बाबा विश्वनाथ का वार्षिक झूला श्रृंगार मंदिर न्यास के स्वयं की चल प्रतिमा से होगा

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बाबा विश्वनाथ का वार्षिक झूला श्रृंगार मंदिर न्यास के स्वयं की चल प्रतिमा से होगा


—महंत परिवार की आपसी खींचतान और रार से मंदिर न्यास ने लिया निर्णय

वाराणसी,19 अगस्त (हि.स.)। सावन के पांचवें और आखिरी सोमवार पर बाबा विश्वनाथ का सपरिवार वार्षिक झूला शृंगार मंदिर न्यास की स्वयं की चल प्रतिमा से होगा। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत के परिवार में विवाद के चलते मंदिर प्रशासन ने यह निर्णय लिया है। अभी तक पूर्व महंत डॉ कुलपति तिवारी अब स्मृतिशेष के टेढ़ीनाम स्थित आवास से बाबा की पंचबदन चल प्रतिमा को सिंहासन पर विराजमान कर मंदिर के गर्भगृह में लाया जाता था। इसके बाद दीक्षित मंत्रों के बीच बाबा के चल प्रतिमा का झूला श्रृंगार होता रहा। इस परम्परा के टूटने पर श्रद्धालुओं में नाराजगी है।

मंदिर न्यास का कहना है कि सावन के आखिरी सोमवार को बाबा विश्वनाथ के झूला श्रृंगार के संबंध में पंचबदन चल रजत प्रतिमा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में लाये जाने के लिए दो पक्षों ने अलग-अलग पत्र प्रेषित किया है। कतिपय पर्वो पर मंदिर परिसर में चल प्रतिमा शोभायात्रा निकाली जाती है। धाम काॅरिडोर निर्माण से पूर्व मंदिर क्षेत्र में स्थित स्थानीय चल प्रतिमा का प्रयोग शोभायात्रा के लिए किया जाता था। श्री काशी विश्वनाथ धाम के पुर्न निर्माण के समय मंदिर क्षेत्र से अन्यत्र जाते समय दो परिवार कथित तौर पर अपने साथ चल प्रतिमा को साथ ले जाने का दावा करते है। दो तीन वर्षों तक स्व. कुलपति तिवारी के जीवनकाल में चल प्रतिमा की शोभायात्रा उनके आवास से मंदिर तक लाने पर मंदिर न्यास द्वारा आपत्ति नहीं की गयी। हालांकि उनके भाई लोकपति तिवारी ने हमेशा इस पर आपत्ति की।

वर्तमान समय में कुलपति तिवारी की मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र वाचस्पति तिवारी व दूसरे पक्ष से लोकपति तिवारी ने अलग-अलग पत्र मंदिर न्यास कार्यालय में प्रेषित किया।

पत्रों से यह संज्ञान में आया है कि इस परिवार की दो शाखाओं का असली मूर्ति व श्रृंगार परंपरा के निर्वहन के संबंध में आपस में विवाद है। दोनों पत्रों में उभय पक्ष द्वारा मूल प्रतिमा के कब्जे अथवा परम्परा के असली दावेदार होने के परस्पर विरोधाभासी दावे किये गये हैं। इसके लिए दोनों पक्षकार बनकर कोर्ट में केस भी लड़ रहे हैं। कुलपति तिवारी के निधन के उपरांत एक तरफ उनके पुत्र वाचस्पति तिवारी ने इसे वशांनुगत निजी परम्परा घोषित करने का प्रयास किया है। वहीं, उनके चाचा लोकपति तिवारी ने बड़ी पीढ़ी का अधिकार होने का दावा किया है। ऐसे में दो परिवारों के परस्पर विरोधी दावों के आलोक में मंदिर प्रशासन ने विधिक स्थिति का आकलन किया। इसके बाद यह निर्णय लिया गया कि इस प्रकार की कोई शोभायात्रा मंदिर न्यास के प्रबंधन से बाहर की प्रतिमा से व बाहर के स्थान से नहीं की जाएगी। सामान्यतः ऐसे कोर्ट के मामलों में पक्षकार मंदिर को भी पार्टी बना कर अनावश्यक उलझाते हैं। जो मंदिर के लिए उचित नहीं है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास ऐसे किसी पारिवारिक विवाद से दूर रहना चाहता है। दोनों पक्षों में विरोधाभास होने से पर्व के सकुशल निर्वहन में बाधा उत्पन्न होती है। इससे मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को भी असुविधा होगी। साथ ही मंदिर का नाम कोर्ट कचहरी में घसीटने की संभावना बनती है। मंदिर न्यास के पास स्वयं की मूर्ति, पालकी आदि की समस्त व्यवस्था एवं संसाधन हैं। जिससे प्रचलित परम्परा का पूर्ण निर्वहन मंदिर प्रांगण के भीतर ही किया जाएगा। ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं विद्वत जनों की उपस्थिति में पूजा उपरांत शोभायात्रा मंदिर प्रांगण के अंदर ही गर्भगृह तक आयोजित की जाएगी। इस आयोजन के लिए शोभायात्रा के नाम पर किसी बाहरी पक्ष द्वारा अपनी मूर्ति से कोई समानान्तर व्यवस्था करने का कोई भी प्रयास मंदिर द्वारा निर्धारित व्यवस्था के विरुद्ध होगा। यदि कोई व्यक्ति अपने घर की किसी मूर्ति या उसकी पूजा को मंदिर से संबंधित बताता है तो यह पूरी तरह से भ्रामक है। मंदिर न्यास का बाहरी मूर्तियों या किसी के घर व परिवार द्वारा की जा रही उनकी पूजा से कोई सरोकार नहीं है। अब भविष्य में भी ऐसे सभी चल प्रतिमा संबंधी त्योहार मंदिर न्यास के स्वयं की मूर्तियों से ही सम्पन्न होगा।

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी / राजेश

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