मंडलीय कबीरचौरा चिकित्सालय एसडीपी सुविधा वाला बना प्रदेश का पहला सरकारी अस्पताल

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मंडलीय कबीरचौरा चिकित्सालय एसडीपी सुविधा वाला बना प्रदेश का पहला सरकारी अस्पताल


—विधायक डॉ नीलकंठ तिवारी ने किया मशीन का लोकार्पण, अपने निधि से जारी किया था फंड

वाराणसी, 01 मार्च (हि.स.)। कबीरचौरा स्थित श्री शिवप्रसाद गुप्त मंडलीय जिला चिकित्सालय में प्लेटलेट्स एफेरेसिस मशीन (एसडीपी) लग गई है। शुक्रवार को प्रदेश के पूर्व मंत्री एवं वाराणसी शहर दक्षिणी के विधायक डॉ नीलकंठ तिवारी ने मरीजों के लिए मशीन को लोकार्पित कर दिया। मंडलीय अस्पताल में एसडीपी मशीन के लिए विधायक डॉ नीलकंठ तिवारी तथा एमएलसी अशोक धवन ने अपने-अपने निधि से धनराशि स्वीकृत किया था।

इस अवसर पर विधायक डॉ नीलकंठ तिवारी ने बताया कि कबीरचौरा अस्पताल स्थित ब्लड बैंक में अभी भी पुरानी तकनीक(कंपोनेंट सेप्रेशन) का इस्तेमाल कर खून से प्लेटलेट्स निकाला जा रहा था। जिसमें घंटों बर्बाद होने के साथ ही काफी ज्यादा डोनरों की जरूरत पड़ रही थी। अब यहाँ प्लेटलेट्स एफेरेसिस मशीन (एसडीपी) लग जाने से इन सारी परेशानियों से निजात मिल जाएगी और कई गंभीर रोगियों की जान बचाई जा सकेगी।

चिकित्सको के अनुसार इस मशीन के प्रयोग से रोगियों की तेज रिकवरी होगी और एक ब्लड डोनर करीब पांच डोनरों के बराबर उपयोग में लाया जाएगा। अब सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (एसडीपी) विधि से एक ही डोनर से मरीज की जरूरत के अनुसार प्लेटलेट्स निकालना संभव होगा। पहले इसके लिए तीन से चार डोनर का ब्लड लिया जाता था। फिर प्लेटलेट्स अलग किया जाता था। इस प्रक्रिया में ब्लड के जरिए एक घंटे में प्लेटलेट्स निकलता है । डोनर के शरीर से ब्लड निकालकर मशीन में ले जाया जाता है वहां से प्लेटलेट्स अलग होकर मरीज के शरीर तक पहुंचता है और बाकि ब्लड दोबारा डोनर के शरीर में पहुंचाया जाता है।

खास बात यह भी है कि प्लेटलेट्स देने वाला व्यक्ति 72 घंटे बाद दोबारा प्लेटलेट्स दे सकता है। इस विधि से प्लेटलेट्स चढ़ाने से मरीज में 50 से 60 हजार तक प्लेटलेट्स बढ़ता है। अब तक ब्लड निकालने के बाद रैंडम डोनर प्लेटलेट्स (आरडीपी) विधि से प्लेटलेट्स निकाला जाता था। इसमें कम से कम छह घंटे लगते हैं। एक बार रक्तदान करने के बाद तीन माह बाद दे फिर से रक्तदान किया जा सकता था । एक यूनिट आरडीपी चढ़ाने पर सिर्फ पांच हजार प्लेटलेट्स काउंट बढ़ते हैं। इस वजह से कई यूनिट प्लेटलेट्स चढ़ाने पड़ते थे। इसके पहले आरडीपी तकनीक से जरूरतमंद मरीज को ब्लड बैंक से उसके मैचिंग ग्रुप का प्लेटलेट्स दे दिया जाता है और उसके बदले में किसी भी ब्लड ग्रुप वाले डोनर से ब्लड डोनेट करा लिया जाता है। एक ग्रुप वाले कई डोनरों का प्लेटलेट्स एक साथ निकालकर दूसरे मरीजों के लिए रख लिया जाता था। इसका प्रयोग सिर्फ डेंगू मरीजों में ही नहीं बल्कि और भी कई गंभीर बीमारियों में होता है।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से मुख्य चिकित्सा अधिकारी संदीप चौधरी, एसआईसी कबीरचौरा अस्पताल एस पी सिंह, उपाध्यक्ष आत्मा विशेश्वर, मंडल अध्यक्ष गोपालजी गुप्ता, पार्षद संजय केशरी, श्रवण गुप्ता, पार्षद इंद्रेश सिंह,संजय विश्वभरी आदि भी मौजूद रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/पदुम नारायण

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