हमें शहीदों का सम्मान करते हुए राष्ट्र के प्रति समर्पित रहना होगा : न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र

हमें शहीदों का सम्मान करते हुए राष्ट्र के प्रति समर्पित रहना होगा : न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र
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हमें शहीदों का सम्मान करते हुए राष्ट्र के प्रति समर्पित रहना होगा : न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र


-भारत भाग्य विधाता टीम ने वैदिक, मध्य और आधुनिक इतिहास को बेहतर पिरोया है : मंडलायुक्त

प्रयागराज, 07 जून (हि.स.)। जिंदा हैं हम, तब यह जज्बात पैदा होगा। तभी शहीदों की सच्ची श्रद्धांजलि होगी। हमें शहीदों के भावनाओं का सम्मान करते हुए राष्ट्र के प्रति समर्पित रहना होगा।

यह बातें इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेश ने कही। पहली आजादी इलाहाबाद 7 जून से 16 जून 1857 की याद में 'जरा याद करो कुर्बानी' महोत्सव क्षेत्रीय अभिलेखागार एवं भारत भाग्य विधाता के तत्वावधान में खुशरूबाग बरगद के पेड़ के नीचे आजादी के अभिलेख प्रदर्शनी और संगोष्ठी कार्यक्रम शुक्रवार को आयोजित हुआ।

न्यायमूर्ति ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा जब हम दैनिक सामान्य दिनचर्या से ऊपर उठकर हमेशा देश के लिए, गरीबों के लिए, राष्ट्र के बारे में सोचें, देश की सम्पदा कैसे सुरक्षित रहे और विकास हो। यह जज्बात पैदा करना होगा।

उन्होंने कहा कि इंटरनेट की दुनिया से बाहर निकल कर देश के बच्चों को किताबी दुनिया की ओर बढ़ना होगा। तभी बलिदान का कर्तव्य और देश सेवा व्यर्थ नहीं जाएगा। शायरी के माध्यम से उन्होंने कहा 'शहीदों को याद कर हम वास्तव में जिंदा हैं, नहीं तो मुर्दे होते।'

कमिश्नर विजय विश्वास पंत ने कहा कि सर्वप्रथम मैं माटी को प्रणाम करता हूं, अपने पुरखों को नमन करता हूं। भारत भाग्य विधाता टीम ने वैदिक, मध्य और आधुनिक इतिहास को बेहतर पिरोया है। पौराणिक पहचान को पुनर्जीवित कराया है। मैं इस मुहिम के साथ हूं। पूर्वजों को याद कर शहीद परिवारों का मान बढ़ाया है। देश की आजादी में कुर्बानी देने वालों को शहीदवाल में प्रदर्शित कर भारतीय शहीदों को सम्मान बढ़ाने का कार्य किया।

शहीदवाल संस्थापक, कार्यक्रम संयोजक वीरेंद्र पाठक ने कहा इलाहाबाद में पहली आजादी की क्रांति में हिन्दू और मुस्लिम ने मिलकर किया। हमारे पूर्वज आजादी की लड़ाई में कूदे। उन्होंने कहा पूर्वजों ने पेंशन-भत्ते के लिए आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी। देश को आजाद कराने में कुर्बानी दी। 1857 हमारे पुरखों और अंग्रेजों की लड़ाई थी। गुलामी से मुक्ति और आजादी के लिए हमारे पुरखों ने कुर्बानी दी थी। उस समय अंग्रेजों के शहीद होने पर सम्मान के साथ दफनाया जाता था। मगर भारतीयों का कोई अता पता नहीं होता था। अंग्रेजों ने बांटो और राज करो की नीति यहीं से शुरू कर भारत में शासन कर रहे थे। इसी के विरुद्ध पूर्वजों ने एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।

उन्होंने बताया कि जनता ने विद्रोह कर इलाहाबाद की आजादी पायी थी। दस दिनों तक प्रयागराज आजाद था। यह खुशरूबाग आजादी का मुख्यालय था। भारतीयों ने अपने अधिकारी नियुक्त किये और बकायदा सरकार चलाई थी। कर्नल नील ने प्रयागराज में नरसंहार किया और 17 जून को पूरा इलाहाबाद नेस्तनाबूद कर दिया। सारे घरों को आग लगा दी गई, क्रांतिकारियों को मार दिया गया। कोई नहीं बचा था।

जीए आशुतोष सण्ड ने कहा कि यह हमारे पुरखों की गौरव गाथा है। 90 साल आजादी के पहले इलाहाबाद आजाद हो गया था। यह क्रांतिकारी का मुख्यालय था। उन्होंने कहा कि खुशरूबाग के बाहर द्वार पर एक बोर्ड हो, जिसमें क्रांतिकारियों के मुख्यालय का भी जिक्र हो। कार्यक्रम का संचालन प्रमोद शुक्ला एवं धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण मोहन चौधरी प्रभारी खुशरूबाग ने किया।

इस मौके पर श्रद्धांजलि देने वालों में शैलेंद्र अवस्थी, अनिल गुप्ता, अनिल पांडे, दिनेश तिवारी, शशिकांत मिश्रा, विनोद, नीरज अग्रवाल, राजकुमार, शैलेंद्र द्विवेदी, अमन श्रीवास्तव, आरव भारद्वाज, मोहम्मद आमिर, मोहम्मद लाइक, कृष्णकांत पाठक, देवेंद्र सिंह, दिव्यांशु मेहता, सुनील मिश्रा, भोला तिवारी, कृष्णजी शुक्ला, सीएल सिंह, याकूब, राकेश मेहरोत्रा, अनिल त्रिपाठी, सुशील तिवारी, राजीव वर्मा, शरद पाण्डेय आदि उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/राजेश

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