डल झील से कम नहीं है सप्त सरोवरों का अद्भुत संगम, बुंदेलखंड का कश्मीर है चरखारी
-चंदेल कालीन समय में तैयार हुए सरोवर
-अनूठी कला का अद्भुत नमूना हैं सप्त सरोवर
महोबा, 01 मई(हि.स.)। उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड अपनी अनूठी परंपरा,वास्तु कला और कलाकृतियों के लिए भी देश में अलग पहचान रखता है। यहां चंदेल कालीन राजाओं के शासनकाल में तैयार कराई गई इमारतों की अनूठी वास्तु कला देखते ही बनती है। जिले के चरखारी कस्बा में बने सप्त सरोवरों का अद्भुत संगम सहज ही लोगों को आकर्षित करता है। यह सप्त सरोवर वर्ष भर जल से संतृप्त रहते हैं। डल झील की तरह मनोरम छटा बिखरने वाले इन सरोवरों के कारण चरखारी को बुंदेलखंड का मिनी कश्मीर कहा जाता है।
जनपद मुख्यालय से लगभग 18 किलो मीटर दूर चरखारी कस्बा स्थित है। यहां की मनोरम छटा दूर से ही नजर आने लगती है। यहां का नजारा कश्मीर की वादियों से कम नहीं हैं। कस्बे के बीच में और बाहर बने सरोवर यहां के दृश्य को मनोरम बना देते हैं। भगवान श्री कृष्ण के प्रतीक स्वरूप बने 108 मंदिर यहां विशेष आस्था के केंद्र हैं।
यहां बने सप्त सरोवर आपस में जमीन के नीचे से जुड़े हुए हैं। सरोवरों में सबसे पहला सरोवर गोला तालाब है। इसके चारों ओर से गोल होने के कारण इसका नाम गोला तालाब पड़ा। बारिश का पानी सबसे पहले बस्ती से इसी सरोवर में पहुंचता है। सरोवर के पूरा भरने के बाद यहां का पानी कोठी तालाब में चला जाता है। इसके पास राजाओं की कोठी बनी थीं इसलिए इसका नाम कोठी तालाब पड़ा। इन कोठियों में राजाओं के मेहमान आराम फरमाते थे। और सुंदर मनोरम दृश्य का आनंद लेते थे।
कोठी तालाब से पानी जय सागर तालाब में मिलता है। राजा जयसिहं ने इसका निर्माण कराया था। जिससे इसका नाम जयसागर पड़ा। जयसागर से पानी होकर मलखान सागर में जाता है। मलखान सागर का नाम मलखान सिंह जू देव महाराज के नाम पर पड़ा। इन्हें सर की उपाधि भी मिली थी। इनके द्वारा चरखारी में मेले का आयोजन प्रारंभ कराया था। यहां से पानी रपट तलैया में पहुंचता है जहां से आगे रतन सागर भरता है। रतन सागर को राजा रतन सिंह ने तैयार कराया इसीलिए इसका नाम रतन सागर पड़ा।
हिन्दुस्थान समाचार/ उपेंद्र/राजेश
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