रवि पुष्य योग और सर्वार्थ सिद्धि योग में रविवार को मनाई जाएगी अहोई अष्टमी

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रवि पुष्य योग और सर्वार्थ सिद्धि योग में रविवार को मनाई जाएगी अहोई अष्टमी
















- 05 नवंबर को अष्टमी पूजा का मुहूर्त शाम 05 बजकर 33 मिनट से 06 बजकर 52 मिनट तक

- श्री हरि ज्योतिष संस्थान लाइनपार मुरादाबाद के संचालक ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेंद्र कुमार शर्मा ने दी जानकारी

मुरादाबाद, 04 नवम्बर (हि.स.)। श्री हरि ज्योतिष संस्थान लाइनपार मुरादाबाद के संचालक ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि 05 नवम्बर रविवार को मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि अहोई अष्टमी का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता हैं। इस दिन रवि पुष्य योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का शुभ संयोग भी बन रहा है। माना जाता है कि इस योग में रखे गए व्रत का साधक को दोगुना फल मिलता है।

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 05 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 59 मिनट से शुरू होकर 06 नवम्बर को तड़के सुबह 03 बजकर 18 मिनट तक रहेगी। पंडित जी ने आगे बताया कि अहोई अष्टमी पूजा का मुहूर्त 05 नवंबर को शाम 05 बजकर 33 मिनट से 06 बजकर 52 मिनट तक रहेगा व तारों को देखने का समय शाम 05 बजकर 58 मिनट रहेगा।

पंडित सुरेंद्र शर्मा ने आगे बताया कि बच्चों की तरक्की और दीर्घायु के लिए देवी अहोई या अहोई माता का आशीर्वाद पाने के लिए मनाया जाता है। इसे माताएं बड़ी श्रद्धा और प्रेम से मनाती हैं। हर साल कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य के लिए अहोई माता की पूजा अर्चना करती है। इस व्रत को साल के सबसे कठोर व्रतों में से एक माना जाता है, क्योंकि इस दिन महिलाएं करवा चौथ की तरह की निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन माता अहोई की पूजा करने के साथ भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने का विधान है। क्योंकि माताएं देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष अनुष्ठान, उपवास और प्रार्थना करती हैं।

अहोई अष्टमी की कैसे करें पूजा

ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि यह व्रत कार्तिक मास कृष्ण पक्ष अष्टमी को किया जाता है। जिस वार का दीपावली होती है, अहोई आठें भी उसी वार की पड़ती है। इस व्रत को वे स्त्रियाँ की करती हैं जिनके पुत्र संतान होती हैं। पूजा के लिए माताएँ पहले से एक चाँदी का अहोई बनाएं जिसे स्याऊ कहते हैं और उसमें चाँदी के दो दाने, जिस प्रकार गले में पहनने के हार में पैंडिल लगा होता हैं, उसी की भाँति चाँदी की अहोई ढलवा लें और डोरे में चाँदी के दाने डालवा लें। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से हलवा तथा रुपये बायना निकला कर रख लें और सात दाने गेहूं के लेकर कहानी सुने। कहानी सुनने के बाद अहोई स्याऊ की माला गले में पहन ले। जो बायना निकालकर रखें और फिर वह बायना सासू जी के पांव छुकर आदर पूर्वक उन्हें दें। इसके बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देकर स्वयं भोजन करे। दीवाली के बाद किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतार कर उसका गुड़ से भोग लगाए और जल के छीटे देकर मस्तक झुकाकर रख दें। जितने बेटे है उतनी बार तथ जिन बेटों का विवाह हो गया हो उतनी बार चाँदी के दो-दो दाने अहोई में डालती जाए। ऐसा करने से अहोई माता प्रसन्न हो बच्चों की दीर्घायु करके घर में नये मंगल कार्य होते रहते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/निमित /मोहित

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