शोध : श्रीलंका के मूल निवासियों का भारतीयों के साथ घनिष्ठ आनुवंशिक संबंध
-बीएचयू के साथ पांच संस्थानों के दस शोधार्थियों का अनुवांशिक अध्ययन, अमेरिकन पत्रिका ने दिया स्थान
वाराणसी, 19 अप्रैल (हि.स.)। श्रीलंका के मूल निवासियों का भारतीयों के साथ घनिष्ठ आनुवंशिक संबंध है। बीएचयू सहित पांच संस्थानों के दस शोधकर्ताओं ने व्यापक आनुवंशिक अध्ययन के बाद ये रिपोर्ट तैयार किया है। खास शोध रिपोर्ट को अमेरिका की जानी मानी शोध पत्रिका माइटोकॉन्ड्रियान ने भी इसे आज के अंक में स्थान दिया है। महत्वपूर्ण अध्ययन में शोधकर्ताओं ने श्रीलंका के मूल निवासी वेद्दा के आनुवांशिक इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण खुलासा किया है।
इस अनुवांशिक अध्ययन में पांच लाख से ज्यादा म्युटेशन और 37 माइटोकॉन्ड्रियल जीनोम का व्यापक विश्लेषण किया गया। इस अध्ययन ने श्रीलंका के सबसे पहली बसावट और भारत के बीच प्राचीन आनुवंशिक संबंधों को दर्शाया है। अध्ययन के वरिष्ठ लेखकों में से एक और सीएसआईआर-सीसीएमबी, हैदराबाद के जेसी बोस फेलो डॉ. के. थंगराज ने बताया की “वेद्दा, जो श्रीलंका के मूल निवासी हैं, ने अपनी अनूठी भाषाई और सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण लंबे समय से वैज्ञानिकों और इतिहासकारों को समान रूप से आकर्षित किया है। लेकिन उसके इस प्रवासन पर कोई अनुवांशिक अध्ययन अभी तक उपलब्ध नहीं था। इस प्रकार के पहले बड़े अनुवांशिक अध्ययन ने उनकी आनुवंशिक उत्पत्ति और भारतीय आबादी के साथ समानता के रहस्यों को उजागर किया है।”
काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के जीन विज्ञानी प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा कि शोध के मुख्य निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि भले ही वेद्दा की भाषा किसी भी भारतीय जाति या जनजाति से न मिलती हो, लेकिन उनका डीएनए भारत के लोगों के साथ एक महत्वपूर्ण आनुवंशिक संबंध साझा करते हैं, “हमारे ऑटोसोमल म्युटेशन विश्लेषण वेद्दा और भारतीय जनजातियों के बीच एक करीबी आनुवंशिक संबंध दिखा रहे हैं, जो भारत भाषाई विविधता के पूर्व से ही हजारों वर्ष पुराने इतिहास की ओर इशारा करते है।” कोलंबो विश्वविद्यालय, श्रीलंका की डॉ. रुवंडी रणसिंह ने कहा कि “माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए विश्लेषण भी भारत और श्री लंका के एक साझा आनुवंशिक विरासत की धारणा को मजबूत करते हुए, एक प्राचीन लिंक के अस्तित्व का समर्थन करता है। वेद्दा आबादी श्रीलंका के सिंहली और तमिल लोगों के साथ कम और भारत के साथ अनुवांशिक रूप से ज्यादा जुडी हुई है। ”
अध्ययन की पहली लेखिका अंजना वेलिकाला ने कहा कि ‘भारतीय उपमहाद्वीप में हर एक जाती य जनजाति अपने पड़ोसी आबादी के साथ ज्यादा जीन सम्बन्ध दिखाते है, जिसको आइसोलेशन-बाई-डिस्टेंस मॉडल कहते हैं, इसके उलट यह खोज आइसोलेशन-बाई-डिस्टेंस मॉडल को चुनौती देता है और वेद्दा के विशिष्ट जनसांख्यिकीय इतिहास की खोज से यह शोध डीएनए अध्ययन का मील का पत्थर साबित होगा।
शोधकर्ताओं ने बताया कि इस शोध के व्यापक निहितार्थ हैं जो न केवल श्रीलंका बल्कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र के जनसांख्यिकीय इतिहास को नए दृष्टिकोण से पेश करता है। यह अध्ययन दक्षिण एशिया में मानव प्रवास और आनुवंशिक विविधता की जटिलता को रेखांकित करता है। इससे पता चलता है कि कैसे वेद्दा ने अपने आसपास के सांस्कृतिक और भाषाई परिवर्तनों के बावजूद सहस्राब्दियों से अपनी आनुवंशिक पहचान को संरक्षित रखा है।
शोधकर्ताओ ने कहा कि यह शोध दक्षिण एशिया में आनुवंशिक विविधता की बेहतर समझ में योगदान देगी और वेद्दा लोगों की अद्वितीय सांस्कृतिक और आनुवंशिक विरासत को सहेजने का सन्देश देगी।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/दिलीप
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