नमो घाट पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के स्टॉल पर सेंगोल की रिप्लिका बनी आकर्षण

नमो घाट पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के स्टॉल पर सेंगोल की रिप्लिका बनी आकर्षण
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नमो घाट पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के स्टॉल पर सेंगोल की रिप्लिका बनी आकर्षण


-वाराणसी में नए संसद भवन में रखे संगोल की एकमात्र रिप्लिका, 5 फीट लंबी

वाराणसी, 20 दिसम्बर (हि.स.)। काशी-तमिल संगमम-2 के तहत नमो घाट पर लगे एक स्टॉल में रखा सेंगोल लोगों में आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईडीएनसीए) के इस स्टॉल में प्रतिदिन दर्जनों लोग ये सेंगोल देखने आ रहे हैं। संसद भवन में रखे संगोल की एकमात्र रिप्लिका घाट पर देख लोग गर्व की अनुभूति कर रहे हैं। यह रिप्लिका पांच फीट लंबी है, चांदी और गोल्ड प्लेटेड है। इस पर नंदी और ग्लोब समेत कई कलाकृतियां बनी हैं, जो कि राजा के लिए संदेश और निर्देश की तरह काम करता है।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली के लगे स्टॉल के क्यूरेटर डॉ सुजीत कुमार चौबे के अनुसार इसका इतिहास तीन भाग में है। नेहरू काल, चोल साम्राज्य और रामायण-महाभारत काल। 28 मई 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन का लोकार्पण किया था। कहते हैं कि भारत की आजादी का प्रतीक यही सेंगोल ही था। भारत को सत्ता का ट्रांसफर किया गया तो उसने यही सेंगोल ही जवाहरलाल नेहरू को दिया था। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु के थिरुवावडुथुरई आधीनम ने सेंगोल को गंगा जल से साफ कराकर भारत के संसद भवन में रखवाया था। दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य का राजा उत्तराधिकारी को सत्ता सौंपने के दौरान सेंगोल ही देता था। तमिलनाडु के महत्वपूर्ण मठों में से एक थिरुवावडुथुरई आधीनम के सन्यासियों ने सेंगोल को अपने धार्मिक कामकाज में रख लिया। विजयानगरम शासन, गुप्तकाल, मौर्यकाल रामायण-महाभारत और वैदिक कालीन संस्कृतियों में भी सेंगोल के इस्तेमाल का उल्लेख है। उन्होंने बताया कि रामायण और महाभारत काल में इसको राजदंड और धर्मदंड कहा गया है। इसका अर्थ है कि एक निश्चित भू-भाग पर शासन करने और दंड देने का अधिकार राजा को है। जब राजा को दंडित करना हो तो इसे धर्मदंड कहा जाता है। सेंगोल पर सबसे ऊपर नंदी की मूर्ति है। गोल आधार पर बैठे हैं। उसके नीचे गेंद की डिजाइन है। नीचे तमिल में कुछ लिखा है। कुछ महिलाएं भी बनी हैं। नंदी-शिव के वाहन माने जाते हैं। शिव का द्वारपाल ही माना जाता है। किसी भी शिव मंदिर में जाए तो वह केवल एक ही नजर से शिव पर नजर बनाए रखते हैं। उनकी प्रतिमा कहीं और नहीं, केवल शिव के सामने ही हाेती है। इससे यह साबित होता है कि नंदी स्थिर चित्त हैं। पूरा समर्पण और योग दिखता है। इस तरह से सेंगोल के शीर्ष भाग पर बने नंदी राजा को धर्मपारायण, नीति, समर्पण, स्थिर चित्त की याद दिलाता है। ऐसे ही राजा जागरूक रहकर धर्म के मार्ग पर चलता है।

-गोलाकार आकृति

नंदी जिस गोलाकार भाग पर बैठे हैं, वह पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक है। इसका मतलब है कि ब्रह्मांड का कोई भी हिस्सा डिस बैलेंस होगा, तो पूरी संरचना खराब हो जाएगी। राजा भ्रष्ट हो सकता है। शासन करने वाले राजा को सबके साथ एकसमान व्यवहार करना होता है। इसी आधार पर निर्णय लेता है। गेंद आकार की डिजाइन मृत्युलोक का प्रतीक है। जो राजा बनेगा, वह जो भी काम करेगा, पूरे संसार में किसी का अहित न हो। सेंगोल पर बनी महिला की कलाकृति बताती है कि वह धन-संपदा की प्रतीक हैं। राजा धन का अधिकारी नहीं बल्कि संरक्षक होता है। अधिकारी वही संगोल में बनी देवी है। संगोल पर बनी फूल-पत्तियां दिखाती हैं कि राजा का राज्य धन-धान्य बना रहे। खेती-किसानी और राशन की कमी न पड़े। मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहे।

पांच फीट का ही सेंगोल क्यों?

हर उत्तराधिकारी के हाथ में आया सेंगोल 5 फीट का इसलिए होता है, क्योंकि सभी प्रजा एक समान है। कोई बड़ा-छोटा नहीं है। हर किसी को एक समान लाभ और दंड देना है। इसलिए, कभी भी इसकी हाईट के साथ कभी खिलवाड़ नहीं किया गया।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/आकाश

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