वृक्ष के नीचे अध्ययन करने से शीघ्रता से होता है कंठस्थ : प्रो. सीमा परोहा

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वृक्ष के नीचे अध्ययन करने से शीघ्रता से होता है कंठस्थ : प्रो. सीमा परोहा


— जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे साथ होते हैं वृक्ष

कानपुर, 06 अगस्त (हि.स.)। वृक्ष पर्यावरण के प्रमुख संघटक हैं और इनके बिना जीवन की कल्पना असंभव है। वेद तथा पुराण गवाह हैं कि हमारी संस्कृति आरण्यक संस्कृति रही है। हमारे प्राचीन गुरुकुल घने जंगलों के बीच सामान्य जनमानस की पहुंच से दूर हुआ करते थे, जहां पर ज्ञान प्राप्ति के उत्सुक छात्र मनीषी ऋषि-मुनियों से श्रुत परंपरा में ज्ञान ग्रहण किया करते थे। महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति अश्वत्थ वृक्ष के नीचे हुई थी। आज विज्ञान से सिद्ध हो चुका है कि शांत वातावरण में पेड़ों के नीचे अध्ययन करने से किसी भी विषय को अधिक शीघ्रता से कंठस्थ किया जा सकता है। यह बातें मंगलवार को राष्ट्रीय शर्करा संस्थान की निदेशक प्रो. सीमा परोहा ने कही।

राष्ट्रीय शर्करा संस्थान की निदेशक प्रो. सीमा परोहा के नेतृत्व में मंगलवार को संस्थान परिसर में आम, नीम, पीपल, आंवला, कटहल, पाकड़ आदि विविध प्रजातियों के लगभग 1000 से अधिक पौधरोपण किया गया। संस्थान की निदेशक प्रो.सीमा परोहा ने कहा कि पेड़ों की महिमा अनंत है। जन्म से लेकर मृत्यु तक वृक्ष हमारे साथी होते हैं। अतः हम सबका पुनीत कर्तव्य है कि हम वृक्षों का संरक्षण और संवर्धन करें। छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक ने कहा कि कानपुर जैसे भीड़-भाड़ वाले शहर में आज भी जिन स्थलों ने वृक्षों को सहेज रखा है उनमें-राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, एलन फारेस्ट, चिड़ियाघर, विश्वविद्यालय, एच.बी.टी.आई. आदि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। आज जिस तरह से खेती और आवास के निर्माण के लिए वनभूमि को कम किया जा रहा है, उसके दुष्परिणाम आने आरंभ हो गये हैं। मां के समान पालन-पोषण करने वाली प्रकृति सीधे तौर पर मना नहीं करती है, लेकिन जब दंड देती है तो अपार जन-धन की हानि होती है। वह चाहे केदारनाथ की त्रासदी हो या वायनाड की। मानव-मात्र को संभलने तक का अवसर नहीं मिलता है। हम सबका हित इसी में निहित है कि हम अधिकाधिक पेड़ लगायें।

संभागीय वन अधिकारी दिव्या ने कहा कि जब भी एन.एस.आई. या आई.आई.टी. में जाने का अवसर मिलता है तो लगता है कि किसी दूसरे प्रदेश में आ गये हैं। यहां की आबोहवा और तापमान आंखें बंद रहने पर भी अपने आप दूसरे स्थान का आभास करवा देती है। मुझे राष्ट्रीय शर्करा संस्थान परिसर की हरियाली को देखकर किसी वन-प्रदेश की सुषमा की याद आती है।

इस दौरान संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो.डी.स्वेन, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग नई दिल्ली के मनमोहन सचदेवा, प्रसेनजीत देब, पी.के. मिश्रा, अखिलेश कुमार पाण्डेय आदि मौजूद रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / अजय सिंह / Siyaram Pandey

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