राम नाम सत्य है, कहने की परम्परा तुलसीदास  ने शुरू कराई - संत रमाकांत गोस्वामी 

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राम नाम सत्य है, कहने की परम्परा तुलसीदास  ने शुरू कराई - संत रमाकांत गोस्वामी 


लखनऊ, 29 नवंबर (हि.स.)। लखनऊ के गोमती नदी के तट पर लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी वर्ष पर आयोजित भक्तमाल कथा में संत रमाकांत गोस्वामी ने कहा कि राम नाम सत्य है, कहने की परम्परा गाेस्वामीतुलसीदास ने शुरू कराई।

संत रमाकांत गोस्वामी जी महाराज ने भक्तमाल कथा के दूसरे दिन की शुरुआत करते हुए कहा कि धोकर पीए, दिखाकर खाएं, सो प्राणी वैकुंठ ही जाए। इसका अर्थ है कि ठाकुर जी को जल में तुलसी डालकर स्नान कराएं। तीन बार स्नान के बाद यह चरणामृत हो जाता है। चरणामृत लेने से अकाल मृत्यु नहीं होती, गंभीर रोग नहीं होते और पृथ्वी लोक में बार-बार कष्ट सहने के लिए नहीं आना पड़ता है। इसी तरह भगवान को भोग लगाकर ही हमें भोजन करना चाहिए। भोजन को नजदीक रखकर भोग लगाना चाहिए।

संत रमाकांत जी महाराज ने भक्तमाल कथा में कहानी सुनाते हुए लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के बारे में कहा कि अहिल्याबाई होलकर के पुत्र मालेराव के रथ का पहिया चढ़ जाने से एक बछड़ा मर गया। कुछ देर बाद अहिल्याबाई का रथ वहां से गुजरता है, तो सड़क के बीच में गाय बैठी है। अहिल्याबाई गाय से हाथ जोड़कर कहती है कि रास्ता दे दीजिए। इस पर रोते हुए गाय उठती है और फिर ज्यादा रोने लगती है। गाय का रोना देखकर अहिल्याबाई देखती है, बछड़ा मरा हुआ है। इसके बाद अहिल्याबाई होलकर अपने बहू से सारी बात बताकर अपने बेटे को वैसी ही सजा देने की बात कहती है। इसके बाद अहिल्याबाई होलकर के पुत्र मालेराव को वहां लिटा दिया जाता है। अहिल्याबाई ने रथ चलाना शुरू किया तो वहां बीच में वही गाय आ गई। गाय के भाव को अहिल्याबाई समझ गई और बाद में गाय माता को लेटकर प्रणाम किया।

संत रमाकांत जी महाराज ने तुलसीदास के जन्म की कथा सुनाते हुए कहा कि हनुमान जी ने रामायण लिखी है। इसे हनुमान नाट्य कहते है। एक बार वाल्मीकि जी और हनुमान जी की भेंट हुई। वाल्मीकि जी कह रहे है कि मैं रामायण लिख रहा हूँ। तभी हनुमान जी कहते है कि मैंने भी रामायण लिखी है। इस पर वाल्मीकि जी ने वचन मांग लिया कि हनुमान जी आप अपने रामायण को समुद्र में फेक दीजिए। हनुमान जी तैयार हो गए लेकिन वाल्मीकि जी को श्राप दे दिया। वाल्मीकि जी ने हनुमान जी की परिक्रमा शुरू कर दी। हनुमान जी ने कहा कि ये क्या कर रहे हैं। वाल्मीकि जी ने कहा कि मेरी रक्षा कीजिए, मैं तो चाहता हूँ कि मेरी रामायण प्रथम घोषित हो। हनुमान जी ने कहा कि कलयुग में वाल्मीकि जी आप पुनः जन्म लेंगे और मैं ही बैठकर आपको रामायण लिखवाऊंगा। तभी वाल्मीकि जी का तुलसीदास के रूप में पुनः जन्म हुआ और हनुमान जी ने रामचरित मानस लिखवाया।

भक्तमाल कथा में संत रमाकांत गोस्वामी ने कहा कि जन्म के समय तुलसीदास का आकार बहुत बड़ा था। जिसे देखकर तुलसीदास के पिता और माता ने जन्मे बालक को चुनिया को दे दिया। चुनिया ने अपनी सास को बालक को देकर पूरी बात बतायी। इस पर चुनिया की सास ने उसे छोड़ने के लिए कहा। तुलसीदास अब पेड़ के नीचे रहकर पलने लगे। एक माता आकर तुलसीदास को खिला- पिलाकर चली जाती थी।

संत रमाकांत गोस्वामी ने कहा कि तुलसी पौधे की जयंती पर इस बालक ने अपने गुरु के सामने एक मंत्र का सुन्दर वर्णन किया। तभी गुरु ने बालक का नाम तुलसीदास रख दिया। बाद में गुरु के साथ काशी में पहुंचकर रहते हुए तुलसीदास जी महाराज ने शिक्षा लिया। वहां से शिक्षा लेकर तुलसीदास अपने गांव गए। अपने माता पिता के मृत्यु का समाचार सुनकर उनका श्राद्ध कर्म किया। वहीं से तुलसीदास ने राम नाम की कथा करनी शुरू कर दी। बाद में तुलसी दास का विवाह होता है। पत्नी से मोह होता है, जिससे वह भागे-भागे ससुराल जाते हैं। वहां पत्नी की डांट पड़ती है, जिसके बाद तुलसीदास को वैराग्य हो जाता है। तुलसीदास इसके बाद राम नाम में डूब गए। उन्हाेंने श्रीराम चरित मानस लिखा और सत्संग में प्रभु राम के साथ स्मरण किए जाने लगे।

हिन्दुस्थान समाचार / श.चन्द्र

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