श्रावणी उपाकर्म अपने चित्त एवं तन को शुद्ध करने की प्रक्रिया : आचार्य
प्रयागराज, 19 अगस्त (हि.स.)। वैदिक परम्परा अनुसार पंच गव्य से स्नान, जनेऊ पूजन एवं वेद अध्ययन का प्रारम्भ होता है। ऋषि मुनियों का पूजन कर उनको नमन किया जाता है। गुरु अपने शिष्य को रक्षा सूत्र बांधकर वेद अध्ययन प्रारम्भ करवाते हैं। रक्षाबंधन का ये पौराणिक महत्व एवं तात्पर्य है। श्रावणी उपाकर्म अपने चित्त एवं तन को शुद्ध करने की प्रक्रिया है।
यह बातें साेमवार काे कर्म काण्ड सम्पन्न कराने वाले वैदिक आचार्य खेमराज ने श्रावणी उत्सर्ग का महत्व बताते हुए बटुकों को सम्बोधित करते हुए कही। सोमवार को गोवर्धन मठ पुरी ओडिसा शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के प्रयागराज केंद्र शिवगंगा आश्रम झूंसी में श्रावणी उत्सर्ग एवं उपाकर्म वैदिक मंत्र एवं विधि विधान से सम्पन्न हुआ।
गंगा तट पर वेदपाठी बटुकों एवं आश्रम से जुड़े लोगों ने इस अवसर पर पंच गव्य से स्नान कर संध्या तर्पण आदि कर्मकांड सम्पन्न किए। इस तिथि पर पुराने यज्ञोपवीत (जनेऊ) को त्याग कर वैदिक मंत्रों से अभिमंत्रित नए जनेऊ को धारण किया जाता है। आचार्य ने कहा सनातन धर्म में इस तिथि का विशेष महत्व है। आधुनिक समय में ये परम्पराएं लुप्त होती जा रही हैं जिनके बारे में सनातन धर्मावलम्बियों को जानना चाहिए।
विधि विधान से पूजन होने के बाद भंडारे का भी आयोजन किया गया। जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। इस अवसर पर आचार्य खेमराज, प्रताप दुबे, अजय पांडेय, सुरेंद्र पांडेय, विवेक मिश्र, दीपक शुक्ल, बीपी सिंह, के एन पांडेय, आचार्य रामानुज, अंकुर, आर के पांडेय, मनोज त्रिपाठी, पीयूष, वासु, आदि बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र / राजेश
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