बीएचयू में शायर मुनव्वर राना को दी श्रद्धांजलि, यादों को साझा किया
वाराणसी,16 जनवरी (हि.स.)। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को बीएचयू मधुबन वाटिका में शायर मुनव्वर राना को याद किया। आयोजित शोकसभा में कार्यकर्ताओं ने शायर से जुड़े यादों को साझा कर उनके चर्चित शायरी को भी सुनाया।
मरहूम शायर के चित्र पर पुष्प अर्पण कर वक्ताओं ने कहा कि रिवायती मुशायरों का बादशाह शायर हमारे बीच से चला गया। 26 नवम्बर 1952 को रायबरेली में पैदा हुए, तो सारी ज़िन्दगी रायबरेली का कलमा पढ़ते रहे। कलकत्ता में अब्बा के साथ ट्रक के पहियों संग ज़िन्दगी शुरू की और धीरे-धीरे अपना ख़ुद का ट्रांसपोर्ट खड़ा कर दिया। एक शायर दिल इंसान एक कामयाब बिज़नेसमैन बन गया। ट्रक के पहिये जितना चलते, उससे ज़्यादा मुनव्वर साहब की किताबें चलती। बाज़ार में उनकी धूम थीं तो मुशायरों में उनका जलवा, ज़िन्दगी पूरी तरह मेहरबान थी इस मर्म छूकर शेर कहने वाले शख्स पर।
वक्ताओं ने कहा कि किसान आन्दोलन के समय शायर के अंदर बैठे सजग हिन्दोस्तानी ने लिखा, संसद को गिराकर खेत बना दो, इस मुल्क के कुछ लोगों को रोटी तो मिलेगी। अब ऐसे ही बदलेगा किसानों का मुकद्दर, सेठों के बनाए हुए गोदाम जला दो'। कई दफा लेखकों की कलम ने सत्ता की कमर तोड़ी है। मुंशी प्रेमचंद,दिनकर,पाश धूमिल और भी बहुत बड़े लेखक हुए हैं,जिनकी कलम से क्रांति की मशाल जली। इस शेर को इसी धारा के अंतर्गत देखा पढ़ा जाना चाहिए। वक्ताओं ने कहा कि बीते दस साल में खास तौर पर पत्रकार उन्हें मसाला खबर के लिए ढूंढते थे। मुनव्वर भी कभी मायूस नहीं करते,जो दिल में आया कह डाला,उसका असर जब होगा, तब होगा। मुनव्वर राना का उर्दू अदब में बड़ा भारी काम रहा। 'माँ' पर लिखते समय उनकी कलम में माँ सरस्वती स्वयं बैठ जाती थीं शायद। मुशायरों के मंच पर घर,भाई,गांव और माँ पर जब वो शेर कहना शुरू करते थे, उनमें किसी पीर फ़क़ीर की दीवानगी और बन्दगी दिखती थी।
श्रद्धांजलि सभा में रोशन,सोनाली,राणा रोहित,नीरज,धनंजय त्रिपाठी,विवेक,शाश्वत,इन्दु,जागृति राही,साक्षी,प्रज्ञा ने शायर के व्यक्तित्व को नमन किया।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/राजेश
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