।
बताते चले रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना है, जो चांद दिखने के साथ शुरू होता है। रमजान का महीना शब-ए-बारात से 14 दिन बाद शुरू होता है, और यह महीना विशेष रूप से इबादत, दुआ, और तौबा का महीना होता है। पत्रकार शमशाद अहमद के अनुसार रोजे में दिनभर की तपती गर्मी और भूख-प्यास की शिद्दत के बाद, जैसे ही मगरिब का वक्त आता है, मस्जिदों में रौनक लौट आती है और घरों में पकवान तैयार होते हैं। इफ्तार के समय गरीबों और जरूरतमंदों का भी खास ख्याल रखा जाता है। यह महीना मुसलमानों के लिए एक तरह से आत्मा की शुद्धि और अल्लाह के करीब जाने का मौका होता है। रमजान के महीने को तीन अशरों में बांटा गया है – पहला अशरा जो बरकतों से भरा होता है, दूसरा अशरा रहमत का होता है, और तीसरा अशरा मगफिरत का, जिसमें अल्लाह अपनी रहमत से बंदों को माफ करता है। इफ्तार के बाद मस्जिदों में तरावीह की नमाज अदा की जाती है, जो रातभर अल्लाह की इबादत का मौका देती है।
शमशाद बताते हैं कि रमजान सिर्फ भूख-प्यास का महीना नहीं है, बल्कि यह हर उस गलत काम से दूर होने का समय है, जो अल्लाह को पसंद नहीं है। इस महीने में मुसलमान फितरा और जकात देते हैं, ताकि गरीबों और यतीमों को भी अच्छे खाने-पीने का मौका मिल सके। रमजान का यह महीना मुसलमानों के लिए आध्यात्मिक शुद्धि और समाज के लिए एकता का प्रतीक बनकर आता है।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी